सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

कर्नाटक में नया झमेला। सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ एक जमीन घोटाले में मुकदमा चलेगा। राज्यपाल ने इसकी अनुमति दे दी।

नवीन की हिम्मत
नवीन पटनायक गजब की हिम्मत दिखा रहे। वह 25 साल प्रदेश की कमान संभाल चुके। अब उम्रदराज हो चुके। उसके बावजूद हिम्मत देखिए। पहले तो नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल ली। और अब प्रदेशभर के दौरे पर निकलने वाले। उनके सहयोगी एवं पूर्व नौकरशाह पांडियन अब कहीं नेपथ्य में। जबकि विधानसभा चुनाव से पूर्व उनको लेकर कई कयास थे। अब उन सब पर विराम। सवाल यह कि नवीन असल में करने क्या वाले? क्योंकि राज्य में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बन चुकी। नया सीएम भी आदिवासी समाज से बनाया। सो, आराम से सरकार चलने की उम्मीद। इधर, लोकसभा में भी भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया। ऐसे में, नवीन बाबू को करने के लिए बचा क्या? किसी को अभी तक अपनी राजनीतिक विरासत भी नहीं सौपी। वहीं, आयु के भी सात दशक पार कर चुके। लेकिन गजब के हिम्मती!

चंपई का दांव...
झारखंड मुक्ति मोर्चा के पूर्व सीएम संपई सोरेन ने चुनावी कार्यक्रम की घोषणा से पहले हलचल मचा दी। यह जेएमएम ही नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए भी झटका। जहां वह झारखंड में जेएमएम के ही भरोसे। माना जा रहा था। जेल जाने के कारण हेमंत सोरेन को विधानसभा चुनाव में सहानुभूति मिलेगी। लेकिन चंपई सोरेन ने सारा खेल बिगाड़ दिया। बागी तेवर दिखाकर उन्होंने भाजपा की राह आसान कर दी। क्योंकि सत्ताधारी गठबंधन ने आम चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था। इधर, भाजपा में भी कशमकश। अमित शाह बोले, चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। मतलब बाबूलाल मरांडी और अर्जन मुंडा ही नहीं। कोई ओर भी सीएम होने का सपना देख सकता। तो उसमें चंपई सोरेन क्यों नहीं हो सकते? क्योंकि एक राजनेता के रुप में उनकी खास पहचान और साख। यह ‘एक्स’ पर लिखे गए उनके शब्दों से स्पष्ट।

सबसे खास
जम्मू-कश्मीर का विधानसभा चुनाव इस बार सबसे खास होने जा रहा। पाक, चीन और अमरीका ही नहीं। यूरोप और यूएनओ की भी इस दौरान नजर रहने वाली। इसमें किसी को संदेह नहीं। सो, सरकार और चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा और साख दांव पर। इसके लिए दिल्ली पूरी तरह तैयार। इसीलिए पूरी तैयारी के बाद ही चुनाव करवाने का निर्णय लिया गया। वैसे, आम चुनाव से ही इसके संकेत थे। आड़ भले ही न्यायालय का आदेश हो। लेकिन यह सभी कारणों में से एक कारण। पिछले कुछ दिनों से जम्मू क्षेत्र में घाटी से ज्यादा आतंकी वारदातें हो रहीं। जो चिंता का सबब। अब तो अनुच्छेद- 370 नहीं। विधानसभा क्षेत्रों का डि-लिमिटेशन भी हो चुका। सीटों की संख्या बढ़कर 87 से 90 हो गई। इसमें भी पहली बार एससी-एसटी को आरक्षण। सो, इस बार का विधानसभा चुनाव सबसे खास रहने वाला।

जमीन पर कुछ और!
बांग्लादश में बीती पांच अगस्त को हुए शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से जमीनी हालात बदल रहे। इस सारे मामले में अमरीकी दखल से इनकार से हो या फिर अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस का पीएम मोदी से बात करना हो। फिर यूनुस द्वारा बांग्लादेश में हिन्दुओं की सुरक्षा का आश्वासन देना हो या फिर अभी भी शेख हसीना का भारत में रूकना। हसीना का बयान, वह फिर से लौटेंगी। कई की धड़कनें बढ़ा रहा। इधर, भारत में पड़ोसी देश में हो रही हिंसा के खिलाफ लगातार धरना एवं विरोध प्रदर्शन। लोकतंत्र और मानवाधिकारों का ढ़िढोरा पीटने वालों के मुंह पर ताला। बहुतों की पोल पट्टी खोल रहा। कूटनीति में कई काम पर्दे के पीछे से किए जाते। वह जारी होगा। किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। हां, कुछ बातें अमरीका की उम्मीद के बिल्कुल विपरित हो रहीं।

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नई गलफांस...
कर्नाटक में नया झमेला। सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ एक जमीन घोटाले में मुकदमा चलेगा। राज्यपाल ने इसकी अनुमति दे दी। उपरी तौर पर लग रहा यह भ्रष्टाचार का मामला। लेकिन सारा माजरा कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति का। डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार बहुत ज्यादा इंतजार करने के मूड में नहीं। यदि सीएम के खिलाफ मुकदमा चला और निर्णय आ गया। तो नैतिकता के नाते उन्हें पद छोड़ना पड़ेगा। तो डीके की मन की मुराद भी पूरी होना संभव। लेकिन क्या कांग्रेस आलकमान इन सबसे से अनजान होगा? सरकार चलाने और पॉलिटिकल ऑपरेशन करने के मामले में कांग्रेस का कोई जवाब नहीं। वैसे सिद्धारमैया की आयु 75 के आसपास। वहीं, डीके भी 65 के आसपास। कांग्रेस की अंदरुनी उठापटक से भाजपा लाभ लेने के मूड में। यदि कुछ भी हुआ। तो यह भाजपा के लिए अवसर। जिसकी उसे पहले दिन से आस।

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मंथन का दौर
भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर मंथन का जारी। एक बैठक आरएसएस पदाधिकारियों के साथ हो चुकी। तो पार्टी ने अपना सदस्यता अभियान की भी तैयारी कर ली। इस बार कार्यवाहक नहीं बल्कि अगले साल पूर्णकालिक चुनावित अध्यक्ष ही जिम्मेदारी संभालेगा। माना जा रहा। नए अध्यक्ष के चयन में आम चुनाव- 2024 के परिणाम प्रभावित करेंगे। क्योंकि परिणाम उम्मीद के अनुरुप नहीं आए। जिससे भाजपा कैडर ही नहीं। आरएसएस भी मायूस। इसी से उभरने के लिए लो प्रोफाइल अध्यक्ष की तलाश हो रही। जो जमीनी भी हो और लगातार कार्यकर्ताओं से संवाद रख सके। जो अपने आवास से नहीं। कार्यालय से पार्टी चलाए। मतलब अब भाजपा पुराने दौर में लौटने की कोशिश कर रही। यह प्रयास कितना सफल होगा। समय बताएगा! लेकिन इतना तय। आरएसएस 2004 वाला दौर नहीं चाहता। ना ही भाजपा को इतना छूट कि पकड़ ढीली हो।

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मुसीबत में ममता
ममता बनर्जी अपने तीसरे कार्यकाल में पहली बार भारी विरोध का सामना कर रहीं। इससे निपटने के लिए वह वही गलती कर रहीं। जो कभी वामपंथी सरकारों ने की थी। एक मेडिकल छात्रा के साथ हुए गैंग रेप और बर्बर हत्या से देशभर के रेजीडेंट डाक्टर सड़कों पर आ गए। बीच मं सुप्रीम कोर्ट को आना पड़ा। ज्यों-ज्यों मामले की जांच आगे बढ़ रही। मामला उलझता ही जा रहा। फिर राज्यपाल की सक्रियता ममता सरकार को और असहज कर रही। अभी कुछ दिन पहले बांग्लादेश के घटनाक्रम से सबसे ज्यादा ममता बनर्जी ही परेशान हुई थीं। पड़ोसी देश में जिस प्रकार से अल्पसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा का तांडव चला। तो पश्चिम बंगाल की जनता सोचने को मजबूर हो गई। इधर, विपक्षी भाजपा लगातार ममता बनर्जी पर तुष्टिकरण और घुसपैठ का आरोप लगाती रही। जिसकी काट फिलहाल उनके पास नहीं।

दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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