मंत्रियों के टिकट काटने में भाजपा आगे

2018 में छह मंत्रियों के टिकट काटे थे भाजपा ने, सभी चुनाव भी हारे

मंत्रियों के टिकट काटने में भाजपा आगे

कुछ विभाग ऐसे होते हैं जिनमें अगर ठीक से काम ना हो तो इसका असर मंत्रियों पर पड़ता है। गृह, नगरीय विकास, जलदाय, शिक्षा, चिकित्सा और पंचायती राज जैसे विभाग सीधे लोगों को प्रभावित करते हैं। पिछली सरकारों में मंत्रियों के ये विभाग चुनौतीपूर्ण रहे हैं।

ब्यूरो/नवज्योति, जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा अपने मंत्रियों का टिकट काटने में कांग्रेस से आगे रही हैं। ऐसा करना भाजपा नेताओं का चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जाता है। इसी रणनीति के चलते विधानसभा के पिछले कुछ चुनावों में भाजपा को करारी हार का सामना नहीं करना पड़ा। वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने छह मंत्रियों के टिकट काटे थे। इनमें तत्कालीन कैबिनेट मंत्री हेम सिंह भडाना, जलदाय मंत्री सुरेंद्र गोयल, देव स्थान मंत्री राजकुमार रिणवा और पंचायती राज राज्यमंत्री धनसिंह रावत शामिल थे। जनजाति मंत्री नंदलाल मीणा और मंत्री जसवंत यादव के भी टिकट काटे गए थे, लेकिन उनकी जगह उनके बेटों को टिकट दिया गया था। भाजपा ने 2018 में जिन मंत्रियों के टिकट काटे और उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था, वे सभी हार गए थे। जलदाय मंत्री सुरेंद्र गोयल का टिकट कटने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। वे निर्दलीय चुनाव लड़े थे और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसी प्रकार हेम सिंह भडाना ने भी थानागाजी सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था और हार गए थे। तत्कालीन देवस्थान मंत्री राजकुमार रिणवा का भी टिकट काट दिया गया था। वे भी निर्दलीय लड़े और हार गए थे। तत्कालीन पंचायती राज राज्य मंत्री धनसिंह रावत भी टिकट नहीं मिलने पर बांसवाड़ा से चुनाव लड़े थे। उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा था। वैसे तो कांग्रेस ने भी वर्ष 2013 में तत्कालीन मंत्री डॉ. राजकुमार शर्मा और बाबूलाल नागर का टिकट काटा। टिकट कटने के बाद राजकुमार शर्मा निर्दलीय लड़े थे और नवलगढ़ से जीते थे। कांग्रेस बाबूलाल नागर का टिकट काट उनके भाई हजारी लाल नागर को टिकट दिया, मगर वे चुनाव हार गए थे। उस समय बाबूलाल नागर पर बलात्कार के आरोप लग गए थे।

यूडीएच मंत्री दोबारा चुनाव नहीं जीत पाते
विधानसभा चुनावों के नतीजों का विश्लेषण किया जाए, तो कई रोचक तथ्य सामने आते हैं, जैसे कि नगरीय विकास मंत्री दोबारा चुनाव नहीं जीत पाते। हालांकि इस बार होने वाले चुनावों में नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने इस मिथ्यक को तोड़ने का दावा किया है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार मंत्रियों की हार-जीत में उनके विभाग की भी बड़ी भूमिका रहती है। कुछ विभाग ऐसे होते हैं जिनमें अगर ठीक से काम ना हो तो इसका असर मंत्रियों पर पड़ता है। गृह, नगरीय विकास, जलदाय, शिक्षा, चिकित्सा और पंचायती राज जैसे विभाग सीधे लोगों को प्रभावित करते हैं। पिछली सरकारों में मंत्रियों के ये विभाग चुनौतीपूर्ण रहे हैं। खास तौर से नगरीय विभाग ऐसा है जिसे चलाने वाली मंत्री सबसे कम चुनाव जीत पाते हैं। साल 1998 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो यह विभाग शांति धारीवाल को मिला, मगर वे 2003 में चुनाव हार गए। कुछ समय यह विभाग छोगाराम बाकोलिया के पास रहा था, वे भी चुनाव हार गए थे। गहलोत सरकार के पहले कार्यकाल में यूडीएच मंत्री बनाए गए शांति धारीवाल अगला चुनाव हार गए थे। इसी तरह वर्ष 2003 से 2008 की भाजपा सरकार में प्रताप सिंह सिंघवी और सुरेंद्र गोयल के पास यह विभाग रहा था। दोनों ही वर्ष 2008 में चुनाव में हार गए। इसी तरह 2008 से 2013 के बीच भी शांति धारीवाल के पास यह विभाग रहा। वे 2013 में चुनाव हार गए। 2013 से 2018 के बीच यह विभाग पहले राजपाल सिंह और फिर श्रीचंद कृपलानी के पास रहा था। वे दोनों भी 2018 में चुनाव हार गए थे।

शिक्षा मंत्री ने हर बार चुनाव जीता
इसी तरह एक विभाग ऐसा भी है जो सबसे विवादित और चर्चाओं में रहता है, मगर इसके बावजूद चुनाव जीतते आए हैं। वर्ष 1998 में बीडी कल्ला, मास्टर भंवरलाल मेघवाल और डॉ.सीपी जोशी और 2003 में वासुदेव देवनानी और घनश्याम तिवाड़ी और 2008 में मास्टर भंवरलाल मेघवाल एवं डॉ. जितेंद्र सिंह, वर्ष 2013 में वासुदेव देवनानी, किरण माहेश्वरी, कालीचरण सर्राफ  मंत्री रहे और अगला चुनाव जीते।

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