हिप्पो, हॉकडियर, ऊदबिलाव- ये नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में ही प्रदेश के दूसरे बायोलॉजिकल पार्कों में फिलहाल इनकी उपस्थिति नहीं

यहां वन्यजीवों में हो रहा सफल प्रजनन भी

हिप्पो, हॉकडियर, ऊदबिलाव- ये नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में ही प्रदेश के दूसरे बायोलॉजिकल पार्कों में फिलहाल इनकी उपस्थिति नहीं

नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क आकर विजिटर्स विभिन्न प्रजातियों के देख पाते हैं

जयपुर। नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क आकर विजिटर्स विभिन्न प्रजातियों के देख पाते हैं। यहां कई ऐसे वन्यजीव भी हैं, जिनकी उपस्थिति प्रदेश के दूसरे बायोलॉजिकल पार्कों में नहीं दिखाई देती। इनमें सबसे पहला नाम हिप्पो का आता है। यहां इनकी संख्या 4 है, जिनमें दो नर और दो मादा हिप्पो शामिल हैं। इसके साथ ही नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में दो ऊद्बिलाव, 10 से अधिक चौसिंघा, 20 से अधिक बार्किंग डियर, 8 से अधिक सिक्का डियर, 6 हॉक डियर, 2 बारहसिंघा और 1 कबर बिज्जू शमिल हैं। यहां आकर विजिटर्स में सबसे अधिक उत्सुकता शेर, बाघ के बाद हिप्पो फैमिली को देखने की देखी जाती है। इन प्रजातियों के वन्यजीव प्रदेश के दूसरे बायोलॉजिकल पार्कों में नहीं देखी जाती।

सफल प्रजनन से बढ़ रही संख्या 
नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में विभिन्न प्रजातियों के वन्यजीवों में सफल प्रजनन हो रहा है। जानकारी के अनुसार भालु में 3, बाघ में दो, लायन में दो, हाइना में 5 बार सफल प्रजनन हुआ है। जो इनकी संख्या बढ़ाने में सहायक है। यहां घड़ियालों की संख्या 10 और मगरमच्छ की संख्या करीब 10 बताई जा रही है।

सफल प्रजनन से वुल्फ के बाद अब ये भी विकल्प
बायोलॉजिकल पार्क में विभिन्न वन्यजीवों में सफल प्रजनन हो रहा है। इसी का नतीजा है कि देश के दूसरे राज्यों से होने वाले एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत अब वुल्फ के बाद भालु, चौसिंघा, चिंकारा, हाइना, घड़ियाल भी विकल्प के तौर पर उभरे हैं। इससे पहले यहां से एक्सचेंज कार्यक्रम में वुल्फ की डिमांड ज्यादा रहती थी। इनके बदले नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में शेर, बाघ सहित अन्य वन्यजीव यहां लाए गए थे। 

ऊदबिलाव

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  • भारत में स्मूथ-कोटेड ऊदबिलाव, एशियाई छोटे पंजों वाला ऊदबिलाव और यूरेशियन ऊदबिलाव पाई जाती हैं। ये मीठे पानी की झीलों, नदियों, दलदलों और समुद्री किनारों पर रहते हैं।
  • ऊदबिलाव के शरीर का आकार लंबा और पतला होता है। जिससे यह पानी में तेजी से तैर सकता है। इनके पंजे झिल्लीदार होते हैं, जो इन्हें कुशल तैराक बनाते हैं।
  • मोटी और चमकदार फर इन्हें ठंडे पानी में गर्म रखती है। ऊदबिलाव मांसाहारी होते हैं और मुख्यत: मछली, झींगा, केकडेÞ और अन्य छोटे जलीय जीव खाते हैं।
  • ऊदबिलाव बहुत ही मिलनसार और खेलप्रेमी होते हैं। वे अक्सर एक-दूसरे के साथ खेलते हुए देखे जा सकते हैं। ये समूह में रहना पसंद करते हैं। जिसे ‘राफ्ट’ कहा जाता है। मादा ऊदबिलाव आमतौर पर एक बार में 2-4 बच्चों को जन्म देती है।

हिप्प

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  •  -हिप्पो का वजन 1,500 से 3,000 किलोग्राम तक होता है। इनकी त्वचा मोटी और गुलाबी ग्रे रंग की होती है।। यह पानी से बाहर निकलने पर धूप से बचने के लिए तेल जैसा पदार्थ छोड़ती है।
  • आहार में शाकाहारी होते हैं और मुख्यत: घास खाते हैं, लेकिन पानी के पौधे भी खाते हैं। इनका जीवनकाल 40 से 50 वर्ष के बीच होता है। ये समूह में रहते हैं। ये पानी के भीतर लगभग 5 मिनट तक सांस रोक सकते हैं।
    अपनी ताकत और आक्रामकता के कारण इन्हें खतरनाक माना जाता है।

सांभर डियर 

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  • सांभर एशिया में पाया जाने वाला सबसे बड़ा हिरण है और भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया में आम है।
  • यह मुख्यत: जंगलों, घास के मैदानों और पर्वतीय क्षेत्रों में रहता है।
  • इसका वजन100-350 किलोग्राम होता है। शरीरगहरे भूरे रंग होता है।
  • मादाएं नर की तुलना में हल्की होती हैं। सींग केवल नर के पास होते हैं।
  • आहार मुख्यत: पत्ते, फल, घास जलीय पौधे हैं। 

सिक्का डियर

  • सिक्का डियर पूर्वी एशिया के जंगलों में पाया जाता है और इसकी उपस्थिति जापान, चीन, कोरिया और रूस तक सीमित है।
  • इसे इसकी सुंदरता और जटिल धब्बेदार फर के लिए जाना जाता है।
  • इनका वजन वजन 50-100 किलोग्राम होता है।
  • शरीर में धब्बेदार फर जो गर्मियों में चमकीला और सर्दियों में गहरा हो जाता है।
  • सींग नर के पास होते हैं। जो पतले और सरल होते हैं।

नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में बाघ, शेर सहित अन्य वन्यजीवों में सफल प्रजनन हो रहा है। ऐसे में इनकी संख्या में भी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। 
- जगदीश गुप्ता, डीसीएफ

यहां विभिन्न प्रजातियों के वन्यजीवों में सफल प्रजनन हो रहा है। यहां करीब 27 विभिन्न प्रजातियों के करीब 200 से अधिक वन्यजीव हैं। सफल प्रजनन से ही देश के अन्य बायोलॉजिकल पार्कों से बायोलॉजिकल पार्क में कई आकर्षक वन्यजीव मिले हैं। अब वुल्फ के साथ ही भालु, घड़ियाल सहित अन्य वन्यजीवों की डिमांड आ रही है। इसके अतिरिक्त यहां शेर, बाघ और भेड़ियों के माइक्रोचिप भी लगाई जाती है। ताकि इनका जेनेटिक डेटा बनाया जा सके। 
- डॉ.अरविंद माथुर, वरिष्ठ वन्यजीव चिकित्सक, नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क 

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