वैश्विक भू-राजनीति में बढ़ेगा भारत का कद

 वैश्विक भू-राजनीति में बढ़ेगा भारत का कद

व्यापार और रणनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह ईरान ने अगले दस सालों के लिए भारत को सौंप दिया है।

व्यापार और रणनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह ईरान ने अगले दस सालों के लिए भारत को सौंप दिया है। चाबहार के विकास एवं संचालन के लिए भारत और ईरान के बीच हुए इस दीर्घकालिक समझौते के बाद भारत की कनेक्टिविटी क्षमता काफी बढ़ जाएगी। चाबहार के जरिए भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक पहुंचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग मिल सकेगा। चाबहार को अंतराष्ट्रीय उत्तर- दक्षिण व्यापार गलियारे के साथ भी जोड़ने की योजना है। हालांकि, समझौते के बाद अमेरिका की भ्रुकुटी तन गई है। उसने भारत को चेतावनी देते हुए कहा है कि ईरान के साथ व्यापार करने वाले किसी भी देश को प्रतिबंधों के संभावित जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। भारत ने भी पलटवार में देर नहीं की। विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने भी अमेरिका को नसिहत दी कि उसे विकास को लेकर संर्कीण दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए इस परियोजना से पूरे क्षेत्र को लाभ होगा ।

भू-राजनीति, भू-रणनीति और भू-आर्थिक परिदृश्य से अहम चाबहार बंदरगाह को भारत पिछले दो दशकों से सक्रिय है। अप्रेल 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ईरान यात्रा के दौरान दोनों देशों द्वारा व्यापार, उद्योग, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, परिवहन और कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में मिलकर काम करने की इच्छा व्यक्त की गई।  साल 2003 में भारत और ईरान ने ईरान और मध्य एशियाई देशों से खाड़ी और फिर भारत और अन्य देशों में तेल पहुंचाने की रणनीति के तहत चाबहार को विकसित करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। लेकिन अतीत में अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र द्वारा तेहरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर प्रतिबंध लगा दिए जाने के कारण अगले कई सालों तक इस परियोजना को शुरू नहीं किया जा सका। वर्ष 2015 के परमाणु समझौते के बाद अमेकिरन प्रतिबंधों में ढील दी गई और उसी साल भारत ने इस संबंध में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।  2016 में पीएम मोदी की ईरान यात्रा के दौरान समझौते को अमली जामा पहनाया गया । लेकिन वर्ष 2018 में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा परमाणु समझौते से एक तरफा तौर पर हटने और ईरान पर दौबारा प्रतिबंध लगा दिए जाने के कारण भारत के सहयोग पर सवाल खड़े हो गए।  हालांकि, साल 2019 में भारत को चाबहार बंदरगाह के प्रयोग का अधिकार मिल गया था लेकिन प्रत्येक वर्ष नवीनीकरण करवाने की शर्त के कारण भारत  चाबहार को लेकर कोई दीर्घकालिक रणनीति बनाने एवं उसके प्रयोग के लिए आश्वस्त नहीं था। अगस्त 2023 में जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स के 15 वें शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी से चाबहार पर दीर्घकालिक अनुबंध के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने पर चर्चा की। चर्चा के दौरान दोनों नेता मध्यस्थता खंड को हटाने पर सहमत हुए जो दीर्घकालिक समझौते को अंतिम रूप देने में एक बड़ी बाधा थी। इस सहमति के बाद 13 मई, 2024 को दीर्घकालिक अनुबंध का मार्ग प्रशस्त हुआ। ताजा समझौते के बाद अब अगले दस वर्षों के लिए चाबहार बंदरगाह को संचालित करने का अधिकार भारत के पास आ गया है। अब भारत व्यापार की दीर्घकालिक नीतियों को क्रियान्वित कर सकेगा।  कनेक्टिविटी के लिहाज से चाबहार बंदरगाह बेहद महत्वपूर्ण है। यह पाकिस्तान को दरकिनार करके अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है इससे न केवल भारत के मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत हो सकेगे बल्कि भारत को मध्य एशिया में अपने भू-राजनीतिक प्रभाव का विस्तार करने में भी मदद मिलेगी। द्वितीय, चाबहार के अंतरराष्ट्रीय उत्तर- दक्षिण परिवहन गलियारे  से जुड़ने की उम्मीद है। जो भारत को ईरान, अजरबैजान और रूस के रास्ते यूरोप के करीब लाएगा।  तृतीय, चाबहार स्वेज मार्ग के विकल्प के तौर पर भी उभर सकता है। आईएनएसटीसी से जुड़ने के बाद अंतरमहाद्वीपीय व्यापार  काफी सरल और सस्ता हो जाएगा। चतुर्थ, एक पूर्ण विकसित चाबहार बंदरगाह का उपयोग ओमान सागर और ग्वादर बंदरगाह में चीनी को कांउटर करने के लिए भी किया जा सकता है। लेकिन सवाल यह है कि अमेरिका इसका विरोध क्यों कर रहा है। दरअसल, मध्य-पूर्व में ईरान अमेरिका का एक बड़ा सिर दर्द  है। परमाणु कार्यक्रम और चीन-ईरान समझौते के बाद उसका दर्द और अधिक बढ गया है। यही वजह है कि अमेरिका चाबहार के प्रति संर्कीण नजरियार रखे हुए है। दूसरा मध्य-पूर्व की बदली हुई भू-पारिस्थिति के बाद अब इस क्षेत्र मे अमेरिका के हित भी बदल गए है। यह देखना दिलचस्प होगा कि मध्य एशिया के साथ व्यापार एवं आवागमन संबंधी परियोजनाओं को बेहतर करने के लिए भारत चाबहार में किस हद तक अमेरिकी दबाव का सामना कर सकता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि पूर्व की तरह वाशिंगटन की नाराजगी का लिहाज कर भारत ईरान के साथ अपने रिश्तों को दाव पर लगा देगा। 
-डा. एन.के.सोमानी
  (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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