अस्पताल में हो रहा महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़
उपचार के नाम पर हो रहा निजता के अधिकार का उल्लंघन, आत्मसम्मान से हो रहा समझौता
जिले के राजीव गांधी राजकीय चिकित्सालय में महिलाओं की लज्जा को दरकिनार कर उपचार किया जा रहा है। इससे यहां उपचार के लिए आने वाली हर महिला को शर्मसार होना पड़ रहा है। हालात यह है कि महिलाओं की सोनाग्राफी से लेकर सभी कार्य पुरूष ही करा रहे हैं। और महिलाओं की निजता व आत्मसम्मान के साथ समझौता किया जा रहा है ।
अलवर। जिले के राजीव गांधी राजकीय चिकित्सालय में महिलाओं की लज्जा को दरकिनार कर उपचार किया जा रहा है। इससे यहां उपचार के लिए आने वाली हर महिला को शर्मसार होना पड़ रहा है। हालात यह है कि महिलाओं की सोनाग्राफी से लेकर सभी कार्य पुरूष ही करा रहे हैं। लेकिन बेरहम चिकित्सा प्रशासन हर बार रेडियोलॉजिस्ट की कमी का रटारटाया जवाब देकर महिलाओं की निजता व आत्मसम्मान से जुडे इतने गंभीर मामले में भी इतिश्री कर देता है। शहर के किसी भी सोनोग्राफी सेंटर पर रेडियोलॉजिस्ट नहीं है।
सभी सोनोग्राफी सैंटर्स पर सामान्य चिकित्सक ही सोनोग्राफी करा रहे हैं। यहां तक कि जिस सोनोग्राफी सेंटर से चिकित्सालय का अनुबंध है, वहां भी रेडियोलॉजिस्ट नहीं है। यही नहीं ईसीजी रूम में मेल व फीमेल चिकित्साकर्मी लगा तो रखे हैं। लेकिन मात्र दिखावे की औपचारिकता के लिए यहां ईसीजी रूम में महिलाओं की निजता का कोई ध्यान नहीं रखा जाता। इस पीड़ा से उपचार के लिए यहां आने वाली हर महिला को हर दिन रूबरू होना पड़ता है।
लेकिन मजबूरी के चलते उन्हें यह सब कुछ सहन करना पड़ता है। जबकि कुछ महिलाएं अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए निजी अस्पतालों का रूख कर लेती हैं। जिले का सबसे बड़ा अस्पताल होने के बावजूद यहां इमजेंसी में आने वाली महिलाओं के लिए भी अलग से कोई महिला चिकित्सक की व्यवस्था नहीं है। बल्कि इंजेक्शन रूम में भी महिलाओं की प्राइवेसी का कोई ध्यान नहीं रखा जाता।
पिछले दिनों कोरोना काल में अस्पताल में आॅक्सीजन सिलेण्डरों की पर्याप्त व्यवस्था होने के बावजूद रोगियों को आॅक्सीजन के लिए तडपना पडा था। इससे मौत भी हुई। वजह केवल यह रही कि वार्ड ब्वाय ने आॅक्सीजन सिलेण्डर गाडी से उतारने से मना कर दिया था।
इसकी पूरी जानकारी अस्पताल प्रशासन को होने के बावजूद भी वार्ड में रोगी घण्टों आॅक्सीजन की कमी से तड़पते रहे। मानवीय मूल्यों को झकझोर देने वाले इस पूरे प्रकरण ने अस्पताल प्रशासन की घोर असंवेदनशीलता को उजागर करके रख दिया था। उसी दौरान महिला चिकित्सालय में कोरोना के पुरूष रोगियों के लिए वार्ड बनाया गया। इसमें भर्ती होने वाले पुरूष रोगियों को दर्द से कराहती अस्त-व्यस्त कपड़ों में बैड पर लेटी प्रसूता महिलाओं के बीच से होकर गुजरना पड़ता था।जिसे देखकर इंसानियत भी शर्मसार होती रही।
खुद चिकित्सालय से जुडे एक स्वास्थ्यकर्मी ने आगे बढकर अपनी पीडा व्यक्त करते हुए इसे बेहद शर्मनाक बताया। दबी जुबान से उसका यही कहना था, कि अस्पताल की व्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार अधिकारी केवल निजी स्वार्थवश मंत्रीजी के कार्यालय व उनके हर कार्यक्रम में हाजिरी देने को ही अपनी जिम्मेदारी समझने लगे हैं।
केस नंबर एक : शहर के शिवाजी पार्क निवासी एक महिला ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अस्पताल में उपचार के लिए जाने पर महिलाओं को मानसिक यातना से भरे दौर से गुजरना पड़ता है। सोनोग्राफी के दौरान उन्हें शर्मसार होना पडा। अस्पताल में महिला को भी इंजेक्शन लगाने व टांके के काटने से लेकर हर कार्य पुरूष ही करते हैं। यह निजता के अधिकार का घोर उल्लंघन है। अस्पताल में कोई प्राइवेसी नहीं है। इस कारण अस्पताल जाने के नाम से भी वे असहज हो जाती है। वे मिडिल क्लास परिवार से हैं, लेकिन आत्मसम्मान के लिए अब वे निजी चिकित्सालय में उपचार कराती हैं।
केस नंबर दो : ग्रामीण क्षेत्र की एक महिला ने बताया कि, उन्हें पेट में तकलीफ होने पर रात्रि के समय इमजेंसी में दिखाना पडा। वहां केवल पुरूष चिकित्सक होने के कारण वह घबराहट व शर्म के कारण अपनी बीमारी के बारे में भी चिकित्सक को सही से नहीं बता पाई। सुबह जब सोनोग्राफी कराने आई तब पुरूष चिकित्सक के सोनोग्राफी कराने के कारण अपनी लज्जा बचाने के लिए बाहर रूपए देकर सोनोग्राफी कराई। इसके बाद निजी चिकित्सालय में महिला चिकित्सक से चिकित्सा परामर्श लिया।
उन्होंने उनकी जैसी अन्य महिलाओं के लिए महिलाओं से ही उपचार व इंजेक्शन आदि की अलग से व्यवस्था कराए जाने की बात कही। जहां पुरूषों की दखलंदाजी किसी भी रूप में ना हो। ताकि उनकी तरह अन्य महिलाओं को कोई तकलीफ ना हो और वे बिना शर्म व संकोच के इलाज करा सकें। पीएमओ डॉ. सुनील चौहान से जब इस संबंध में जानकारी चाही गई तो उनका फोन बंद आया।
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