उपचुनावों में कांग्रेस की कई दुविधाएं, जातिगत गणित साधना होगी बड़ी चुनौती
भाजपा में झगड़ों को उठाकर राजनीति करने में व्यस्त हैं
परिपेक्ष्य में भी ऐसी दलीलें देने वाले ये नेता संगठन स्तर पर कमियों को सुधारने की जगह भाजपा में झगड़ों को उठाकर राजनीति करने में व्यस्त हैं।
जयपुर। हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के बाद राजस्थान कांग्रेस को राजस्थान में सात सीटों पर विधानसभा उपचुनाव में हरियाणा कांग्रेस जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस पंरपरागत वोट बैंक को साधे रखने के लिए विपक्षी पार्टी को निशाना बनाने की जगह अपना बूथ और माइक्रो मैनेजमेंट मजबूत करने में अभी भी कमजोर बनी हुई है। रणनीति नहीं बदलने पर कई सीटों जीत की गणित गड़बड़ा सकती है। राजस्थान कांग्रेस के कई दिग्गज नेता भी हरियाणा चुनाव परिणामों को लेकर अपनी समीक्षा में कह रहे हैं कि कांग्रेस के मजबूत वोट बैंक जाट और एससी में सेंधमारी हुई। समीक्षा के बाद कमियां दूर की जाएंगी। राजस्थान के परिपेक्ष्य में भी ऐसी दलीलें देने वाले ये नेता संगठन स्तर पर कमियों को सुधारने की जगह भाजपा में झगड़ों को उठाकर राजनीति करने में व्यस्त हैं।
रणनीतिकार यह तो मानते हैं कि हरियाणा में वोटों में सेंधमारी हुई, लेकिन यह नहीं स्वीकारते कि ओवर कॉन्फिडेंस की वजह से शाम होते होते वहां बूथ स्तर पर रुकने वाले कार्यकर्ताओं का टोटा पड़ गया। जातियों के आधार पर गुटों के बंटे नेता केवल अपने समर्थक नेता की पैराकारी करने में जुटे रहे और भाजपा इस बीच माइक्रो मैनेजमेंट करके अपनी सूझबूझ से वोटों को अपने पक्ष में कराने में सफल हो गई। राजस्थान में भी कई सीटों पर नेताओं के जातिगत आधार पर गुटों के बंटे रहने और बूथ स्तर पर टीम तक उपलब्ध नहीं होने की कमजोरी बनी हुई है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी कई सीटों पर कांग्रेस का बूथ मैनेजमेंट काफी कमजोर नजर आया।
सहानूभूति लहर पर सवार होना सिर्फ ओवर कॉन्फिडेंस होगा
उपचुनाव में कांग्रेस अधिकांश सीटों पर सहानूभूति लहर के भरोसे मैदान में खड़ी है। दौसा, झुंझुनूं, देवली-उनियारा सीटों पर विधायकों के सांसद बनने पर उनकी स्थानीय पकड़ को जीत की मुख्य वजह मान रहे हैं। हरियाणा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा की बदली रणनीति में यहां भी ओवर कॉन्फिडेंस के चलते माइक्रो मैनेजमेंट कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है। सहानूभूति लहर पर सवार होना सिर्फ ओवर कॉन्फिडेंस साबित हो सकता है। सलूम्बर में भाजपा विधायक थे और चौरासी सीट बीएपी पार्टी के कब्जे में थी, लेकिन भाजपा यहां सहानूभूति की जगह आदिवासी बेल्ट पर फोकस कर रणनीति बना रही है। चौरासी, सलूम्बर और खींवसर सीट को लेकर गठबंधन करना कांग्रेस को फायदे का सौदा साबित हो सकता है, लेकिन इस डर की वजह से गठबंधन नहीं कर रहे कि स्थानीय पार्टियां जीत गर्इं तो आगामी विधानसभा चुनाव में अधिक सीटें मागेंगी।
गुटों और जातियों में बंटे हैं कार्यकर्ता
उपचुनाव वाली सीटों पर अभी भी कांग्रेस के कार्यकर्ता नेता गहलोत, पायलट, डोटासरा जैसे गुटों में बंटे हुए हैं और पोस्टरों में अपने समर्थक नेताओं के फोटो लगाकर प्रचार कर रहे हैं। धरातल पर पार्टी को मजबूत करने की जगह सोशल मीडिया पर खुद का गुणगान करने में व्यस्त हैं, ऐसे में चुनाव में बूथ स्तर का मैनेजमेंट गड़बड़ाने की संभावना है। बडेÞ नेता प्रभारियों की बैठकों के भरोसे रहकर भाजपा के अंदरूनी झगडों पर बयान देकर खुद के संगठन की कमजोरी को दूर नहीं कर पा रहे।
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