बारिश के पानी को रोकने से बचेंगी ‘बरसाती नदियां’

बारिश के पानी को रोकने से बचेंगी ‘बरसाती नदियां’

अनेक जिलों में बहने वाली बरसाती नदियां सूख गई

 जयपुर। प्रदेश के चारों तरफ अनेक छोटी-बड़ी नदियां रही हैं, जो बरसात के दिनों में ही बहती थी। बीते कुछ सालों में बरसात के कम होने, बहाव क्षेत्र में जगह-जगह अतिक्रमण और बरसाती पानी का संरक्षण नहीं होने से नदियां वक्त के साथ काल-कवलित हो गई हैं। अब तो कई नदियां ऐसी हैं, जो सिर्फ कागजों में ही जिंदा हैं। आलम है कि भूगोल के विद्यार्थी भी बड़ी मुश्किल से नदियों के नाम जानते हैं, जबकि एक दौर ऐसा भी रहा है, जब सभी नदियां बरसात के दिनों में बहा करती थी।


क्यों दम तोड़ गई नदियां
आज बरसात का पानी मिट्टी काटता हुआ बह जाता है। उसे रोकने के लिए सभी लोगों को सामूहिक रूप से प्लानिंग बनाकर पानी के बहाव को रोकना पड़ेगा। ताकि ज्यादा से ज्यादा बरसाती पानी का उपयोग हो सके। यह कहना है-मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेन्द्र सिंह का। वे कहते हैं कि बरसात के पानी के तेज फ्लो को स्लो किया जाना चाहिए। आज देशभर के 72 प्रतिशत जलस्त्रोत और करीब 70 प्रतिशत नदियां सूख गई हैं।

क्या हैं सुझाव
     निजी क्षेत्र के ट्यूबवेल पर रोक।
    पौधरोपण के साथ सामुदायिक विके्रन्दीकरण जल प्रबंधन की आवश्यकता।
    राज्य सरकार नदियों के संरक्षण के लिए नए सिरे से करे विचार।
    नदी के बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण को हटाना बेहद जरूरी है।

संकल्प लिया और बहने लगी अरवली नदी

एक समय में पूरी तरह सूख गई अरवली नदी में बरसात के पानी को रोकने के लिए जब संकल्प लिया गया तो सभी ने बरसात की एक-एक बूंद बचाई थी। गांव के हजारों लोगों ने प्रकृति से कम से कम लेने और अधिक से अधिक देने का ही संकल्प किया और आज अरवली नदी बह रही है।


इनका कहना है
जगह-जगह ट्यूबवेल लगने और नदी के बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण होने से नदियां सूख गई हैं। बरसात के पानी के संरक्षण की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए। पानी को बचाने की मानसिकता बनानी होगी।
डॉ. एमएस राठौड़, निदेशक, पर्यावरण एवं विकास अध्ययन संस्थान, जयपुर


ऐसी नदियां जो कुछ जिंदा और कुछ सूख गई
अजमेर में साबरमती, सरस्वती,  खारी, डाई, बनास। अलवर में साबी, रूपाढेल, काली, गौरी, सोटा। बांसवाड़ा में माही, अन्नास, चैणी। बाड़मेर में लूनी, संूकड़ी। भरतपुर में चम्बल, बराह, बाणगंगा, गंभीरी, पार्वती। भीलवाड़ा में बनास, कोठारी, बेडच, मेनाली, मानसी, खारी। बूंदी में कुराल। धौलपुर में चम्बल। डूंगरपुर में सोम, माही, सोनी। श्रीगंगानगर में घग्घर। जयपुर में बाणगंगा, बांड़ी, डूंढ, मोरेल, साबी, सोटा, डाई, सखा, मासी। जैसलमेर में काकनेय, चांघण, लाठी, घऊआ, घोगड़ी। जालौर में लूनी, बांड़ी, जवाई, सूकड़ी। झालावाड़ में कालीसिंध, पर्वती, छोटी काली सिंध,  निवाज। झुंझनूं में काटली। जोधपुर में लूनी, माठड़ी, जोजरी। कोटा में चम्बल, कालीसिंध, पार्वती, आऊ निवाज, परवन। नागौर में लूनी। पाली में लीलड़ी, बांड़ी, सूकड़ी जवाई। सवाईमाधोपुर में चम्बल, बनास, मोरेल। सीकर में काटली, मंथा, पावटा, कावंट। सिरोही में पश्चिमी बनास, सूकड़ी, पोसालिया,खाती, किशनावती, झूला, सुरवटा। टोंक में बनास,मासी, बांड़ी। उदयपुर में बनास, बेडच, बाकल, सोम,जाखम, साबरमती। चित्तौड़गढ़ में बनास, बेडच, बामणी, बागली, बागन, औराई, गंभीरी, सीवान, जाखम, माही।

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