लड़ाई है आरईए और ईएफआई की, घोड़े फंस गए बीच में बहस छिड़ी है कि घोड़े इक्विपमेन्ट हैं या खिलाड़ी

कुछ खेलों में देशी घोड़े भी कम नहीं

लड़ाई है आरईए और ईएफआई की, घोड़े फंस गए बीच में बहस छिड़ी है कि घोड़े इक्विपमेन्ट हैं या खिलाड़ी

अदालत का फैसला जो भी रहे, दोनों पक्ष अपने घोड़ों के प्रति अतिसंवेदनशील हैं। मानो इस बात पर सहमति हो कि चेतक महाराणा का साथी जरूर था।

जयपुर। दिल्ली हाई कोर्ट के सामने एक केस में सवाल है कि घोड़े स्पोर्टस इक्विपमेन्ट जैसे की बल्ला और गेंद की श्रेणी में आते हैं या खिलाड़ियों की। यह तो कुछ इस तरह का सवाल है कि चेतक महाराणा प्रताप की सेना में गिना जाता था या अस्लहे में।

क्या है मुद्दा?

दरअसल दिल्ली हाई कोर्ट में इक्वेस्ट्रिअन फेडरेशन ऑफ इंडिया-ईएफआई और राजस्थान इक्वेस्ट्रिअन असोसिएशन-आरईए के बीच में संगठनात्मक मुद्दों को लेके एक केस चल रहा है।

इसी केस के चलते घोड़ों के स्टेटस पर यह बहस छिड़ गई है
यह है ईएफआई का पक्ष
ईएफआई का पक्ष है कि घुड़सवारी के खेल एक विशेष श्रेणी में आते हैं। घोड़ों के पालन-पोषण में क्लबों का काफी खर्चा होता हे। स्टेट एसोसिएशनस इस मामले में फिलहाल क्लबों जितना काम नहीं करते। इसी वजह से स्टेट एसोसिएशनस के साथ सभी क्लब्स को वोट का बराबर अधिकार मिलना चाहिए।

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संगठन का यह भी मानना है की घोड़ों जीव हैं इसलिए उन्हें एथलीट मानना चाहिए। साथ ही उन्हें खेल के उपकरण समझना इसलिए अनुचित है क्योंकि बल्ले या स्टंप्स के विपरीत उनके भी मूड होतें हैं, और उन्हें साफ-सफाई, खने और आराम की जरूरत होती है। उन्हें भी देश के बाहर जाने के लिए पासपोट्र की जरूरत होती है।

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यह है आरईए का पक्ष
आरईए के अध्यक्ष रघुवेन्द्र सिंह ने बताया ‘यह मुद्दा मुख्यत: ईएफआई के संगठन और उसके चुनावों में मतदान को लेकर है। ईएफआई संगठनात्मक तौर पर क्लब्स को स्टेट एसोसिएशन्स के विरुद्ध तरजीह देती है। साथ ही उन्होनें यह भी बताया कि घोड़ों को खिलाड़ी मानना ठीक नहीं है। बाकी खेल उपकरणों की तरह उन की आयात पर टैक्स नहीं लगता। अगर उन्हें खिलाड़ी माना गया तो विदेशी घोड़ों को भारत के लिए इस्तेमाल करना भी गैरकानूनी है।

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क्यों है इस खेल में क्लबों का इतना दबदबा?
देश में घुड़सवारी के लिए विदेशी घोड़े इंपोर्ट किये जाते हैं। इन घोड़ों के आयात और देख-भाल में बहुत लागत और मेहनत लगती है। राइडिंग क्ल्बज के पास इन आवश्यकताओं के लिए संसाधन और सुविधाएं हैं। इसके चलते क्लबों का इस खेल में इतना दबदबा है।

कुछ खेलों में देशी घोड़े भी कम नहीं
नेजाबाजी और लंबी दौड़ों में देशी घोड़ों का प्रदर्शन बेहतरीन रहता है। 
चेतक भी था देशी घोड़ा राजस्थान में देशी घोड़ों की तीन प्रसिद्ध प्रजातियां मेवाड़ और मारवाड़ में मारवाड़ी, बाड़मेर और जैसलमेर में सिंधी, और गुजरात के सौराष्ट्र इलाके से लाए गए काठियावाड़ी।  
चेतक काठियावाड़ी नस्ल का घोड़ा था जो महारणा को गुजरात के एक चारण व्यापारी ने बेचा था। मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन लिखते समय यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट में है। अदालत का फैसला जो भी रहे, दोनों पक्ष अपने घोड़ों के प्रति अतिसंवेदनशील हैं। मानो इस बात पर सहमति हो कि चेतक महाराणा का साथी जरूर था।

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