मैदान और प्रोत्साहन ही नहीं तो कैसे नाम कमाएगी थ्रो बॉल में बेटियां

जानकारों ने कहा मिले प्रोत्साहन तो दम दिखा सकती है हमारी लड़कियां

मैदान और प्रोत्साहन ही नहीं तो कैसे नाम कमाएगी थ्रो बॉल में बेटियां

कोटा में लड़कियों या लड़कों को थ्रो बॉल के अभ्यास के लिए मैदान तक उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है और तो और खेल परिषद ने अभी तक थ्रो बॉल को मान्यता तक नहीं दी है जबकि स्कूल ने दी हुई है।

कोटा। हाड़ौती की बेटियों ने यूंतो कई व्यक्तिगत और सामूहिक खलों में अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर स्वयं और शहर का नाम रोशन किया हैं। कुछ बेटियों ने तो अन्तरराष्टÑीय स्तर पर कोटा की छाप छोड़ी है लेकिन कुछ खेल ऐसे भी हैं जिनमें हमारी बेटियों ने खास पहचान नहीं बना पाई है उन खेलों में एक खेल थ्रो बॉल भी है। ऐसा नहीं है कि हाड़ौती की बेटियों के लिए ये खेल नया है। साल 1985 के बाद से ही यहां की लड़कियों का रूझान इस खेल की ओर जा चुका था लेकिन सरकारी प्रोत्साहन और अभ्यास के लिए मैदान का अभाव होने के कारण यहां की लड़कियां विगत सालों में इस खेल में केवल एक सिल्वर मेडल हांसिल कर पाई है वो भी राज्य स्तर पर। थ्रो बॉल से जुड़े विशेषज्ञों और कोटा की लड़कियों को थ्रो बॉल का अभ्यास करवाने वालों का कहना है कि सन 1985 से लेकर अब तक लगभग 400 लड़कियों ने थ्रो बॉल के मैदान में अपनी ताकत दिखाई हैं। इन लड़कियों में से लगभग 250 से अधिक लड़कियों ने राजस्थान की ओर से नेशनल खेला है लेकिन अपनी छाप छोड़ पाने में कामयाब नहीं हुई हैं। जानकार बताते हैं कि सरकार की ओर से कोई भी सुविधा नहीं मिलने के कारण ना केवल यहां की लड़कियों का बल्कि उनके परिजनों का भी इस खेल की ओर कोई खास ध्यान नहीं है। हाड़ौती में इस खेल के प्रारम्भिक काल में तो फिर भी लड़कियां इस खेल में रूचि लेती थी लेकिन वो एक-दो साल खेलती और उसके बाद या तो बंद कर देती या अन्य खेलों की ओर से मुड़ जाया करती थी। 

प्रशिक्षकों का कहना है कि सरकार की ओर से दूसरी सुविधाएं तो दूर की बात आज तक कोटा में लड़कियों या लड़कों को थ्रो बॉल के अभ्यास के लिए मैदान तक उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है और तो और खेल परिषद ने अभी तक थ्रो बॉल को मान्यता तक नहीं दी है जबकि स्कूल ने दी हुई है। अब जब ऐसे हालात है तो कैसे तो हाड़ौती की बच्चियां इस खेल की ओर झुकेगी और कैसे हम अच्छे खिलाड़ी निकाल पाएंगे। इनका कहना हैं कि कोटा ये लड़कियां मैदान के अभाव में नियमित अभ्यास तक नहीं कर पाती है। केवल टूर्नामेंट के शेड्यूल के हिसाब से ही इन लड़कियों को हम प्रैक्टिस करवा पाते हैं। 

जानकारों का कहना हैं कि जब भी ये लड़कियां थ्रो बॉल का अभ्यास करती हैं तब इनका जोश देखने लायक होता है। अगर हाड़ौती की इन बेटियों को सरकारी सुविधाएं, उचित माहौल और संसाधन मिले तो ये थ्रो बॉल में बहुत कुछ कर सकती है। जानकारों का कहना है कि साल 2012 तक तो यहां की लड़कियों का फिर भी इस खेल की ओर ध्यान था लेकिन इसे बाद धीरे-धीरे रूझान कम हो गया लेकिन अभी हाल ही में लगभग दो साल पहले जक स्कूली गेम में थ्रो बॉल को शामिल किया गया है तब से लड़कियों का ध्यान वापस इस खेल की ओर गया है। अब तो केवल इन्हे सरकार की ओर से कुछ सुविधाएं मिलने की दरकार है। 

इनका कहना हैं...
प्रोत्साहन के अभाव में इस खेल की ओर लड़कियों का रूझान कम ही है। इस गेम को स्कूली गेम में शामिल होने के बाद फिर से लड़कियों में जोश आया है। हम हमारी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। अभी हाल ही में बिहार के गोपालगंज में सीनियर नेशनल थ्रो बॉल चैंपियनशिप में गई राजस्थान की टीम में कोटा की 9 लड़किया खेलने गई थी। 
- कमल गोस्वामी, सचिव, थ्रो बॉल एसोसिएशन। 

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सरकार की ओर से किसी प्रकार की सुविधाएं नहीं है। लड़कियों को नियमित अभ्यास के लिए मैदान नहीं है। केवल टूर्नामेंट के हिसाब से इनको अभ्यास करवाया जाता है। वल्लभनगर के एक पार्क में या यू कह लो मैदान में इन लड़कियों को अभ्यास करवाया जाता हैं। 
- राजीव विजय, संयुक्त सचिव, थ्रो बॉल फैडरेशन आॅफ इंडिया।  

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थ्रो बॉल पहले शिक्षा विभाग में नहीं था लेकिन ओपन ही होते थे। शिक्षा विभाग में कुछ समय पहले ही आया है। लड़कियों के अभ्यास के लिए कोटा में मैदान ही नहीं है। अगर लड़कियों को पर्याप्त सरकारी प्रोत्साहन मिले तो काफी अच्छा कर सकती है। 
- राधा प्रजापति, पूर्व खिलाड़ी एवं कोच थ्रो बॉल। 

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मैं करीब 2 साल से थ्रो बॉल की प्रैक्टिस कर रही हंू। मैं नेशनल खेल चुकी हंू। मुझे ये गेम शुरू से ही पसन्द है। मां का बहुत सपोर्ट हैं। हमेशा मुझे खेलने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है। खेल से शरीर के साथ मानसिकता भी सुदृढ़ होती है। 
- श्रद्धा सोनी, खिलाड़ी, थ्रो बॉल। 

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