खरीदे करोड़ों के वाहन, खर्चा निगम का, कमाई संवेदकों की

संचालन व मरम्मत का दिया ठेका

खरीदे करोड़ों के वाहन, खर्चा निगम का, कमाई संवेदकों की

शहर की सफाई व्यवस्था का जिम्मा निभाने वाले नगर निगम ने करोड़ों रुपए के सफाई संसाधन खरीदकर रख तो लिए। लेकिन उन्हें चलाने के लिए न तो चालक हैं और न ही मरम्मत करने की सुविधा। ऐसे में अधिकतर वाहनों को ठेके पर दिया गया है।

कोटा । शहर की सफाई व्यवस्था का जिम्मा निभाने वाले नगर निगम ने करोड़ों रुपए के सफाई संसाधन खरीदकर रख तो लिए। लेकिन उन्हें चलाने के लिए न तो चालक हैं और न ही मरम्मत करने की सुविधा। ऐसे में अधिकतर वाहनों को ठेके पर दिया गया है। जिससे खर्चा तो नगर निगम का हुआ है और कमाई संवेदकों की हो रही है। कोटा में पहले एक ही नगर निगम था। जिसे कोटा उत्तर व कोटा दक्षिण में बांट दिया गया है। इसका कारण शहर को छोटे-छोटे वार्डों में बांटकर बेहतर सफाई का दावा किया जा रहा था। वार्डों और गली मौहल्लों में सफाई के नाम पर नगर निगम ने स्मार्ट सिटी, निगम बजट व राज्य सरकार के बजट से करोड़ों रुपए के सफाई के वाहन व संसाधन खरीदे हैं। अधिकतर वाहन ऐसे हैं जिन्हें खरीदने के बाद से अभी तक उनका उपयोग तक नहीं किया गया है। निगम ने जो वाहन व मशीनरी खरीदी है उनकी मरम्मत व चलाने तक की व्यवस्था निगम के पास नहीं है। ऐसे में नगर निगम ने जितने भी वाहन क्रय किए हैं। उनमें से अधिकतर संवेदकों को मरम्मत व संचालन(ओ एण्ड एम) के नाम पर ठेके पर दे दिया है। जिस पर भी लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। रोड स्वीेपर का ही ठेका करोड़ों में,नहीं हो सका उपयोग नगर निगम में शहर की सफाई के नाम पर चार रोड स्वीेपर मशीनें राज्य सरकार द्वारा क्रय कर भेजी गई हैं। जिनमें से दो-दो मशीनें दोनों निगमों को दी गई है। जानकारी के अनुसार करीब 50 लाख रुपए की एक मशीन है। करीब दो करोड़ रुपए की इन मशीनों का आने के बाद से अभी तक ट्रायल के अलावा अधिक उपयोग तक नहीं हो सका है। जिससे ये मशीनें निगम के गैराज व दशहरा मैदान में धूल खा रही हैं। सूत्रों के अनुसार ये मशीनें दिल्ली की फर्म से क्रय की गई हैं। इन मशीनों के संचालन व मरम्मत का ठेका भी निगम ने संबंधित फर्म को ही दे दिया है। यह ठेका तीन साल के लिए दिया गया है। जिसमें प्रत्येक मशीन का तीन साल का ठेका 53 लाख रुपए का है। यानि 18 लाख रुपए सालाना और करीब डेढ़ लाख रुपए महीना। इस तरह से एक रोड स्वीपर मशीन को एक मशीने चलाने पर उसका खर्चा करीब डेढ़ लाख रुपए आएगा। जिसमें डीजल नगर निगम का होगा। जबकि मशीन के खराब होने पर उसकी मरम्मत व चालक संवेदक फर्म का होगा। सूत्रों के अनुसार दिल्ली की फर्म होने से इन मशीनों को चलाने के लिए चालक व मरम्मत की जरूरत होने पर मैकेनिकों की व्यवस्था कैसे होगी। यह बड़ा सवाल है।इसी तरह से नगर निगम कोटा उत्तर में सलपर सकर मशीन को भी ओ एण्ड एम पर लाखों रुपए महीने का ठेका किया गया है। लेकिन अभी तक भी उन मशीनों का उपयोग नहीं हुआ। जबकि निगम इन वाहनों पर करोड़ों रुपए खर्च कर चुका है। कई अन्य वाहन भी उसी तरह से ठेके पर चलवाए जा रहे हैं। इसके बावजूद ये वाहन निगम की जमीन पर ही खड़े हो रहे हैं। उनकी न तो मरम्मत हो रही है और न ही उनका संचालन हो पा रहा है। सीवरेज मशीनें भी ठेके पर देने की योजना नगर निगम में अभी तक सीवरेज सफाई का काम मेनुअल हो रहा है। लेकिन अब डीएलवी व स्मार्ट सिटी के बजट से निगम में सीवरेज की मशीनें आ चुकी हैं। कोटा उत्तर व कोटा दक्षिण में करीब 20 से अधिक मशीनें हैं जिनकी क्षमता भी अलग-अलग है। सूत्रों के अनुसार अब इन मशीनों को भी ओ एण्ड एम के आधार पर चलाने की योजना है। जिसका भी टेंडर किया गया है। जिससे सीवरेज की सफाई मेनुअल की जगह इन मशीनों से होगी। कोटा दक्षिण में टिपर भी ठेके पर नगर निगम की हालत यह है कि घर-घर कचरा संग्रहण में लगे टिपरों को चलाने के लिए उनके पास चालक तक नहीं हैं। इस कारण से कोटा दक्षिण निगम के 80 वार्डों में दो-दो टिपरों के हिसाब से 160 टिपरों को ठेके पर चलाया जा रहा है। जिसमें टिपर निगम के हैं। जबकि उसके अलावा डीजल, मरम्मत व चालक संवेदकों के हैं। जिसकी एवज में निगम द्वारा संवेदकों को हजारों रुपए महीना संवेदक को भुगतान करना पड़ रहा है। वहीं कोटा उत्तर निगम में टिपर संचालक का ठेका नहीं होने से उन्हें’ होमगार्ड व सिविल डिफेंस के जवानों से चलवाया जा रहा है। लेकिन ये टिपर दशहरा मैदान में खड़े हो रहे हैं। यूं हो रहा निगम को घाट मशीनें क्रय तो कर ली गई लेकिन इन्हें काम नहीं लिया जा रहा। ऐसे में प्रतिवर्ष इनका डेप्रिशियशन हो रहा है। इसके साथ इन्हें रखने को जगह नहीं होने से निगम की जमीन पर ही यह खड़ी हुई धीरे-धीरे कंडम हो जाएंगी। दशहरा मैदान में इन्हें रखा गया था । अब दशहरा मैदान के सुधार पर ही लाखों रुपए खर्च होंगे। यदि यह संवेदक के स्थान पर होती तो निगम को यह खर्चा वहन नहीं करना पड़ता। दूसरा जब मशीनें काम ली जाएंगी तो एमओयू ज्यादातर बाहर की फर्मों के साथ है उस स्थिति में उसके चालक और आॅपरेटर आएंगे तभी वह चल सकेगी। खड़ी हुई मशीन की नियमित देखभाल भी संवेदक कंपनी नहीं कर रही है। वह तो ठेका लेकर चली गई है। ऐसे में कुल मिलाकर सारा घाटा निगम के हिस्से में आएगा। इनका कहना है निगम के वाहनों को ओ एण्ड एम पर देने का मकसद है कि वाहनों का संचालन व मरम्मत की जिम्मेदारी संबंधित संवेदक की होगी। जिसकी एवज में निगम उसे भुगतान करेगा। लेकिन वह भुगतान तभी होगा जब वाहन चलेगा। बिना वाहन चले कोई भुगतान नहीं किया जाएगा। नगर निगम कोटा दक्षिण में पानी के टैंकर, जेटिंग मशीन व ट्रेैक्टर ट्रॉलियों की जरूरत है। जिन्हे क्रय करने का प्रयास किया जा रहा है। - राजीव अग्रवाल, महापौर नगर निगम कोटा दक्षिण

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