कांग्रेस का हल्ला-बोल, नई परिभाषा में अरावली का संरक्षण संभव नहीं
अरावली संरक्षण पर विवाद: कांग्रेस ने सरकार की नई परिभाषा को घेरा
जयराम रमेश ने अरावली की नई परिभाषा को "खनन माफिया के अनुकूल" बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि 100 मीटर की ऊंचाई वाली शर्त से 90% पर्वत श्रृंखला असुरक्षित हो जाएगी।
नई दिल्ली। कांग्रेस ने अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के संरक्षण के लिए नयी परिभाषा को सरकार की इस क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने की सुनियोजित रणनीति करार दिया और कहा कि इससे जर्जर हो चुके इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत नहीं किया जा सकता है।
कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने गुरुवार को कहा कि अरावली को लेकर सरकार जो कदम उठा रही है वह अरावली को बचाने के लिए लाभकारी नहीं, बल्कि वह खनन माफिया के अनुकूल है और इससे ज्यादा सक्रिय होकर वे अरावली में खनन कर पारस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाएंगा।
उन्होंने कहा, केंद्र सरकार अब केवल उन्हीं अरावली पर्वतमालाओं की रक्षा करने जा रही है जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से अधिक है। भारतीय वन सर्वेक्षण के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार अरावली पर्वतमाला का केवल 8.7 प्रतिशत भाग ही 100 मीटर से अधिक ऊंचा है। इसका अर्थ है कि अरावली पर्वतमाला का 90 प्रतिशत से अधिक भाग नई पुनर्परिभाषा के अंतर्गत संरक्षित नहीं होगा और खनन, रियल एस्टेट और अन्य गतिविधियों के लिए खोला जा सकता है, जिससे पहले से ही जर्जर हो चुके पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक नुकसान पहुंचेगा।
कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार के इस कदम से स्पष्ट और सरल सत्य सामने आया है और इसे छिपाया नहीं जा सकता। यह पारिस्थितिकीय संतुलन पर केंद्र सरकार के सुनियोजित हमले का एक और उदाहरण है, जिसका मकसद प्रदूषण मानकों में ढील, पर्यावरण और वन कानूनों को कमजोर करना, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण और पर्यावरण प्रशासन की अन्य संस्थाओं को कमजोर करना है। इसके आगे उन्होंने केंद्र सरकार पर हमला करते हुए कहा कि पर्यावरण संबंधी चिंताओं के मामले में सत्तारूढ़ पार्टी वैश्विक कथनों और उनके जमीनी कार्यों में कोई समानता नहीं है।

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