आदिवासी समाज के साथ नहीं हो रहा न्याय : वन भूमि पर उनके अधिकारों को छीनकर हो रहा उनके साथ अत्याचार, कांग्रेस ने कहा- विश्व आदिवासी दिवस पर हो सार्वजनिक अवकाश 

उनसे कोई सलाह तक नहीं ली जा रही है

आदिवासी समाज के साथ नहीं हो रहा न्याय : वन भूमि पर उनके अधिकारों को छीनकर हो रहा उनके साथ अत्याचार, कांग्रेस ने कहा- विश्व आदिवासी दिवस पर हो सार्वजनिक अवकाश 

ध्यान केंद्रित करने के लिए सरकार को उनकी जल- जंगल-जमीन की लड़ाई की मांग स्वीकार कर नौ अगस्त विश्व आदिवासी दिवस पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करना चाहिए। 

नई दिल्ली। कांग्रेस ने आदिवासी समाज के साथ न्याय नहीं होने का आरोप लगाते हुए कहा है कि वन भूमि पर उनके अधिकारों को छीनकर उनके साथ अत्याचार हो रहा है, इसलिए विश्व आदिवासी दिवस पर सार्वजनिक अवकाश घोषित कर इस समुदाय के अधिकारों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। आदिवासी कांग्रेस के चेयरमैन डॉ. विक्रांत भूरिया ने सोमवार को यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इस समुदाय के लोगों पर तरह तरह के अत्याचार हो रहे हैं, इसलिए उनकी समस्या पर सबका ध्यान केंद्रित करने के लिए सरकार को उनकी जल- जंगल-जमीन की लड़ाई की मांग स्वीकार कर नौ अगस्त विश्व आदिवासी दिवस पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करना चाहिए। 

उन्होंने गोंडी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करते हुए कहा कि देश के मूल निवासी आदिवासी हैं और इस देश पर सबसे ज्यादा अधिकार उनका ही है लेकिन भाजपा आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को कमजोर कर उनकी जमीनों को छीनी रही है। आदिवासियों की जरूरत और कानून अलग है इसलिए आदिवासी जिलों में पंचायती राज मजबूत करना चाहिए क्योंकि आदिवासी ग्राम सभाओं को दिए कानून सर्वमान्य हैं, जिसका मतलब है कि गांव में स्वशासन इन गांवों के लोगों के माध्यम से होगा। इसका मतलब यह भी है कि अगर गांव में कोई काम करना है तो आदिवासियों से अनुमति लेनी होगी लेकिन हकीकत ये है कि आज उनसे कोई सलाह तक नहीं ली जा रही है।

कांग्रेस नेता ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम आदिवासियों को जंगलों पर अधिकार देता है। वन समितियों के माध्यम से यदि कोई आदिवासी कहीं भी पट्टा चाहता है तो वन समिति पट्टा दे सकती है लेकिन असलियत में आदिवासियों को किसी तरह के अधिकार नहीं मिल रहे हैं। मध्य प्रदेश में सरकार 40 प्रतिशत वनों का निजीकरण करने जा रही है। सरकार का कहना है कि ये जंगल $खराब हो गए हैं, इसलिए इन्हें निजी कंपनियों को देकर इन जंगलों को विकसित करना है। इससे आदिवासियों की खेती की जमीन और चारागाह उनसे छीन जाएंगे। इससे साफ है कि मध्य प्रदेश सरकार जंगलों से आदिवासियों को हटाना चाहती है। देश में आदिवासियों के खिलाफ सबसे ज्यादा अत्याचार मध्य प्रदेश में हो रहा है। दूसरे स्थान पर राजस्थान तथा ओडिशा का तीसरा नंबर है।
उन्होंने आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों को बताते हुए कहा कि मध्य प्रदेश के सीधी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता ने एक आदिवासी पर पेशाब कर आदिवासी सम्मान को तार-तार किया, लेकिन राज्य सरकार अपमान करने वाले की रक्षा करने में लग गई। प्रदेश के नेमावर में पांच लोगों को ङ्क्षजदा गाड़ दिया गया, जिसमें भाजपा विधायक के लोग शामिल थे इसलिए जब हमने आंदोलन किया तब इस मामले में प्राथमिकी हुई। नीमच में आदिवासी को गाड़ी से बांधकर घसीट कर मार डाला गया और यह गुनाह भाजपा के सरपंच ने किया। झाबुआ में एक आदिवासी को इतना पीटा और प्रताड़ति किया गया कि उसने फांसी लगा ली। राजधानी भोपाल में एक नाबालिग आदिवासी बच्ची के साथ लोक रंग कार्यक्रम में बलात्कार हुआ। 
इस घटना की प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई। बच्ची को प्रताड़ति होना पड़ा और उसे न्याय नहीं मिला। आखिर में बच्ची को परिवार के साथ भोपाल से 600 किमी दूर अपने घर मऊगंज जाना पड़ा और वहां जाकर प्राथमिकी हुई। सोचिए, अगर न्याय पाने के लिए किसी आदिवासी को 600 किमी दूर जाना पड़ेगा न्याय कहां और कब मिलेगा।

 

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