बेमिसाल क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ, जिन्होंने भाई, पुत्र और बहनोई तक को क्रांति की राह पर डाला, पुत्र प्रताप सिंह 22 की उम्र में शहीद
क्रांतिकारी रासबिहारी बोस के साथ मिलकर तैयार करते थे बलिदानी देशभक्त
क्रांति के मामले में राजस्थान में सबसे बड़ा योगदान ठाकुर केसरीसिंह बारहठ और उनके परिवार का था। 1872 में शाहपुरा भीलवाड़ा के निकट पैतृक जागीर के गांव देवपुरा में पैदा बारहठ कई भारतीय भाषाओं के ज्ञाता थे।
देश में 1857 की क्रांति तो विफल हो गई, लेकिन राजस्थान में इस क्रांति की धुरी थे शाहपुरा निवासी बारहठ केसरीसिंह, खरवा ठाकुर गोपाल सिंह, जयपुर के अर्जुनलाल सेठी तथा ब्यावर के सेठ दामोदरदास राठी। इन्होंने राजस्थान में अभिनव भारत समिति नामक क्रांतिकारी संगठन की शाखा स्थापित की थी। इस संस्था ने क्रांति के लिए युवकों को तैयार किया। सेठी ने जयपुर में वर्द्धमान विद्यालय शुरू करवाया था। यहां से शिक्षित युवाओं को वे क्रांतिकारी कामों के व्यावहारिक ज्ञान के लिए बंगाल और देश के मशहूर क्रांतिकारी रास बिहारी बोस के पास भेजते, जहाँ उन्हें मास्टर अमीरचंद प्रशिक्षण देते।
क्रांति के मामले में राजस्थान में सबसे बड़ा योगदान ठाकुर केसरीसिंह बारहठ और उनके परिवार का था। 1872 में शाहपुरा भीलवाड़ा के निकट पैतृक जागीर के गांव देवपुरा में पैदा बारहठ कई भारतीय भाषाओं के ज्ञाता थे। वे डिंगल के उत्कृष्ट कवि थे। उन्होंने राजस्थान के राजाओं और जागीरदारों में राष्ट्रीय भावना भरी। वे अदभुत कवि थे। 1930 में लॉर्ड कर्जन के दरबार में भाग लेने के लिए मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह दिल्ली के लिए रवाना हुए तो बारहठ के चेतावनी के चूंिठयों से प्रभावित होकर वे बिना दरबार में भाग लिए ही उदयपुर लौट आए।
बारहठ ने अपने भाई, बहनोई और पुत्र तक को बलिदानी राह पर डाल दिया। 1912 में ब्रिटिश सरकार ने राजधानी कोलकाता से दिल्ली लाने का फैसला किया तो 23 दिसंबर 1912 को भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड हॉर्डिंग के दिल्ली में प्रवेश के समय उन्हें मारने की योजना क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने बनाई। इसके लिए उन्होंने बंगाल के बसंत कुमार विश्वास और राजस्थान के जोरावर सिंह तथा प्रताप सिंह को चुना। इन युवकों ने चांदनी चौक स्थित पंजाब नेशनल बैंक की इमारत से बम फेंका, जो गवर्नर जनरल पर गिरा। वह घायल तो हुआ पर मरा नहीं। उसका अंगरक्षक मारा गया।
प्रतापसिंह को 1917 में बनारस षड्यंत्र अभियोग में 5 वर्ष की सजा हुई। उन्हें बरेली सेंट्रल जेल में बंद रखा गया। भारत सरकार के गुप्तचर विभाग का निदेशक सर चार्ल्स क्लीवलैंड उनसे जेल में मिला और कहा कि उनकी मां उनके लिए दिन रात रोती है। अगर वह क्रांतिकारियों की गतिविधियों को रोक दें तो उन्हें तत्काल रिहा कर दिया जाएगा। प्रताप सिंह ने उत्तर दिया : मेरी मां रोती है तो रोने दो। मैं अपनी मां को हंसाने के लिए हजारों माताओं को रुलाना नहीं चाहता। क्लीवलैंड ने अपने संस्मरण में इस घटना को याद करते हुए लिखा है : मैंने आज तक प्रताप सिंह जैसा वीर और विलक्षण बुद्धि वाला युवक नहीं देखा। उसे सताने में हमने कोई कसर नहीं रखी पर वह टस से मस नहीं हुआ। हम सब हार गए पर प्रताप सिंह जेल में अंग्रेजों की अमानुषिक यातनाओं की वजह से 27 मई 1918 को केवल 22 वर्ष की उम्र में शहीद हो गया।
केसरी सिंह को एक हत्याकांड में गिरफ्तार कर 20 साल की जेल की गई। पैतृक संपत्ति और जागीर जप्त कर ली गई। बिहार के हजारीबाग जेल में उन्हें सजा काटने भेजा गया। वे जब कोटा पहुंचे तो उन्हें पुत्र प्रताप सिंह के बरेली जेल में शहीद होने के समाचार मिला। उन्होंने दुखी होने के बजाय कहा : भारत माता का पुत्र उसकी मुक्ति के लिए बलिदान हो गया! यह मेरा नहीं, भारत माता का ही बेटा था। मेरे लिए यह दु:ख का नहीं, गर्व का दिन है। बारहठ आखिरी समय में हिंसा की राह छोड़कर महात्मा गांधी की राह पर आए और उन्होंने माना कि हिंसा के बजाय अहिंसा से आजादी को लाया जा सकता है। उन्होंने गांधी जी की प्रेरणा से पत्रकारिता भी की और लोगों में जागृति के लिए काम किया।

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