जाने राजकाज में क्या है खास

जाने राजकाज में क्या है खास

सूबे की सबसे बड़ी पंचायत के लिए हुई जंग में हाथ की जो गत हुई है, उसके बारे में हाथ वालों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। लेकिन अब बेचारों के पास सब्र के सिवाय कोई चारा भी तो नहीं बचा।

सब्र शगुन के आंकड़े पर
सूबे की सबसे बड़ी पंचायत के लिए हुई जंग में हाथ की जो गत हुई है, उसके बारे में हाथ वालों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। लेकिन अब बेचारों के पास सब्र के सिवाय कोई चारा भी तो नहीं बचा। अब देखो ना नतीजों के बाद पीसीसी वाले भाई साहब ने तो इस्तीफा देते समय आगा पीछा तक नहीं सोचा। सोचते भी क्या पीसीसी की देहली पर कदम रखते ही गांधी टोपी वालों के शब्दबाण सुनकर हर कोई शर्म के मारे डूब जाता। गांधी टोपी वाले भाई साहब का शब्दबाण था कि यह तो भला मानों वोटरों का जिसने शगुन के आंकड़े 71 पर छोड़ दिया, वरना इन्होंने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

बदली बॉडी लैंग्वेज
पिछले एक सप्ताह से राज का काज करने वाले कई साहब लोगों की बॉडी लैंग्वेज बदल गई है। कुछ अफसरों के कदम तेज हो गए, तो कुछ के घुटने में दर्द होना शुरु हो गया है। बॉडी लैंग्वेज बदले भी क्यों नहीं जब हुकूमत बदल गई तो हाकिमों का भी बदलना जरूरी है। नए राज के निशाने पर जो ब्यूरोक्रेट्स है, वो खुद समझदार है, सो पहली लिस्ट का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। एक दर्जन से ज्यादा साहब लोग उस पत्र को भी बार-बार पढ़ रहे हैं जो मैडम के खेमे वाले भाई साहब ने चुनावी जंग होने से पहले बड़ी मैम साहब को भेजा था। उसमें जोर देकर लिखा था कि सरकारें आती रहती है और जाती रहती है, मगर...। 

अब डिफ्रेशन ज्यादा
भगवा वाले कुछ भाई लोग संडे से कुछ ज्यादा ही डिफ्रेशन में है। हो भी क्यों ना, मामला लालबत्ती से जो ताल्लुकात रखता है। उनमें जीत की खुशी कम और मंत्री बनने को लेकर डिफ्रेशन ज्यादा है। जोड़-तोड़ करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे। कुछेक ने तो पड़ौसी सूबे में काठियावाड़ की धरती तक को धोक चुके हैं। कुछ भाई लोगों ने तो खुद को मंत्री मान कर संडे से ही स्वागत सत्कार कराने में भी कोई कंजूसी नहीं कर रहे। एक बन्ना जी ने स्वागत सत्कार क्या किया खुद को आरटीडीसी का चैयरमेन तक मान लिया। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि भगवा वालों में ख्वाहिशों का काफील जारी है, मगर डिफ्रेशन भी कम नहीं है।

एक जुमला यह भी
इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। पीसीसी के साथ ही सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में भी इसकी चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों ना मामला मन से जुड़ा है। बेचारा मन तो मन ही होता है, उसकी बात भी निराली होती है। वह लगे या नहीं, यह उस पर ही निर्भर करता है। लेकिन एक मन ऐसा भी है, जो बेबस है और इन दिनों चर्चा में है। मन भी छोटा मोटा नहीं बल्कि सिंह का है। हाथ वालों से ताल्लुकात रखता है और बहुत बड़ी कुर्सी पर बैठता है। हाथ वालों ने भी उसको बड़े ढंग से संजो कर रखा है। वेटिंग राजकुमार उसे पहले ही कई बार तोड़ चुके हैं। अब देखो ना हाथ की धुलाई में मन का कोई लेना देना नहीं, फिर भी सारा ठिकरा मन के ऊपर फोड़ने में कोई भी कसर नहीं छोड़ रहा। क्योंकि सच बोलने के लिए बड़ा मन किसी के पास नहीं है।

-एल.एल. शर्मा

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