विजय दशमी : बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक

विजय दशमी : बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक

विजयादशमी पर्व : हमारे अंदर छिपी चेतना का जागरण और विषयों का त्याग ही विजयादशमी पर्व का मुख्य संदेश है।

दस प्रकार के महापापों से बचने का संदेश है यह विजय पर्व हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी से बचने और इन बुरी आदतों से दूर रहने प्रेरणा देता है।


आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार भी किया था, इसलिए भी इसे विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है, दशहरे पर अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की जाती है और विजय पर्व मनाया जाता है। दशहरे के दिन ही भगवान श्री राम ने अत्याचारी रावण का वध कर विजय हासिल की थी और कहा जाता है कि यह युद्ध 9 दिनों तक लगातार चला,इसके बाद 10वें दिन भगवान राम ने विजय हासिल की।


छिपे हुए संदेश
प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला विजयादशमी का पर्व महज राम-रावण का युद्ध ही नहीं माना जाना चाहिए। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक इस पर्व में छिपे हुए संदेश समाज को दिशा दे सकते हैं। स्वयं महापंडित दशानन इस बात को भलिभांति जानता था कि उसके जीवन का उद्धार राम के हाथों ही होना है। दूसरी ओर मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने भी रावण की विद्वता को नमन किया है।  


पर्व का मुख्य संदेश
हम प्रतिवर्ष अंहकार के पुतले का दहन कर उत्सव मनाते हैं, किन्तु स्वयं का अहंकार नहीं त्यागते हैं । हमारे अंदर छिपी चेतना का जागरण और विषयों का त्याग ही विजयादशमी पर्व का मुख्य संदेश है। आज हम विषयों के जाल में इस तरह उलझे हुए हैं कि स्वयं अपने अंदर चेतना और ऊर्जा को सही दिशा नहीं दे पा रहे हैं। रावण से परेशान जनता को खुशहाल जीवन प्रदान करने के लिए ही भगवान राम का अवतरण हुआ।

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आज के युग में

यह भी जानने योग्य प्रसंग है कि रावण वध के पश्चात स्वयं भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान लेने भेजा, किन्तु अंतिम सांसें ले रहे रावण ने लक्ष्मण की ओर देखा तक नहीं। बाद में स्वयं मर्यादा पुरूषोत्तम ने रावण के चरणों पर हाथ जोड़ते हुए ज्ञान प्रदान करने का निवेदन किया और रावण ने अपने अहंकार को त्यागते हुए गूढ़ ज्ञान प्रदान किया।

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