क्या है रक्षाबंधन का इतिहास और महत्व

रक्षाबंधन के तार रानी कर्णावती से जुड़े हुए भी नजर आते हैं

क्या है रक्षाबंधन का इतिहास और महत्व

जब मध्यकालीन युग में मुस्लिमों और राजपूतों के बीच संघर्ष चल रहा था। उस वक्त चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी।

हमारे जीवन में कई रिश्ते होते हैं, लेकिन भाई-बहन का रिश्ता सबसे अनोखा होता है। इसमें रूठना-मनाना,एक-दूसरे को सपोर्ट करना पापा की डांट हो या मम्मी की मार इनसे  बचाना आदि। इन सबकी झलक इस रिश्ते में मिलती है। भाई-बहन के इसी  प्यार को दर्शाता है राखी का त्योहार। हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबधन का त्योहार मनाया जाता है। बहन इस दिन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और बदले में भाई अपनी बहन की सदैव रक्षा करने का वचन देता है। ये सब हम जानते हैं और इस त्योहार को कुछ इसी तरह हर साल मनाते हैं। लेकिन क्या आपने ये जाना है कि आखिर इस त्योहार का इतिहास क्या कहता है,इस दिन को मनाने की शुरुआत कब हुई थी।

पुराना है इतिहास
राखी के इतिहास पर नजर डालते हैं, तो इसकी शुरुआत को लेकर कोई निश्चित इतिहास तो नहीं मिलता है। लेकिन इतना जरूर है कि इसका इतिहास सदियों पुराना है। भविष्य पुराण में राखी के बारे में वर्णन मिलता है। इसमें बताया गया है कि जब दानवों और देव के बीच युद्ध शुरु हुआ था तब तब देवों पर दानव हावी हो रहे थे।  ऐसे में इंद्र भगवान घबरा गए और भगवान बृहस्पति के पास पहुंचकर सबकुछ बताया, जिसे इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। इसके बाद उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति इंद्र के हाथ पर बांध दिया और ये दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का था। 

महाभारत में भी है जिक्र
रक्षाबंधन के तार महाभारत से भी जुड़ते हुए नजर आते हैं। जब भगवान कृष्ण ने राजा शिशुपाल का वध किया था, तब इस दौरान उनके बाएं हाथ की उंगली से खून बहने लगा था जिसे देखकर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दिया। इससे भगवान कृष्ण की उंगली से बह रहा खून बंद हो गया। कहा जाता है कि यहीं से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन बना लिया था। 

यहां भी है जिक्र
रक्षाबंधन के तार रानी कर्णावती से जुड़े हुए भी नजर आते हैं। जब मध्यकालीन युग में मुस्लिमों और राजपूतों के बीच संघर्ष चल रहा था। उस वक्त चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। इसके बाद ही हुमायूं ने रानी कर्णावती की रक्षा कर, उन्हें अपनी बहन का दर्जा दिया था।  

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