तीन धर्मों के 3 बड़े जमघट : कुंभ, हज और वैटिकन मास

लाखों लोगों को एक सूत्र में पिरोती है

तीन धर्मों के 3 बड़े जमघट : कुंभ, हज और वैटिकन मास

धर्म और आस्था की डोरी सदियों से मानवों को अपनी ओर खींचती आई है।

नई दिल्ली। धर्म और आस्था की डोरी सदियों से मानवों को अपनी ओर खींचती आई है। धर्म का भाव, मुक्ति की कामना लाखों लोगों को एक सूत्र में पिरोती है। इसलिए ऐसी गतिविधियों में मनुष्य बिना बुलाये ही भारी संख्या में जमा हो जाता है। दुनिया में हर स्थान पर धार्मिक क्रियाओं के लिए हर कोने में एक निश्चित जगह पर लाखों-करोड़ों लोग जमा होते हैं। सनातन, इस्लाम, ईसाइयत हर धर्म के लोग अपनी परंपरा को मनाने के लिए एक निश्चित स्थान पर जमा होते हैं। मान्यता है कि सनातन में कुंभ की परंपरा लगभग 2500 साल से ज्यादा समय से चलती आ रही है, इस्लाम के मानने वाले लगभग 1400 सालों से हज पर जाते रहे हैं जबकि क्रिश्चयन समुदाय के लोग 1700 सालों से ईस्टर संडे मनाते आ रहे हैं। वेटिकन मास का आयोजन भी सालों से होता आ रहा है।

महाकुंभ :

कुंभ की चर्चा वेदों में तो हैं बावजूद इसके इस वृहद धार्मिक आयोजन के शुरू होने की कोई तारीख स्पष्ट नहीं है। लेकिन आज के स्टैंडर्ड के लिहाज से ये पृथ्वी पर सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। हिन्दुओं को विश्वास है कि विशेष तिथियों में गंगा, यमुना और सरस्वती (अदृश्य) के संगम में स्नान से मनुष्य जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होता है। कुंभ का आयोजन भारत के चार धार्मिक शहरों में बारी बारी से होता है ये शहर हैं प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। कुंभ के दौरान अखाड़ों से जुड़े संतों का स्नान कुंभ का मुख्य आकर्षण होता है। 

महाकुंभ को लेकर सरकार की तैयारियां :

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महाकुंभ का प्रबंधन उत्तर प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है। इस बार के महाकुंभ के सफल संचालन के लिए यूपी की योगी सरकार ने व्यापक इंतजाम किए हैं। इस बार का प्रयागराज का महाकुंभ मेला करीब 4000 हेक्टेयर भूमि पर फैला है और इसे 25 सेक्टरों में बांटा गया है। यूपी सरकार ने महाकुंभ मेला परिक्षेत्र को राज्य का 76वां जिला घोषित किया है। महाकुंभ के लिए प्रशासन ने संगम तट पर कुल 41 घाट तैयार किए हैं। इनमें 10 पक्के घाट हैं, जबकि बाकी 31 घाट अस्थायी हैं। संगम घाट प्रयागराज का सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण घाट है।

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आंकड़ों में महाकुंभ :

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महाकुंभ में करीब 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। इस समागम में दुनिया के हर कोने से श्रद्धालु भारत पहुंच रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार को अनुमान है कि महाकुंभ से प्रदेश में बड़े पैमाने पर आर्थिक गतिविधियां भी पैदा होंगी। राज्य सरकार ने इस महाकुंभ के आयोजन के लिए लगभग 7,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का बजट आवंटित किया है। राज्य सरकार के एक आकलन के अनुसार 25,000 करोड़ रुपए का योगदान दे सकता है। इसके परिणामस्वरूप 2 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक लाभ हो सकता है। सरकार का मानना है कि अगर यहां आने वाला हर आदमी कम से कम 5000 रुपए भी खर्च करता है तो इससे 2 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक लाभ होगा।

हज :

हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। हर साल, दुनिया भर से लाखों मुसलमान हज करने के लिए सऊदी अरब के मक्का में इकट्ठा होते हैं। हज इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने, धू अल-हिज्जा में मनाया जाता है। ये धार्मिक गतिविधि आमतौर पर साल के किसी भी महीने में हो सकती है, इसकी तिथियां हर साल बदलती रहती हैं क्योंकि इस्लामिक कैलेंडर चंद्रमा से संचालित कैलेंडर है। साल 628 में ये यात्रा शुरू हुई थी। यानी कि आज से 1400 साल पहले। ये यात्रा ही इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा बनी जिसे बाद में हज कहा गया। हज में पांच दिन लगते हैं और ये बकरीद यानी ईद उल अदहा के साथ पूरी होती है। 2022 में 40 लाख मुस्लिम जबकि 2024 में 1 करोड़ 30 लाख पहुंचे।

हर साल 12 अरब डॉलर का बिजनेस :

आंकड़ों के अनुसार सऊदी अरब हर साल हज के जरिए 12 अरब डॉलर का बिजनेस जेनेरेट करता है। एक रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब हज से प्रति वर्ष औसतन 10-15 बिलियन डॉलर कमाता है और उमरा करने वाले 8 मिलियन यात्रियों से 4-5 बिलियन डॉलर कमाता है। कोरोना से पहले 2019 में हज और उमरा से सउदी अरब को 12 बिलियन डॉलर की कमाई हुई थी। सऊदी सरकार का लक्ष्य 2030 तक हर साल 30 मिलियन यानी कि 3 करोड़ मुस्लिम जायरीनों को सऊदी लाया जा सके। बीबीसी की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार हज के लिए इंडोनेशिया का कोटा सबसे ज्यादा है। यहां से 2,20,000 लोग हर साल हज के लिए सऊदी जा सकते हैं। हज के कोटे का ये 14 फीसदी हिस्सा है। इसके बाद पाकिस्तान (11 फीसदी), भारत (11 फीसदी) और बांग्लादेश (8 फीसदी) की बारी आती है। इस लिस्ट में नाइजीरिया, ईरान, तुर्की, मिस्र जैसे देश भी शामिल हैं। 

वैटिकन मास :

वैटिकन दुनिया भर के लाखों इसाइयों के लिए तीर्थस्थल है। यहां स्थित सेंट पीटर बेसिलिका अदभुत चर्च है। यहां आयोजित होने वाली रोजाना की प्रार्थना सदियों पुरानी परंपराओं में डूबने और वैश्विक समुदाय में शामिल होने का मौका देते हैं। सेंट पीटर बेसिलिका में प्रतिदिन मास यानी कि प्रार्थना होती है। यहां शामिल होने के लिए कोई चार्ज नहीं लगता है, लेकिन इसके लिए बुकिंग जरूर करानी पड़ती है। वैटिकन में सप्ताह के दिनों में कम से कम पांच प्रार्थनाएं होती है और सप्ताह के अंत में इससे भी ज्यादा। इसलिए यहां शामिल होने के कई मौके हैं। यहां होने वाली प्रार्थनाएं इतालवी भाषा में होती हैं।

सेंट पीटर्स बेसिलिका :

धार्मिक कैलेंडर के अनुसार अधिकांश पापल मास यानी कि प्रार्थनाएं यहीं होती है। इसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हो सकते हैं। इसकी क्षमता 15000 से ज्यादा लोगों को समाहित करने की है। इसाइयों के धर्म गुरु पोप फ्रांसिस यही इसाई मतों के लोगों के साथ संवाद करते हैं। 

सेंट पीटर्स स्क्वायर :

वैटिकन में बड़े आयोजनों के लिए या जब ज्यादा लोग आते हैं तो ये प्रार्थनाएं सेंट पीटर्स स्क्वायर में आयोजित की जाती हैं। यह विशाल क्षेत्र 80,000 तक की क्षमता वाले लोगों की एक बड़ी संख्या की मेजबानी कर सकता है। हर साल 25 दिसंबर यानी कि बड़ा दिन पर यहां भारी भीड़ उमड़ती है। इस दिन की प्रार्थना को खास माना जाता है।

क्या है पीटर्स पेंस :

वैटिकन में पहुंचने वाले दुनिया भर के ईसाई दान में जो पैसे देते हैं उसे पीटर्स पेंस कहा जाता है। ये वैटिकन और रोमन चर्च की कमाई का बड़ा हिस्सा है। एक सिटी के अनुसार वैटिकन सिटी में हर साल करीब 50 लाख श्रद्धालु आते हैं। हालांकि कोरोना महामारी से पहले यह संख्या करीब 70 लाख थी।  

ईस्टर संडे :

इजरायल की राजधानी येरुशलम इसाइयों का सबसे प्रसिद्ध स्थल है। हर साल ईस्टर पर लाखों लोग जमा होते हैं। इस दिन ईसा मसीह को सूली पर लटकाये जाने के बाद फिर से जीवित हो उठने के याद में मनाया जाता है। यरूशलम में ईस्टर वीक के दौरान श्रद्धालु उसी रास्ते पर चलते हैं जिस पर जीसस क्राइस्ट चले थे। इसे मनाने की परंपरा करीब 1700 साल पहले शुरू हुई थी। दुनिया भर शहर का ईसाई समुदाय, जिसमें ऑर्थोडॉक्स, कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट संप्रदाय शामिल हैं, ईसा मसीह को याद  करने के लिए एक साथ आते हैं। इस साल 20 अप्रैल को ये त्योहार मनाया जाएगा।

 

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