1808 में पहली बार हुई थी मेला अफसर की तैनाती, कुंभ को ग्रेट फेयर कहते थे अंग्रेज
अंग्रेजों के लिए चौंकाने वाला कुंभ का आयोजन
प्रयागराज के संगम तट पर महाकुंभ-2025 का आगाज हो चुका है, इस वक्त उत्तर प्रदेश का यह शहर भारत की आध्यात्मिक चेतना का शहर बना हुआ है
नई दिल्ली। प्रयागराज के संगम तट पर महाकुंभ-2025 का आगाज हो चुका है। इस वक्त उत्तर प्रदेश का यह शहर भारत की आध्यात्मिक चेतना का शहर बना हुआ है, जहां आस्था का महा जमघट है और इसकी चर्चा पूरे विश्व में हो रही है। कुंभ मेला भारत का वो धार्मिक आयोजन है, जिसकी लिखित ऐतिहासिक प्राचीनता भी कम से कम 3200 साल पुरानी है, जो पूरे विश्व में प्रचलित किसी भी धार्मिक आयोजन की नहीं है।
अंग्रेजों के लिए चौंकाने वाला कुंभ का आयोजन
अंग्रेज जब भारत आए थे, तब उन्होंने इस विशाल आयोजन को बहुत चौंकाने वाला माना था और इसकी गतिविधियों को वह दीदे फाड़कर देखते थे। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक धनंजय चोपड़ा ने अपनी किताब भारत में कुंभ में अंग्रेजों के समय यानी ब्रिटिश कालीन कुंभ मेले के हाल और ब्योरा रखा है। उन्होंने लिखा है कि अंग्रेजों के लिए कुंभ आयोजन किसी कौतूहल से कम नहीं था। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी इसे ग्रेट फेयर कहते थे।
ईसाई मिशनरी के लोग भी पहुंचे थे कुंभ
किताब की मानें तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने मेले को आमदनी बढ़ाने का जरिया माना था और इसलिए भी उन्होंने इस मेले पर ध्यान देना शुरू किया। शुरूआत में कई अधिकारी सहित ईसाई मिशनरी
के लोग भी इस महामेले को समझने जाया करते थे। शायद अंग्रेजों की सोच इस बहुत बड़े आयोजन को भी कैप्चर करने की रही होगी। अंग्रेज अफसरों ने कुंभ को लेकर अपनी अपनी रिपोर्ट भी तैयार की।
कुंभ में क्या-क्या होता था? अंग्रेजों की रिपोर्ट
मेजर जनरल थॉमस हार्डविक ने सन 1796 के हरिद्वार कुंभ मेले का वर्णन करते हुए एशियाटिक रिसर्चेज में प्रकाशित अपने आलेख में लिखा था कि इस मेले में 20-50 लाख लोग एकत्र हुए थे, जिसमें शैव गोसाईं की संख्या सबसे अधिक थी। इसके बाद वैष्णव बैरागियों की संख्या थी। गोसाईं ही मेले का प्रबंध संभाले हुए थे और उनके हाथों में तलवारें और ढाल हुआ करती थीं1808 में पहली बार हुई थी मेला अफसर की तैनाती, कुंभ को ग्रेट फेयर कहते थे अंग्रेज
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