प्रदेश में महिलाओं के दो लाख से अधिक मुकदमों को निस्तारण का इंतजार
आधी आबादी के 36.89 लाख मुकदमे देशभर की अदालतों में लंबित
महिला अधिवक्ता आराधना गुप्ता का कहना है कि जिस तरह से महिलाओं के खिलाफ अपराध के लिए अलग से महिला उत्पीड़न कोर्ट खोली गई है।
जयपुर। सुप्रीम कोर्ट सहित देश की न्यायपालिका मुकदमों के भारी बोझ के तले दबी नजर आ रही हैं। वहीं इनमें से बड़ी संख्या में वे मुकदमे लंबित हैं, जो महिला पक्षकार की ओर से दायर किए गए हैं। वहीं इनके समयबद्ध निस्तारण के लिए न्याय प्रशासन की ओर से अलग से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। इन मुकदमों के निस्तारण के लिए न तो अलग से अदालत बनी हुई है और ना ही अब तक ऐसी कोई लोक अदालत आयोजित नहीं की गई है, जिसमें सिर्फ महिला पक्षकारों के मुकदमों की ही सुनवाई की गई हो।
सरकार ने महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों की सुनवाई के लिए तो अलग से महिला उत्पीड़न कोर्ट खोल रखे हैं, लेकिन महिलाओं की ओर से पेश मुकदमों की सुनवाई सामान्य अदालतों में अन्य मुकदमों की तरह ही की जा रही है। इस संबंध में राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रहलाद शर्मा का कहना है कि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से साल में चार बार लोक अदालतों का आयोजन होता है। इसमें राजीनामे से मुकदमों के निस्तारण का प्रयास किया जाता है। प्राधिकरण को चाहिए कि इनमें से एक लोक अदालत महिला पक्षकारों को ही समर्पित हो और उनके मुकदमों की ही सुनवाई की जाए।
महिला अधिवक्ता आराधना गुप्ता का कहना है कि जिस तरह से महिलाओं के खिलाफ अपराध के लिए अलग से महिला उत्पीड़न कोर्ट खोली गई है। उसी तरह हर जिले में कम से कम एक ऐसी कोर्ट खुलनी चाहिए, जिनमें सिर्फ महिला की ओर से दायर मुकदमों की सुनवाई की जाए। इससे मुकदमों का निस्तारण भी जल्द होगा और लंबित मुकदमों का बोझ कम होगा।
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