भारत अब एकमात्र अर्थव्यवस्था है जो मजबूती से आगे बढ़ रही है: पनगढ़िया
कहा- बेरोजगारी वास्तव में भारत के लिए कोई समस्या नहीं है
उन्होंने कहा कि भारत में, आम सहमति बनाना लोकतांत्रिक सुधार प्रक्रिया का एक हिस्सा है, जो कानूनों को पारित करने की प्रक्रिया को धीमी बना देता है।
मुंबई। सोलहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ़ अरविंद पनगढिया ने आज कहा कि दुनिया में तूफान लाने के लिए भारत की परिस्थितियां बिल्कुल सही हैं और भारत अब एकमात्र ऐसी अर्थव्यवस्था है जो मजबूती से आगे बढ़ रही है।
डॉ़ पनगढिय़ा ने यहां एक निजी टेलीविजन चैनल के आइडियाज ऑफ इंडिया समिट 3.0 में 'द इकोनॉमिक व्हिस्परर: हाउ टू फ्यूल ग्रोथ विद जॉब्स' विषय पर अपने विचार साझा करते हुये भारत और नए भारत के बारे कहा कि 1980 के दशक में मैं भारत को लेकर बहुत निराशावादी हुआ करता था। 1991 में हालात बदल गए। रुझान उदारीकरण की ओर हो गया। यदि हम कोविड काल को हटा दें, तो पिछले 20 वर्षों में वास्तविक डॉलर में लगभग 8.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिसकी हम 1980 के दशक में कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
उन्होंने कहा कि बेरोजगारी वास्तव में भारत के लिए कोई समस्या नहीं है। अल्परोजगार है, चुनौती अच्छी तनख्वाह वाली, उच्च उत्पादकता वाली नौकरियाँ पैदा करने की है। जनसंख्या बड़ी है और जनसंख्या युवा है। जनसंख्या का आकार हमारी मदद करेगा। हमारे पास उस तरह का निर्भरता अनुपात नहीं है जैसा चीन के पास है।
डॉ. पनगढिय़ा ने कहा, ''हम एक श्रम प्रचुर देश और पूंजी की कमी वाला देश हैं। हमने अपनी अधिकांश पूंजी कुछ चुङ्क्षनदा, पूंजी-गहन क्षेत्रों में लगाई है। बहुत सारे कर्मचारी कृषि और एमएसएमई जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, जिनमें बहुत कम पूंजी है।ÓÓ उन्होंने कहा कि विनिर्माण से कोई बच नहीं सकता है। ऐसा कोई देश नहीं है जो सेवाओं के मामले में आगे बढ़ा हो। सेमीकंडक्टर निर्माण राष्ट्रीय सुरक्षा के ²ष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि भारत में, आम सहमति बनाना लोकतांत्रिक सुधार प्रक्रिया का एक हिस्सा है, जो कानूनों को पारित करने की प्रक्रिया को धीमी बना देता है। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान श्रम कानून पेश किए गए थे। इसके बाद किसी भी सरकार ने साहस नहीं दिखाया। मोदी सरकार में कानून पारित हो चुके हैं। अब राज्यों को ही कानूनों को लागू करने के लिए नियम और कानून बनाने होंगे। श्रम कानूनों का कार्यान्वयन, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और बैंकों का निजीकरण कुछ महत्वपूर्ण सुधार हैं जिन्हें लाने की आवश्यकता है।
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