सेमेस्टर तक सिमट कर रह गई नई शिक्षा नीति
कॉलेजों में न संसाधन और न ही इंफ्रास्ट्रक्चर, फिर विद्यार्थी कैसे बने मल्टी टॉस्किंग
दो साल बाद भी मल्टी डिसिप्लिनरी नहीं बन सके कॉलेज, सेमेस्टर सिस्टम बना बोझ, बढ़ती फीस दे रही तनाव
कोटा। हाड़ौती के उच्च शिक्षण संस्थानों में नई शिक्षा नीति लागू हुए दो साल बीत चुके हैं। लेकिन, यूनिवर्सिटी व महाविद्यालय अब तक न्यू एजुकेशन पॉलिसी का 10 प्रतिशत हिस्सा भी लागू नहीं कर पाई। वजह, बुनियादी सुविधाएं और इंफ्रस्ट्रेक्चर का अभाव। कोटा यूनिवर्सिटी ने आपाधापी में न्यू एजुकेशन पॉलीसी 2020 लागू तो कर दी लेकिन उसके उद्देश्यों को पूरा नहीं कर सकी। नई शिक्षा नीति के नाम पर सिर्फ सेमेस्टर प्रणाली ही लागू किया गया, जो विद्यार्थियों पर बोझ बन गया और मल्टीपल सब्जेक्ट च्वाइस, क्रेडिट सिस्टम व मल्टीपल एंट्री-एक्जिट जैसी सुविधाएं पहुंच से दूर हो गई। कोटा संभाग में एक भी मल्टी डिसिप्लिनरी कॉलेज नहीं है, जहां विद्यार्थियों को मल्टीपल सब्जेक्ट पढ़ने की सुविधा मिल सके। ऐसे में नई शिक्षा नीति इंफ्रास्ट्रक्चर की लचरता के भंवर में फंसकर रह गई। विशेषज्ञों का तर्क है, इंफ्रास्ट्रक्चर व बुनियादी सुविधाओं के बिना विद्यार्थियों का सम्रग विकास संभव नहीं है और न ही नई न्यू एजुकेशन पॉलिसी के उद्देश्यों की पूर्ति हो पाएगी।
पढ़ाने को शिक्षक नहीं, मल्टी डिसिप्लिनरी कैसे बने कॉलेज
नई शिक्षा नीति में प्रावधान है कि आर्ट्स के स्टूडेंट्स साइंस, कॉमर्स या कोई भी रुचिकर विषय पढ़ सकता है। ताकि, छात्र मल्टी टास्किंग बन सके। लेकिन, पिछले दो साल में हाड़ौती का एक भी राजकीय महाविद्यालय मल्टी डिसिप्लिनरी तक नहीं बन सका। कॉलेजों में पढ़ाने को शिक्षक नहीं है, ऐसे में यहां मल्टी टास्किंग स्टूडेंट्स तैयार होना तो दूर उनका पास होना ही चुनौति बना हुआ है।
मल्टीपल एंट्री-एक्जिट तक की सुविधा नहीं
कोटा विवि से संबद्ध हाड़ौती के राजकीय महाविद्यालयों में अब तक नई शिक्षा नीति के तहत मल्टीपल एंट्री-एक्टिजट तक की सुविधा नहीं मिली। जबकि, एनईपी में तीन वर्षीय डिग्री कोर्स में कोई विद्यार्थी प्रथम वर्ष का पहला सेमेस्टर पूरा करता है तो उसे सर्टिफिकेट मिलता है और दूसरा सेमेस्टर करने पर डिप्लोमा का सर्टिफिकेट दिया जाना है। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई किसी दूसरे कॉलेज या विवि से कर सकता है। ऐसी स्थिति में उसके क्रेडिट (अंक) संबंधित शिक्षक संस्था में ट्रांसफर किए जाने का प्रावधान है। लेकिन, संभाग के विद्यार्थियों को यह सुविधा भी नहीं मिल रही। छात्र महीप सिंह
सेमस्टर ने मानसिक तनाव व फीस का बोझ बढ़ाया
नई शिक्षा नीति के नाम पर शुरू की गई सेमेस्टर स्कीम विद्यार्थियों के लिए मुसीबत बन गई। हर छह माह में सेमेस्टर एग्जाम से फीस का बोझ बढ़ गया। जबकि, परीक्षाएं भी 6 माह की जगह ढाई से तीन माह में हो रही है। साल में दो बार एग्जाम होने से विद्यार्थियों को प्रति समेस्टर ढाई हजार का नुकसान हो रहा है। जबकि, पहले वार्षिक स्कीम के तहत साल में एक बार ही एग्जाम फीस लगती थी। वहीं, रिजल्ट भी समय पर जारी होते थे।
आर्ट्स के स्टूडेंट्स कैसे पढ़ेंगे साइंस
: एनईपी छात्रों को बहु विषयक पढ़ने की सुविधा देती है लेकिन संभाग के महाविद्यालय संसाधनों से जूझ रहे। हालात यह हैं, कॉलेजों में बैठने के लिए कुर्सियां तक नहीं है, शिक्षकों के नहीं होने से महत्वपूर्ण विषयों की कक्षाएं नहीं लगती। ऐसे महाविद्यालयों में आर्ट्स के विद्यार्थियों को कैसे साइंस या अन्य रुचिकर सब्जेक्ट पढ़ने को मिलेंगे। मल्टीपल च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम, मल्टीपल एंट्री एक्जिट की सुविधाएं तब तक नहीं मिल सकेगी जब तक मल्टीपल डिसिप्लिीनरी कॉलेज की स्थापना नहीं होगी।
यह बोले शिक्षाविद्
एबीसी आईडी व एक समान हो सिलेबस
जब तक विद्यार्थियों की एबीसी आईडी, एक समान सिलेबस और सभी यूनिवर्सिटी व महाविद्यालय एक प्लेटफॉर्म पर नहीं आएगी तब तक नई शिक्षा नीति को पूरी तरह लागू कर पाना मुश्किल होगा। हालांकि, ऐसे इंडिज्यूवल कॉलेज जहां पर 10 विषय संचालित हैं, वहां स्टूडेंट्स के तीन विषयों को छोड़कर अन्य सात विषयों में च्वाइस दे सकते हैं। लेकिन संबंधित कॉलेजों में 10 विषयों के शिक्षक भी तो हो, जो वर्तमान में कई राजकीय महाविद्यायों में नहीं है। संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के बाद एनईपी लागू करनी चाहिए थी।
-केशव दत्ता, शिक्षक, निजी महाविद्यालय
डिविजन लेवल पर हो ज्वाइंट डायरेक्टर की नियुक्ति
राजकीय महाविद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थी दूसरे स्ट्रीम का विषय कहां और कैसे पढ़ेगा, इसकी व्यवस्था कैसे होगी, यह नीति निर्धारण करना चाहिए था, जो अब तक नहीं हुआ। हमारे पास जो साधन-संसाधन उपलब्ध हैं, उसी में बेहतर करना है। इसके लिए जरूरी है कि संभाग मुख्यालय पर एक ज्वाइंट डायरेक्टर नियुक्त किया जाना चाहिए। क्योंकि, उनके पास सरकार द्वारा निहित शक्तियां होती हैं, जिसका उपयोग कर दो तरह से प्रयास कर सकते हैं, पहला-आर्ट्स के छात्रों को साइंस कॉलेज में तीन दिन पढ़ाने की व्यवस्था कर सकते हैं, लेकिन इसमें स्टूडेंट्स मूव करने में दिक्कत होगी। दूसरा- साइंस कॉलेज से शिक्षक को तीन दिन आर्ट्स कॉलेज में भेजकर पढ़ा सकते हैं।
-प्रो. संजय भार्गव, शिक्षाविद् एवं पूर्व प्राचार्य जेडीबी
मल्टीपल एंट्री-एक्जिट पॉलीसी हो लागू
नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य मल्टीपल डिसिप्लिीनरी कॉलेज की स्थापना करना है, जो अब तक नहीं हुआ। जबकि, आबादी को देखते हुए ऐसा महाविद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए, जहां पर सभी विषयों की फैकल्टी उपलब्ध हो। ताकि, विद्यार्थी किसी भी स्ट्रीम का विषय पढ़ने का मौका मिल सके। मल्टीपल एंट्री एंड एक्जिट स्कीम, के्रडिट सिस्टम तक नहीं अपना सके। मल्टीपल एंट्री एंड एक्जिट के तहत यदि, कोई छात्र 6 महीने ही पढ़ाई करता है और फिर छोड़ देता है तो उसे सर्टिफिकेट दिया जाता है। एक साल पढ़ाई करने पर डिप्लोमा, दो साल पढ़ने पर पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा, तीन साल पर डिग्री, चार साल पर आॅनर्स और पांच साल लगातार पढ़ाई करने पर रिसर्च की डिग्री दी जाती है। लेकिन, हाड़ौती ही नहीं प्रदेश के किसी भी कॉलेज व विवि में यह लागू नहीं हो सका।
-डॉ. अनुज विलियम, प्रोफेसर
एनईपी-2020 की मूल भावना के अनुरूप अभी बहुत कुछ करना बाकी है। सेमेस्टर स्कीम तो न्यू एजुकेशन पॉलिसी का छोटा सा कदम है। विद्यार्थियों के लिए इसे व्यवहारिक बनाने की आवश्यकता है, इस दिशा में हम लगातार कार्य किया जा रहा है।
-प्रो. कैलाश सोढानी, कुलपति, कोटा विश्वविद्यालय
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