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मिल गया फ्री हैण्ड : चर्चा कंपाउण्ड इंटरेस्ट की : जुगाड़ टीआरपी बढ़ाने का : डिजायर बनी हुण्डी : अपने ही बने गले फांस :

मिल गया फ्री हैण्ड
जोधपुर वाले भाईसाहब ने शनि को अपने ही घर में मुंह क्या खोला, कइयों की हालत खराब हो गई। भाईसाहब की जुबान की तरकश से निकले तीर के अपने-अपने हिसाब से मायने निकाले जा रहे हैं। सामने वाले भाई लोग इसे अपने कॉन्फिडेंस से ओवर कॉन्फिडेंस करार देने में कोई कसर नहीं छोड़ नहीं रहे। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि मारवाड़ के गांधीजी भी गांधी जयंती पर गांधीवादी तरीके से सामने वालों को जवाब देने के लिए छह महीनों से मौके की तलाश में थे। अब जब मौका मिला तो दिल्ली से फ्री हैण्ड मिलने के बाद इशारों ही इशारों में सामने वाले दोनों खेमों को संकेत दे दिया कि स्याळ के उतावल करने से बेर नहीं पकते।   


चर्चा कंपाउण्ड इंटरेस्ट की
सूबे में इन दिनों पॉलिटिक्ल इंटरेस्ट को लेकर काफी चर्चा है। इंटरेस्ट भी सिम्पल रेट नहीं, बल्कि कंपाउण्ड रेट वाला है। इन्दिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने पर आने वाला हर वर्कर इस इंटरेस्ट की रेट की चर्चा किए बिना नहीं रहता। चर्चा है कि जोधपुर वाले अशोक जी भाईसाहब ने सामने वालों से सारा मूलधन भी इंटरेस्ट समेत वसूल लिया। साल भर का इंटरेस्ट तो लोक लिहाज के चलते सिम्पल इंटरेस्ट रेट से वसूल लिया, लेकिन अब आगे का ब्याज कंपाउण्ड रेट से लेने से पक्का मूड बना चुके हैं। अब समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।


जुगाड़ टीआरपी बढ़ाने का
    आजकल टीआरपी को लेकर कइयों के चेहरे पर चिंता की लकीरें हैं। टेलीविजन रेटिंग पॉइंट जिसकी कम हो, समझा जाता है कि वह कुछ भी नहीं है। राज के नवरत्न भी टीआरपी को लेकर खोये-खोये से हैं। जब से चैनल वाले भाई लोगों ने टीआरपी मापने का यंत्र लगाया है, तब से हर कोई अपनी टीआरपी बढ़ाने की जुगाड़ में है। जोधपुर वाले भाई साहब के बाद पहियों  वाले महकमें के भाई साहब टीआरपी बढ़ाने का जुगाड़ ढूंढ कर फिलहाल नंबर दो पर टिके हैं। अब देखो ना प्रेस नोट जारी होने के बाद भी भाइया सोशल मीडिया पर आना नहीं भूलते हैं।


डिजायर बनी हुण्डी
    गांवों की सरकार के चुनावों में हाथ वाले कई भाई लोगों का कई महीनों के सपने पूरे हो गए। होते भी क्यों नहीं, बेचारों ने पीएचक्यू से लगा कर सीएमओ तक ऐड़ियां घिस ली थी, मगर अपने बेटों-बेटियों की सिफारिशों पर कमाऊ पूतों को मन माफिक कुर्सियों पर नहीं बिठा पाए थे। पूर्वी दिशा के कुछ भाई लोगों की तो अपने समाज में किरकिरी तक होने की नौबत आ गई थी। बाड़ाबंदी के बीच फाइव स्टार होटल में लगी लॉटरी से उनकी डिजायर भी बाजार में हुण्डी की तरह चल पड़ी। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि सबसे ज्यादा दुर्गति तो खाकी वाले साहब लोगों की हुई, जिनको मन मारकर ऐसे लोगों को मलाईदार कुर्सियों पर लगाना पड़ा, जिनकी वे कोसों तक शक्ल देखना पसंद नहीं करते थे। 

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अपने ही बने गले फांस
कहावत है कि राजनीति में कब किसका पक्षधर बन जाए और कब किसकी खिलाफत कर बैठे, पता ही नहीं चलता। अब देखो ना राज के पक्ष के दो पंच इन दिनों अपनी लाल आंखें दिखाने में कोई कसर छोड़ रहे। इनमें से एक पूर्वी राजस्थान में गंभीरी नदी का पानी पी पीकर राजनीति करते हैं, तो दूसरे की नस-नस में चंबल का पानी दौड़ रहा है। दोनों ही करप्शन की आड़ में अपने ही राज की जमकर खिंचाई कर रहे हैं। अब इनको कौन समझाए कि यह पब्लिक है, सब जानती है कि मनमाफिक काम हो जाए तो अफसर बहुत बढ़िया, वरना भ्रष्ट करार देने में ना तो आगा सोचना पड़ता है और न ही पीछा।


एक जुमला यह भी
इन दिनों राज का काज करने वालों की जुबान पर एक जुमला जोरों पर है। वो भी सफेद रंग वालों को लेकर। लंच केबिन में चर्चा है कि राज किसी का भी हो, सफेदी वालों की कुछ ज्यादा ही चलती है। आजकल तो ऊपर से नीचे तक सफेदी में रंगे लोगों की पहचान के लिए कोड शब्दों का प्रयोग भी होने लगे हैं। सत्ता के गलियारों में छोटी आस्तीन की बुशर्ट और पायजामा के साथ पगरखियां भी धौळी हो, समझते देर नहीं लगती की भाईसाहब असल में जमीन से जुड़े हैं। जमीन से जुड़े किसी भाईसाहब के यहां जश्नों में भी इन धौळों को पंक्तिवार खड़े देख कर हर कोई समझ जाता है कि साहब कौन से धंधे से जुड़े हैं।   

          एल. एल. शर्मा

  (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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