कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न पर चुप्पी तोड़ें

कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न पर चुप्पी तोड़ें

एक्ट के उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई की जाती है। इसमें नियोक्ता को वित्तीय दंड, क्षति पूर्ति का भुगतान, या अन्य दंडात्मक प्रावधान शामिल हो सकते हैं।

अक्टूबर 2017 में हॉलीवुड के बड़े निर्माता हार्वी वाइनस्टीन पर कई महिलाओं ने यौन उत्पीड़न और बलात्कार के आरोप लगाए थे और इसके बाद दुनियाभर में मी टू आंदोलन में करीब 32 हजार से ज्यादा उच्च शिक्षित और अच्छे पदों पर काम करने वाली महिलाओं ने अपनी आपबीती साझा की। यदि आंकड़ों की बात की जाए, तो वर्ष 2011 में भारत की महिलाओं की जनसंख्या में से बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न जैसा अपमानजनक व्यवहार हुआ है।

इंडियन नेशनल बार एसोसिएशन द्वारा 2017 में कराए गए भारत में अब तक के सबसे बड़े सर्वेक्षण में 6,000 से अधिक कर्मचारियों ने जानकारी दी कि रोजगार के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न एक बड़ी समस्या है। महिला एवं बालविकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की जारी रिपोर्ट के अनुसार यौन उत्पीड़न के 965 मामलों में से केवल 29 मामले पंजीकृत हुए। सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के मामलों में तेजी से न्याय सुनिश्चित करने के लिए अगस्त 1997 में दिशा निर्देश प्रस्तुत कर कहा कि लैंगिक समानता में यौन उत्पीड़न से सुरक्षा और गरिमा के साथ काम का अधिकार शामिल है। यह एक सार्वभौमबुनियादी मानवाधिकार है। इसके बाद 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकथाम निषेध और निवारण अधिनियम पारित हुआ। जिसके अंतर्गत सभी सार्वजनिक और निजी कार्यस्थलों को महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने और उसकी जांच करने के लिए आवश्यक उपायों को अपनाना अनिवार्य किया गया है। जिन संस्थाओं में दस से अधिक लोग काम करते हैं, उन पर यह अधिनियम लागू होता है। इसके अनुसार किसी महिला के साथ शारीरिक संपर्क और कोशिशों या यौन अनुग्रह की मांग या अनुरोध, या कामुक टिप्पणी या अश्लील साहित्य या चित्र का प्रदर्शन, या अवांछित आचार-व्यवहार चाहे प्रत्यक्ष हो या सांकेतिक, कानून के तहत यौन उत्पीड़न है।

अगर संगठन, संस्थान में आंतरिक शिकायत समिति है तो उसमें ही शिकायत करनी चाहिए। 10 से अधिक कर्मचारी वाले सभी संगठन या संस्थान आंतरिक शिकायत समिति गठित करने के लिए बाध्य हैं। यदि आंतरिक शिकायत समिति गठित नहीं हो,तो स्थानीय शिकायत समिति में शिकायत दर्ज करानी चाहिए या लोकल पुलिस और न्यायालय में भी शिकायत कर सकती हैं। यौन उत्पीड़न की शिकायत लिखित रूप में पीड़ित द्वारा 3 महीने के अंदर की जानी चाहिए। पीड़ित के शारीरिक रूप से शिकायत करने में असमर्थ होने पर रिश्तेदार या मित्र, सह-कार्यकर्ता शिकायत कर सकते हैं। यदि पीड़ित की मानसिक स्थिति शिकायत दर्ज करने लायक नहीं है, तो उसके रिश्तेदार, शिक्षक उसके मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, उसके संरक्षक शिकायत कर सकते हैं। पीड़ित की मृत्यु होने की दशा में कोई भी व्यक्ति जिसे इस घटना के बारे में पता हो पीड़ित के कानूनी उत्तराधिकारी की सहमति से शिकायत कर सकता है। यदि शिकायत 3 महीने के अंदर दर्ज नहीं की गई है, तो उचित कारण प्रस्तुत करने पर अतिरिक्त 3 महीने का समय दिया जा सकता है।

पीड़ित महिला की सहमति मामले को समाधान की प्रक्रिया से भी सुलझाया जा सकता है। परन्तु ऐसे किसी भी समझौते में पैसे के भुगतान द्वारा समझौता नहीं किया जा सकता। यदि महिला समाधान नहीं चाहती है तो आंतरिक शिकायत समिति जांच प्रक्रिया को 90 दिन में पूरा करती है। यदि समिति आरोपी को यौन उत्पीड़न का दोषी पाती है तो समिति नियोक्ता को आरोपी के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए सुझाव देगी। नियोक्ता संस्था या कंपनी के निम्न श्रेणी के प्रबंधक या अधिकारी को नियोक्ता माना जाता है। सरकारी कार्यालय, दफ्तर में विभाग का प्रमुख, निजी दफ्तर में कार्यालय का प्रबंधक या बोर्ड और समिति, निजी कार्यालय में अनुबंधकर्ता या कांट्रैक्टर तथा घर में जिस व्यक्ति ने किसी घरेलू कामगार को काम पर रखा है, वह नियोक्ता की श्रेणी में आते हैं। नियोक्ता को अपने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए आंतरिक शिकायत समिति का गठन मानदंडों के अनुसार करना अनिवार्य है।

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एक्ट के उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई की जाती है। इसमें नियोक्ता को वित्तीय दंड, क्षति पूर्ति का भुगतान, या अन्य दंडात्मक प्रावधान शामिल हो सकते हैं। यदि शिकायत पर उचित कार्रवाई नहीं की जाती है, या कानून का पालन नहीं किया जाता है, तो संबंधित प्राधिकृत अधिकारी के माध्यम से कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। प्रतिशोधात्मक कार्रवाई ऐक्ट यह सुनिश्चित करता है कि शिकायत करने वाली महिला के खिलाफ  किसी भी प्रकार की प्रतिशोधात्मक कार्रवाई कानूनन दंडनीय माना जाएगा और इसके खलाफ  सख्त कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

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-पवन कुमार जीनवाल
सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, जयपुर।

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