भारत-अमेरिका के बीच प्रगाढ़ होते संबंध

भारत-अमेरिका के बीच प्रगाढ़ होते संबंध

यात्रा भी ऐसे अवसर पर हुई जब दुनिया रूस-यूक्रेन, इजरायल-हमास, हिजबुल्ला के बीच जारी जंग की तपन से झुलस रही है। दूसरी ओर, हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी नीति से उसके कई पड़ोसी देश चिंतित और तनाव में हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले दिनों हुई त्रि-दिवसीय अमेरिका-यात्रा कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण रही। जो न सिर्फ  भारत और अमेरिकी मैत्री संबंधों के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता की दृष्टि से उल्लेखनीय है, बल्कि तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत की बढ़ती भूमिका और अहमियत की ओर भी इशारा कर रही है।

यात्रा भी ऐसे अवसर पर हुई जब दुनिया रूस-यूक्रेन, इजरायल-हमास, हिजबुल्ला के बीच जारी जंग की तपन से झुलस रही है। दूसरी ओर, हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी नीति से उसके कई पड़ोसी देश चिंतित और तनाव में हैं। यही नहीं, वह विश्व में अमेरिकी नेतृत्व को सीधी चुनौती देने की कोशिश में है। इस साल 5 नवंबर को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव भी होने जा रहे हैं। वहीं संयुक्त राष्ट्र को मजबूत बनाने, इसकी कार्यप्रणाली में सुधार लाने की जरूरत भी महसूस की जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के विलमिंगटन में आयोजित क्वाड सम्मेलन में भाग लिया। क्वाड संगठन में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। सम्मेलन में मोदी के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किसीदा और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज शामिल हुए। इसमें दो राय नहीं है कि यह संगठन अब धरातल पर उतरकर आकार लेने लगा है और इसका मकसद भी अब साफ  नजर आने लगा है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन महत्व रखता है कि क्वाड का गठन, किसी देश के विरुद्ध नहीं है।

सम्मेलन में संगठन के सभी नेताओं ने इसे और अधिक मजबूती देने के लिए विभिन्न पहलुओं पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया। खास तौर पर आपसी संबंधों में सुधार लाने पर जोर दिया गया। ताकि विश्व के सामने खड़ी हो रही नई चुनौतियां का मिलकर समाधान निकालने के प्रयास किए जाएं। यह भी सही है कि इन दिनों हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामक और वर्चस्ववादी नीति एक गंभीर चुनौती के रूप में उभर रही है। इसे संतुलित करने की दृष्टि से भी क्वाड का गठन हुआ है। दूसरी ओर यूरेशिया और पश्चिमी एशिया में लंबे अर्से से जारी दो बड़े युद्धों ने दुनिया के सामने विकट स्थितियां बना दी हैं। जिससे पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है। ऐसी विषम परिस्थितियों के समाधान में क्वाड संगठन अपनी प्रभावी भूमिका का निर्वहन करना चाहता है। विश्व के सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों के प्रति प्रतिबद्धता का अहसास कराया जाए। वह इसलिए भी जरूरी है कि मौजूदा दौर में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता अब प्रभावहीन होती जा रही है तथा उसमें सुधार की कोई उम्मीद  भी दिखाई नहीं दे रही है। यहां तक कि सुरक्षा परिषद तक प्रभावशाली सिद्ध नहीं हो पा रही। एक लंबे अर्से से इसके विस्तार की बातें तो खूब हो रही हैं, लेकिन कोई ठोस पहल नहीं हो रही। आश्चर्य तो इस बात का है कि विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या और तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश भारत, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के किसी देश को सुरक्षा परिषद में आज तक स्थायी सदस्यता नहीं मिली है।
 क्वाड सम्मेलन में स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी ऐतिहासिक फैसले भी लिए गए। इसमें कैंसर मूनशॉट इनिशिएटिव के जरिए हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों में गर्भाशय, ग्रीवा कैंसर से जीवन बचाने के लिए साझेदारी हुई है। इस समझौते से निश्चय ही इस रोग पर काबू पाने में काफी मदद मिलेगी। आरंभिक स्तर पर ही महामारियों पर काबू पाया जाना संभव हो सकेगा।

अमेरिका के सहयोग से भारत में पहला राष्ट्रीय सुरक्षा सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट लगाने की सहमति बनी है।  इस सम्मेलन में क्वाड देशों के बीच सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत बनाने के लिए किया गया समझौता अहम है।  फिलहाल देशों की ताकत उनकी तकनीकी संपन्नता से आंकी जाने लगी है। चीन अनेक मामलों में अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया से बहुत आगे है। खासकर सेमीकंडक्टर निर्माण क्षेत्र में उसका पूरी दुनिया में दबदबा है। भारत भी इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है, लेकिन अभी उसे कुछ वक्त लगेगा। ऐसे में इस क्षेत्र में शोध और शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए आर्थिक मदद की घोषणा से अच्छे नतीजे मिलने की उम्मीद है। अमेरिका में हजारों भारतीयों से प्रधानमंत्री की मुलाकात में जो उत्साह नजर आया। उससे साफ  जाहिर होता है कि प्रधानमंत्री का यह अमेरिकी दौरा न केवल कूटनीतिक दृष्टि से कामयाब रहा बल्कि वैश्विक स्तर पर भारतीय छवि की छाप छोड़ने वाला भी रहा। लेकिन एक बात जरूर चुभी। प्रधानमंत्री की यात्रा से पूर्व अमेरिकी अधिकारियों की ओर से खालिस्तान समर्थक तत्वों को जिस तरह तरजीह दी गई, जो भारत की चिंताओं के प्रति उपेक्षा भाव को दर्शाती है।  

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-महेश चंद्र शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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