कृषि कानून वापस

कृषि कानून वापस

गुरुनानक देवजी के प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार की सुबह तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी। प्र

गुरुनानक देवजी के प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार की सुबह तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी। प्रधानमंत्री मोदी की इस घोषणा के बाद किसान संगठनों के नेताओं व राजनीतिक दलों की तरफ से तरह-तरह प्रतिक्रियाएं आना भी स्वाभाविक है। किसी ने कहा कि आखिर सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा, तो किसी ने इसे प्रधानमंत्री की दरिया दिली बताया। किसान नेताओं सहित कुछ राजनीतिक संगठनों ने प्रधानमंत्री के फैसले का स्वागत किया है। लेकिन इसके साथ किसान नेताओं के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि किसान संगठन न केवल कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे थे, बल्कि उनकी एक बड़ी मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी जामा पहनाने की भी थी, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ स्पष्ट नहीं कहा। सिर्फ यह कहा कि एमएसपी को प्रभावी बनाया जाएगा। इसके अलावा टिकैत ने स्पष्ट किया कि जब तक कृषि कानून वापस संसद के शीतकालीन सत्र में पूरी नहीं होती और एमएसपी को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं होती तब तक आंदोलन जारी रहेगा। सरकार को अब किसान संगठनों से बात करके स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। बातचीत के बाद ही आंदोलन की वापसी का अंतिम फैसला लिया जाएगा। गौरतलब है कि संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से शुरू हो रहा है और प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी सत्र में तीनों विवादित कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी की जाएगी। और यह जरूरी भी है क्योंकि संसद ने ही कानूनों को पारित किया गया था तो कानूनों को निरस्त करने का अधिकार भी संसद के पास ही है। मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि किसानों के हित सरकार की प्राथमिकता रही है। सरकार ने छोटे किसानों को लाभ देने के कई फैसले लिए हैं और तीनों कृषि कानूनों को भी किसान के हित में बनाया गया था, लेकिन हम किसानों को कानूनों के बारे में समझाने में असमर्थ रहे, जिसका हमें दु:ख है। यह सही है कि सरकार ने अपना अड़ियल रूख त्याग कर कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया है, लेकिन सच यह भी है कि यह एक राजनीतिक वजहों से लिया गया फैसला है। क्योंकि अगले साल के शुरू में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश सहित पंजाब व उत्तराखण्ड में भी चुनाव होने हैं और तीनों ही राज्यों के किसान आंदोलन में शामिल रहे हैं। फिर चुनावों में विपक्ष किसान आंदोलन को मुद्दा बनाकर मोदी को घेरने की फिराक था। अब मोदी ने इस मुद्दे को हल्का कर दिया है। अब जहां तक किसानों का मामला है तो उन्हें अपनी जिद्द छोड़कर सरकार पर भरोसा करना चाहिए और आंदोलन वापस ले लेना चाहिए।

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