उपेक्षा के आंसू बहा रही हाड़ौती की पुरासम्पदा

कागजों से बाहर नहीं आ पाती संरक्षण की कवायद

उपेक्षा के आंसू बहा रही हाड़ौती की पुरासम्पदा

मंदिर की बेशकीमती मूर्तियों को चुरा ले गए चोर ।

कोटा। पुरासंपदा में देश-प्रदेश में सबसे ज्यादा संपन्न होने के बावजूद हाड़ौती क्षेत्र संरक्षण को तरस रहा है। हाड़ौती के कोटा, बारां, बूंदी व झालावाड़ा जिले में प्रारंभिक पाषाणकाल, मध्य पाषाणकाल, उत्तर पाषाणकाल, ताम्रयुग, लोहयुग, जनपद, मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्तकालीन सभ्यताओं से लेकर ब्रिटिशकाल तक के प्रमाण बिखरे पड़े हैं। 5वीं से 14वीं शताब्दी के दर्जनों मंदिर हैं। हर काल की कलाएं हैं। इसके बावजूद पुरातत्व विभाग इन पुरासम्पदाओं को सही ढंग से सहेज नहीं कर पा रहा है। कई स्थानों पर ऐतिहासिक धरोहर दुर्दशा की शिकार हो रही है। प्राचीन मंदिर खण्डहर में तब्दील होते जा रहे हैं। सरकार पुरा सम्पदाओं के संरक्षण के दावे तो करती है, लेकिन सरंक्षण की कवायद कभी भी कागजों से बाहर नहीं आ पाई है।  

कोटा: इन मंदिरों को जीर्णोद्धार की दरकार
जिले के अयाना क्षेत्र में प्राचीन शिव मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है। इस मंदिर की बेशकीमती मूर्तियों को कुछ साल पहले चोर चुरा ले गए थे और कई मूर्तियों को खंडित कर दिया था। अभी भी काफी संख्या में मूर्तियां मंदिर परिसर में पड़ी हुई है। जो रखरखाव के अभाव में जमींदोज होती जा रही है। मंदिर की सुरक्षा के नाम पर अनुबंध पर एक सुरक्षा गार्ड लगा रखा है, जो रात को नहीं रहता है। जिससे यहां की बेशकीमती मूर्तियां भगवान भरोसे ही है। कंसुआ स्थित कर्णेश्वर महादेव मंदिर और चारचौमा स्थित शिवालय सदियों पुरानी धरोहर है। हालांकि इन मंदिरों के जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है, लेकिन विभाग को इसके लिए काफी कम बजट मिला है, ऐसे में कम बजट विरासत को सहेजने में मुश्किल हो सकती है।

बूंदी में ऐसे हो रही दुर्दशा
जिले में सबसे ज्यादा शैलचित्र, शुतुरमुर्ग के अंडे, 5वीं से 14वीं शताब्दी के दर्जनों मंदिर हैं। हर काल की कलाएं हैं। कमलेश्वर में 9वीं-10वीं शताब्दी की अधगढ़ मूर्तियां और पूरी वर्कशॉप, गुप्तकाल का सफेद सैंड स्टोन से निर्मित 5 फुट ऊंचा एकमुखी दुर्लभ शिवलिंग भीमलत क्षेत्र में जंगल में पड़ा है। 10 साल पहले यह साबुत था, समाजकंटकों ने खोदकर बाहर फेंक दिया, दो टुकड़े हो गए। ऐसे ही दो एकमुखी शिवलिंग चंबल-मेज नदी के संगमस्थल पाली गांव में मौजूद हैं। बीजमाता मंडावरा के पास बड़ी संख्या में एक हजार साल से पुरानी मूर्तियां खुले में पड़ी है, जो तस्करों-समाजकंटकों से बची हुई है, लेकिन अब इनकी सुरक्षा की दरकार है।

पर्यटन के लिहाज से विकसित करें अथवा इनका निष्पादन करें
हाड़ौती के बारां जिले में पुरासम्पदा की भरमार है। जिला मुख्यालय से कुछ दूर स्थित रामगढ़ में भंडदेवरा मंदिर काफी प्रसिद्ध है। हालांकि इसके संरक्षण के लिए प्रयास किए गए हैं, लेकिन वह नाकाफी हैं। दूर से भंडदेवरा बस पत्थरों का टीला नजर आता है। प्रतिमाओं के साथ मंदिर की सुंदरता बढ़ाने वाले कलात्मक झालर व खंभ टूट कर गिर चुके हैं। इन प्रतिमाओं का सौंदर्य बढ़ाने वाली सामग्री जर्जर होती जा रही है। अभी इस विरासत को संरक्षित किया जा सकता है। इसके अलावा बारां जिले में कई किले बने हुए हैं, जो समय के साथ-साथ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हँै।

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झालावाड़ - आकर्षण का केन्द्र कोलवीं की गुफाएं
जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर कोलवी नामक गांव में चट्टानों को काटकर बनाई गई बौद्ध गुफाएं राजस्थान में बौद्धकालीन संस्कृति के अवशेष के रूप में अपना विशेष महत्व रखती हैं।  गुफाओं पर हिन्दु शैली के मंदिरों का तथा स्तूप शिखर पर दक्षिण भारतीय कला का प्रभाव नजर आता है। यहां बनी दो मंजिली गुफाएं विशेष रूप से दर्शनीय हैं। कुछ गुफाओं में भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं एवं दीवारों पर रेखांकन नजर आता है। कोलवी से 12 किलोमीटर बिनायका में भी पहाड़ी पर चट्टानों को काटकर 16 गुफाएं बनाई गई हैं। पगारिया गांव के समीप हथियागोड़ की पहाड़ी पर भी 5 गुफाएं बनी हैं। इनकों भी संरक्षण की दरकार है।

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प्रारंभिक पाषाणकाल, मध्य पाषाणकाल, उत्तर पाषाणकाल, ताम्रयुग, लोहयुग, जनपद, मौर्य, शुंग, कुषाण से लेकर ब्रिटिशकाल तक के प्रमाण बिखरे पड़े हैं। बिखरी पुरा संपदाओं को सहेजने के लिए साइट म्यूजियम जरूरी है, ताकि धरोहरें संरक्षित हो सके और लोगों की पहुंच में आ सके। वहीं बिखरी पड़ी पुरासम्पदाओं को मंदिरों के आसपास ही स्थापित किया जा सकता है। ताकि भावी पीढ़ी इन धरोहर से रूबरू हो सकें।
- ओमप्रकाश, पुरा अन्वेषक 

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हाड़ौती की ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए इन क्षेत्रों में पर्यटकों की आवाजाही बढ़ानी होगी। इसके लिए पहले धरोहरों स्थलों को पर्यटन के लिहाज से विकसित करना होगा, ताकि पर्यटकों की इन क्षेत्रों के बारे में पूरी जानकारी मिल सके। इन क्षेत्रों का व्यापक प्रचार-प्रसार भी होना चाहिए। इसके लिए विभिन्न संगठनों की मदद ली जा सकती है।
- अनिरुद्ध सिंह, ट्यूरिस्ट गाइड

हाड़ौती की पुराम्पदाओं के बारे में अधिकांश पर्यटकों को पता ही नहीं होता है। यहां पर कई पर्यटक बाहर से आते हैं, उनके लिए निजी ट्रैवल्स संचालक वाहनों की व्यवस्था करते हैं। पुरातत्व विभाग को चाहिए कि इन ट्रैवल्स संचालकों से सम्पर्क कर उन्हें पुरा स्थलों तक ले जाने के लिए चर्चा करें ताकि वहां पर पर्यटन गति पकड़ सके।
- महेन्द्र सिंह, ट्रैवल्स संचालक

हाड़ौती में पुरासम्पदाओं के सरंक्षण के लिए हर संभव प्रयास किए जाते हैं। अधिकांश प्राचीन विरासत को सहेजने के लिए प्रत्येक जिलों में संग्रहालय बना रखे हैं। इनमें कई पुरासम्पदाओं का संरक्षण किया जा रहा है। जिलों में दूरदराज प्राचीन धरोहरों की सुरक्षा के लिए अनुबंध पर कर्मचारी लगा रखे हैं। वहीं बजट आने पर समय-समय पर प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार भी करवाया जाता है।
- ललित कुमार, वरिष्ठ लिपिक, पुरातत्व विभाग कोटा

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