सालों बाद फिर से अपनी जन्मस्थली उदपुरिया लौटे जांघिल पक्षी
पेटेंर्ड स्टॉर्क बर्ड परिवार के साथ अपनी जन्मस्थली उदपुरिया लौटे हैं
उदपुरिया में जांघिलों की चेहचहाट पक्षी प्रेमियों को आकर्षित कर रहे हैं। जांघिल पक्षियों ने कोटा के उदपुरिया को वर्ष 1995 में अपना घर बनाया था। उस समय यहां का भौगोलिक वातावरण पक्षियों के अनुकूल थी। तालाब का स्वच्छ पानी, बड़ी संख्या में घने पेड़ होने से यहां इन पक्षियों की बस्ती आबाद हुई।
कोटा। हाड़ौती में जांघिलों का प्रजनन केंद्र कहलाने वाले उदपुरिया सालों बाद फिर से पक्षियों की चहचहाट से गुलजार होने लगा है। पेटेंर्ड स्टॉर्क बर्ड परिवार के साथ अपनी जन्मस्थली उदपुरिया लौटे हैं। यहां करीब 150 पक्षी हैं। इन दिनों यह एरिया बर्ड वॉचर के लिए व्यू प्वाइंट बना हुआ है। यहां इनकी पसंदीदा विलायती बबूल पर घोंसले 3 दर्जन से अधिक बना लिए हैं। ये पक्षी जोड़े में होने से इनकी संख्या तीन सौ के करीब हैं। जांघिलों की चेहचहाट पक्षी प्रेमियों को आकर्षित कर रहे हैं।
उदपुरिया बन सकता है पर्यटन केंद्र
सरकार ध्यान दे तो यह उदपुरिया कैलादेवी पक्षी विहार जैसा खूबसूरत पर्यटन केंद्र बन सकता है। लेकिन, अफसोस की बात है, पर्यटन विभाग की लापरवाही के कारण उदपुरिया अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया। तालाब की पाल जगह-जगह से क्षतिग्रस्त हो गई। लगातार घटती पेड़ों की संख्या से जांघिलों ने पुश्तैनी घर छोड़ने को मजबूर हो गए। इसी का नतीजा है, कि वर्ष 2013 से जांघिलों ने उदपुरिया से मुंह मोड़ लिया और बारां जिले के अमलसरा क्षेत्र के तालाबों को बस्तियां बनाकर आबाद किया। भीलवाड़ा में भी इन्होंने आशियाने बनाए। इसके अलावा मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व क्षेत्र, रामगंजमंडी, उंडवा, चित्तौड़, जोधपुर समेत व अन्य जगहों पर भी इनकी मौजूदगी हो गई है।
पर्यटन विभाग को ध्यान देने की जरूरत
नेचर प्रमोटर एएच जैदी बताते है कि यहां पक्षियों का आना अच्छा संकेत है। लेकिन, पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन की ओर से तालाब के आसपास सुरक्षित जगहों पर पेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक पौधरोपण करवाए जाना चाहिए। साथ ही इनकी पंसदीदा विलायती बबूल के पेड़ लगाए जाना चाहिए, ताकि पर्याप्त घोंसले बनाने के लिए जगह मिल सके। विभाग को तालाब का पानी कम होते ही ये कार्य प्राथमिकता से करवाना चाहिए। क्योंकि इनकी पंसद विलायती बबूल है। अभी तालाब के किनारे सड़क के पास के पेडों पर घोंसले बनाए हैं।
ईको-टूरिज्म: पर्यटक स्थल बनाने की मांग
इको डेवलपमेंट कमेटी उदपुरिया की ओर से इस एरिया को इको टूरिज्म के अंतर्गत पर्यटक स्थल बनाने की मांग पिछले कई सालों से जनप्रतिनिधि एवं प्रशासनिक अधिकारियों से कर रही है। कमेटी अध्यक्ष एवं पूर्व सरपंच डॉ. एलएन शर्मा ने बताया कि पर्यटक स्थल घोषित होने के बाद यहां के स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे। समिति के प्रयासों से पिछले सालों में पर्यटक भी यहां आए हैं। साथ ही जांघिल पक्षियों की अठखेलियां देखकर मोहित हो उठे थे। शर्मा ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि यहां पक्षियों को देखने के लिए वॉच टावर बनाने, पार्किंग स्थल एवं सुलभ शौचालय का निर्माण, तालाब को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने और इसे पर्यटन स्थल घोषित करवाया जाए।
जांघिलों की विशेषताएं
- 20 नीड़ बना लेते हैं एक पेड़ पर
- 20 से 25 बरस है औसत आयु
- 3 से 5 अंडे देते हैं एक बार में
- 2 वर्ष में बच्चे हो जाते हैं वयस्क
- 6 हजार बच्चे जन्मे 22 साल में
- 150 करीब जांघिल हैं उदपुरिया में
2015 से अमलसरा में डाला डेरा
जैदी के मुताबिक सोरसन के अमलसरा में वर्ष 2015 में दर्जनभर घोंसले देखे गए, करीब 30 बच्चों से आशियाने चहके। अगले ही वर्ष वर्ष 2016 में घोसलों की संख्या 4 दर्जन तक पहुुंच गई और 110 के करीब बच्चों जन्मे थे। वर्ष 2017 में 8 दर्जन के करीब घोंसले बने और 120 बच्चों की किलकारी गूंजी। वर्ष 2018 में 7 दर्जन के करीब घोंसले देखे जा चुके हैं। हालांकि इसके गत वर्ष की तुलना में एक दर्जन घोंसले कम बने हैं, लेकिन बच्चों की संख्या में सिर्फ 10 की कमी आई है। वर्ष 2019 से अभी तक जांघिल अच्छी तादाद में मौजूदगी है।
भोजन-पानी की दिक्कत, पेड़ भी कम हुए
नेचर प्रमोटर एएच जैदी ने पक्षियों के यहां से पलायन करने की वजह बताते हुए कहा, वर्ष 1995 में कैला देवी पक्षी विहार से जांघिल पक्षियों ने कोटा के उदपुरिया को अपना घर बनाया था। उस समय यहां का भौगोलिक वातावरण पक्षियों के अनुकूल थी। तालाब का स्वच्छ पानी, बड़ी संख्या में घने पेड़ होने से यहां इन पक्षियों की बस्ती आबाद हुई। वर्ष 2015 तक उदपुरिया पक्षी विहार के रूप में आकार लेने लगा और पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी। लेकिन, वन व पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन की अनदेखी के कारण यहां मानवीय दखल बढ़ने लगा। इसी के साथ अतिक्रमण, खुले में शौच, पेड़ों की अवैध कटाई के साथ संदिग्ध गतिविधियां बढ़ने लगी। जिससे पक्षियों की आजादी में खलल होने लगा और भोजन-पानी की कमी समेत अन्य कारणों से ये पक्षी अपना घर बदलने पर मजबूर हो गए। उदपुरिया में दुनिया में आए नन्हे मेहमान जब बड़े हुए तो भोजन-पानी की दिक्कत उन्हें महसूस होने लगी। यहां पेड़ों की भी लगातार कम हो रही संख्या के चलते इन्होंने अन्य जगहों पर फैलना शुरू कर दिया।
पेड़ों पर अठखेलियां करती है आकर्षित
शहर से 25 किमी दूर राजपुरा का तालाब पेटेंर्ड स्टॉर्क बर्ड यानी जांघिलों से आबाद है। दिनभर यह पक्षी पेड़ों पर अठखेलिया करते रहते हैं। ये पक्षी 7 सालों से यहां आ रहे हैं लेकिन गत वर्ष 250 की संख्या में यहां आए थे। वर्तमान में यहां ब्रीडिंग पेंटेड स्टॉर्क की संख्या करीब 500 है। जांघिलों ने यहां पर देशी बबूल के 50 से ज्यादा पेड़ों पर घोंसले बनाए है।
अपने खर्चे पर पक्षियों की कर रहे निगरानी
हाड़ौती नेचुरल सोसाइटी के सदस्य श्याम जांगिड़ स्वयं के खर्चे पर उदपुरिया में जांघिल पक्षियों की देखभाल कर रहे हैं। साथ ही अवैध शिकार, संदिग्ध घुसपैठ रोकने के लिए निगरानी कर रहे हैं। इसके अलावा यहां आने वाले पर्यटकों को पाक्षियों की विशेषताएं, इतिहास से रूबरू करवाते हैं। इसी तरह राजपुरा तालाब में मौजूद पेटेंर्ड स्टॉर्क बर्ड की सुरक्षा में सुरेश नागर तैनात हैं। नागर अपने स्तर पर ही इन पक्षियों की निगरानी करते हैं।
1995 में उदपुरिया में दी दस्तक
उदपुरिया जांघिलों से 90 के दशक से आबाद है। 1995 से लेकर वर्ष 2015 तक इन्होंने उदपुरिया में लगातार अपनी बस्तियां बनाई। मोटे अनुमान के अनुसार यहां 6 हजार के लगभग नन्हें मेहमान जन्मे थे। वहीं, कई सीजन में 250 से अधिक नीड़ बनाए और 600 बच्चों ने उदपुरिया में जन्म लिया।
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