पोलो के गढ़ में खेल को बचाने के लिए 12 दोस्त आए आगे, 70 बीघा जमीन में बनाए तीन ग्राउंड, बढ़ी जयपुर पोलो सीजन में टीमों की संख्या
बदलते वक्त के साथ यह खेल अपने ही गढ़ में कमजोर होता जा रहा
जयपुर को पोलो का मक्का और राजस्थान को पोलो का गढ़ माना जाता है।
जयपुर। जयपुर को पोलो का मक्का और राजस्थान को पोलो का गढ़ माना जाता है। रियासतों के समय जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, अलवर और किशनगढ़ जैसी रियासतों में पोलो की मजबूत टीमें हुआ करती थीं। लेकिन बदलते वक्त के साथ यह खेल अपने ही गढ़ में कमजोर होता जा रहा है। दुनिया में जयपुर की पहचान बने इस खेल को अब प्रदेश में सरकारी संरक्षण की सख्त जरूरत है। हालांकि खेल को बचाने की जिम्मेदारी अब खुद खेल प्रेमियों ने उठा ली है। पोलो से जुड़े 12 दोस्तों नवीन जिंदल, जैसल सिंह, पद्मनाभ सिंह, हिम्मत सिंह बेदला, विक्रम राठौड़, कुशाग्र बजाज, ऐश्वर्या पालीवाल, चिराग पारीख, अनै शॉ, निमित मेहता, सिद्धांत सिंह और अंकुर मिश्रा ने इस खेल को आगे बढ़ाने की पहल की है। ये सभी खिलाड़ी और प्रमोटर रहे हैं और अब अपने स्तर पर पोलो को बढ़ावा देने के लिए आगे आए हैं।
मुंडोता में बनाए तीन नए पोलो ग्राउंड :
इन दोस्तों ने मिलकर जयपुर के पास मुंडोता फोर्ट एंड पैलेस के समीप 70 बीघा जमीन को 15 साल के लिए लीज पर लिया है। यहां तीन अंतरराष्ट्रीय स्तर के पोलो ग्राउंड विकसित किए गए हैं। साथ ही, घोड़ों के लिए एक अस्थाई अस्तबल भी बनाया गया है, जहां विभिन्न टीमों के घोड़े रखे जा रहे हैं। इस पूरे प्रोजेक्ट का खर्च इन दोस्तों द्वारा ही उठाया जा रहा है।
जयपुर पोलो सीजन को मिली नई ऊर्जा :
नये विकसित पैटर्न पोलो क्लब (पीपीसी) ग्राउंड्स पर वर्तमान में जयपुर पोलो सीजन के अधिकांश मैच खेले जा रहे हैं। पहले मैदानों की कमी के कारण जयपुर पोलो सीजन सीमित रह जाता था, लेकिन अब हर टूनार्मेंट में 8-10 टीमें भाग ले रही हैं। यही नहीं सितंबर से मार्च-अप्रैल तक इन ग्राउंड्स पर हर सप्ताहांत टूनार्मेंट्स आयोजित किए जाते हैं, जबकि अन्य दिनों में युवा खिलाड़ियों के लिए प्रैक्टिस सेशन चलते हैं।
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