नल घुमाओ और पानी, आसां नहीं जलवीरों की कहानी...
राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल सेंचुरी में अकेलगढ़ और मिनी अकेलगढ़ ईको सेंसेटिव जॉन में
जान दांव पर लगा 15 लाख लोगों का जीवन बचा रहे जल कर्मचारी।
कोटा। जंगल की घनघोर काली रात, सन्नाटों को चीर दिल दहलाती पम्प मशीनों की भयानक गड़गड़ाहट, खौफ का आभास कराती झाड़ियों में छिपे अनजान खतरों की सरसराहट, चंबल की कराइयों में गूंजती जंगली जानवरों की डरावनी आवाज, पग-पग पर सरीसृप से जान का जोखिम, यह किसी फिल्म का क्लाइमेक्स नहीं बल्कि घरों तक पानी पहुंचाने वाले जलवीरों की संघर्ष और चुनौतियों से भरी कहानी है...., पेश है खास रिपोर्ट.....। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक न जाने कितनी बार हम पानी का इस्तेमाल करते हैं। क्या पानी तक हमारी पहुंच इतनी आसान है कि नल खोलो और प्यास बुझा लो, बिलकुल नहीं..., इसके पीछे 200 से ज्यादा जल कर्मचारियों का अथाह संघर्ष है, जिसे हम महसूस तक नहीं करते। यह महज जल कर्मचारी नहीं बल्कि जलवीर हैं, जो राष्टÑीय चंबल घड़ियाल सेंचुरी के घने जंगलों में जंगली जानवरों के बीच पूरी रात आंखों में काट हर दिन अपनी जान दांव पर लगाते हैं, तब जाकर आप और हम तक पानी पहुंचता है। दैनिक नवज्योति की खास रिपोर्ट में पढ़िए पानी की अनछुई कहानी....।
दिनरात जुटते 200 कर्मचारी तब मिलता पानी
शहर की आबादी करीब 15 लाख है। जिन्हें 24 घंटे शुद्ध पानी उपलब्ध कराने के लिए अकेलगढ़ और मिनी अकेलगढ़ पम्प हाउस पर करीब 200 कर्मचारी तैनात हैं, जो 8-8 घंटे की तीन शिफ्ट में दिन-रात डटे रहते हैं। यहां तीन पम्प स्टेशन हैं, जो चंबल की कराइयों में लगे हैं। जिनसे पम्प हाउस, कंट्रोल रूम, फिल्टर प्लांट जुड़े हैं, जो आपस में काफी दूरी पर हैं। ऐसे में जल शोधन की प्रक्रिया के दौरान पानी का सैंपल लेने, 24 घंटे मशीनों की रीडिंग, बिजली का वोल्टेज, पानी का प्रेशर, टेस्टिंग सहित अन्य कार्यों के लिए कर्मचारियों को अलग-अलग सयंत्रों में आना-जाना पड़ता है। ऐसे में जंगली जानवरों व सरीसृपों से जान का खतरा बना रहता है, तब जाकर शहरवासियों को पानी मिलता है।
प्री क्लोरिनेशन से सप्लाई तक का संघर्ष
चंबल से घरों तक पानी पहुंचाने के पीछे कर्मचारियों को प्री-क्लोरिनेशन से सप्लाई तक चार प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। यहां आरयूआईडीपी, वर्ल्डबैंक और ओल्ड पम्प हाउस को मिलाकर कुल 320 एमएलडी अशुद्ध पानी को फिल्टर करने के लिए इनलेट में पहुंचाया जाता है। जिसे शुद्ध करने के लिए प्री-क्लोरिनेशन की जाती है। इसके बाद पोस्ट क्लोरिनेशन यानी फिल्टर प्रक्रिया अपनाई जाती है। जिसमें बारीक रेत, मिट्टी व अन्य पार्टिकल्स को पानी से शुद्ध किया जाता है। इसके बाद पानी की गुणवत्ता जांचने के लिए लैब में शुद्ध पानी के सैंपल भेजे जाते हैं। जहां, सीनियर कैमिस्ट पानी में टीडीएस, प्लोराइड, मिनरल्स सहित अन्य पैरामीटर की बारिकी से जांच करते हैं। पानी की क्वालिटी निर्धारित मापदंड पर खरी उतरने के बाद ही घरों तक पानी की सप्लाई की जाती है। इन प्रक्रियाओं को पूरा करने में कर्मचारियों व अधिकारियों संघर्ष व मेहनत लगती है।
जंगल में हर रात डरावनी, खतरे में रहती जान
रावतभाटा रोड स्थित अकेलगढ़ पम्प हाउस राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल सेंचुरी में है और सकतपुरा मिनी अकेलगढ़ ईको सेंसेटिव जोन है। दोनों ही पम्प हाउस घने जंगलों से घिरे हैं। जहां हिंसक वन्यजीव पैंथर, भालू, जरख, हायना, भेड़िया व मगरमच्छ, अजगर, कोबरा सहित अन्य जहरीले जीव-जंतुओं की भरमार है। जंगल की काली रात के सन्नाटे को चीरती पम्प मशीनों की भयानक आवाजों के बीच कर्मचारी हर घंटे प्लांट से कंट्रोल रूम तक पानी की रीडिंग व सैंपल देने के लिए 1 से डेढ़ किमी का रास्ता तय करते हैं।
छुट्टी के दिन भी करते हैं काम
सरकारी दफ्तरों में शनिवार व रविवार को अवकाश होता है लेकिन अकेलगढ़ फिल्टर प्लांट व पम्प हाउस में कर्मचारी तीनों शिफ्टों में काम करते हैं। यहां छोटे-बड़े मिलाकर करीब 35 पम्प हैं। जिनके माध्यम से अशुद्ध पानी को फिल्टर कर शुद्ध किया जाता है। इसके लिए ब्लिचिंग, एलम व क्लोरिन के साथ पानी की डोजिंग की जाती है। वहीं, अधिकारी भी दिन में तीन बार शहर की सप्लाई से जुड़े सेंट्रल वायर रिजर्व लाइनों व कंट्रोलरूम पर रिडिंग की मॉनिटरिंग करते हैं।
जब पूरा शहर नींद की आगोश में रहता है, तब घने जंगलों में कर्मचारी पूरी रात जगते हैं। चंबल से पानी लिफ्ट से फिल्टर करने तक अथाह मेहनत, संघर्ष और करोड़ों रुपयों का संसाधन लगता है। कई बार परिस्थितियां विपरीत रहती है, फिर भी तमाम चुनौतियां व बाधाएं पार कर जलकर्मी पानी पहुंचाने को तत्पर रहते हैं। शहरवासियों से आग्रह है कि वह पानी का मोल समझे और अमृत को व्यर्थ होने से बचाएं ताकि भीषण गर्मी में अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक पानी पहुंच सके।
- डीएन व्यास, एडिशनल चीफ इंजीनियर जलदाय विभाग
अकेलगढ़ व सकतपुरा फिल्टर प्लांट को मिलाकर करीब 200 कर्मचारी तैनात हैं, जो 24 घंटे शहरवासियों को शुद्ध पानी देने के लिए जुटे रहते हैं। अवकाश के दिन भी बिना शिकायत अपना फर्ज निभा रहे हैं। पानी की सप्लाई नियमित रूप से सुचारू रखना आसान काम नहीं है। शहरवासियों को जल का महत्व समझना चाहिए। घरों में नियमित पानी की सप्लाई कर्मचारियों की हाड़तोड़ मेहनत का नतीजा है। लोग पानी का मोल समझे और सद्ुपयोग करें।
- प्रकाशवीर नथानी, एक्सईएन जलदाय विभाग
चंबल से घरों तक पानी की पहुंच आसान नहीं है। इसमें दिन-रात का संघर्ष जुड़ा है। कभी ट्रांसफॉर्मर खराब हो जाते तो कभी मोटर जल जाती, जिससे जल शोधन प्रभावित हो जाता। वहीं, कई बार पम्प हाउस में तकनीकी खराबी से परिस्थितियां विपरीत हो जाती है, लेकिन दृढ़ प्रतिबद्धता से बंधे कर्मचारी बिना शिकायत अपना कर्तव्य निभाने को मुस्तैद रहते हैं।
- विमल नागर, एईएन अकेलगढ़ पम्प हाउस
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