
हाड़ौती के युवाओं में फुटबॉल का क्रेज बरकरार, व्यावसायिक बनाने की दरकार
विशेषज्ञों ने कहा सरकार खिलाड़ी को रोजगार के अवसर प्रदान करें
फुटबॉल के व्यवसायिक नहीं होने के कारण इसमें अभिभावकों को बच्चों का भविष्य नजर ही नहीं आता है।
कोटा। हाड़ौती के युवाओं में फुटबॉल क्रेज अभी बरकरार है। लेकिन इस खेल को व्यवसायिक करने की खेल प्रेमी मांग कर है जिससे खिलाड़ियों का इस खेल के प्रति उत्साह बना रहे। यह बात सही है कि राज्य सरकार ग्रामीण ओलम्पिक के माध्यम से खेलों को बढ़ावा देने का पूरा प्रयास कर रही है। इनमें से फुटबाल भी एक है लेकिन बीते कुछ सालों से व्यक्तिगत खेलों की ओर खिलाड़ियों की रूचि बढ़ी है। हाड़ौती की बात हो तो क्षेत्र में युवाओं में फुटबाल क्रेज बरकार है, लेकिन इस खेल के व्यवसायिक नहीं होने के कारण अभी भी खिलाड़ियों और उनके परिजनों का ध्यान इस खेल ही ओर पूरा नहीं जा पाया है और यहीं कारण है कि हमारे फुटबॉल के खिलाड़ी स्तरीय प्रदर्शन नहीं कर पाए हैं। यह कहना है संबंधित खेल के विशेषज्ञों का। शारीरिक शिक्षक दिनेश कुमार का कहना है कि आज विश्व का सबसे लोकप्रिय और रोमांचकारी और चुनौतीपूर्ण गेम फुटबॉल है। बीते कुछ सालों से कोटा सहित पूरी हाड़ौती में फुटबॉल का प्रचलन बढ़ रहा है। कोटा में नयापुरा, कुन्हाड़ी तथा श्रीनाथपुरम आदि स्थानों पर फुटबॉल लिए मैदान उपलब्ध है और इन्ही मैदानों पर समर कैंप का आयोजन किया जा रहा है लेकिन फिर भी फुटबॉल को प्रोत्साहित करने में काफी कमी नजर आती है। इनका कहना है कि क्षेत्र में फुटबॉल को लेकर बच्चों की रूचि में कोई कमी नहीं है लेकिन अगर सुविधाएं ही ना मिले तो वो क्या करेंगे। दूसरी सुविधाएं तो दूर की बात है यहां पर मैदान तक की कमी है।
इनका कहना है कि क्षेत्र में फुटबॉल की ओर रूझान के लिए सबसे पहले युवाओं को खेल मैदान से जोड़ा जाए। आज अभिभावक भी सिर्फ समर कैंप तक ही सीमित होकर रह गए है। क्योंकि फुटबॉल के व्यवसायिक नहीं होने के कारण इसमें अभिभावकों को बच्चों का भविष्य नजर ही नहीं आता है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वो खिलाड़ियों को अधिक से अधिक रोजगार के अवसर प्रदान करें। बात अगर कोटा में फुटबाल के मैदान की हो तो सरकार को बोरखेड़ा क्षेत्र में खिलाड़ियों के लिए एक मैदान की उपलब्धता अवश्य करवानी चाहिए। क्योंकि बोरखेड़ा क्षेत्र से रायपुरा, कैथून, हाथीखेड़ा, नया नोहरा तथा दबलाना जैसे क्षेत्र भी सम्पर्क में है। इन इलाकों के खिलाड़ी नयापुरा स्टेडियम तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। विशेषज्ञ कहते हंै कि फुटबाल के माध्यम से खिलाड़ी में अनुशासन, टीम भावना और जीवन में एक उदे्श्यपूर्ण व्यवहार का विस्तार होता है। खिलाड़ियों में फुटबाल को प्रोत्साहित करने के लिए खेल मैदान की उपलब्धता पर भी ध्यान देना आवश्यक है। इनका कहना है कि लगभग 140 करोड़ की आबादी होने के बाद भी हमारे देश की रैंकिंग 106वें नम्बर पर है। जबकि पूरे विश्व में लगभग 200 देश फुटबॉल खेलते हैं। अगर हमें भी फुटबॉलका सिरमौर बनना है, इसमें आगे बढ़ना है तो इस खेल को विद्यालयी स्तर से जबरदस्त तरीके से प्रोत्साहित करना होगा। प्रतियोगिताओं का स्तर, टीम में खिलाड़ियों के चयन की प्रक्रिया को पारदर्शी और गणमान्य नागरिकों को अधिक से अधिक फुटबॉल से जुड़ना होगा।
इनका कहना हैं
इस खेल को व्यवसायिक बनाना होगा। इस खेल में माता-पिता को लगता है कि बच्चे के जॉब की कोई गारन्टी नहीं है। राज्य सरकार को सरकारी और नीजि क्षेत्रों में खिलाड़ी को रोजगार के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने होंगे। कोटा में मैदान की उपलब्धता बहुत अधिक आवश्यक हैं।
- दिनेश कुमार, शारीरिक शिक्षक।
सबसे बड़ी समस्या तो ग्राउंड की है। कच्ची बस्ती के बच्चों को तो सुविधाओं के नाम पर जीरो है। श्रीनाथपुरम में खिलाड़ियों को ही कोच बनाकर बच्चों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। क्षेत्र मं ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिताएं हो जिससे बच्चों में ललक बढ़े। जिला संघ की ओर से सीमित प्रतियोगिताएं ही आयोजित करवाई जाती है।
- जीवन सैनी, शारीरिक शिक्षक।
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