The Trial Web Series Review: काली जिंदगी से लड़ने के लिए काला कोट पहना पड़ता है

जज और वकीलों की बातचीत मजेदार है

The Trial Web Series Review: काली जिंदगी से लड़ने के लिए काला कोट पहना पड़ता है

लचर पटकथा में दांवपेच की अपनी नई पहेली है, जो रोचकता के पैमाने पर खरी नहीं उतरती। कोर्ट रूम ड्रामा में कसावट नहीं है।

नवज्योति, जयपुर। एक औरत के अपने वजूद को पाने की जद्दोजहद है द ट्रायल। प्यार कानून धोखे की लड़खड़ाती कहानी को जब अच्छे अभिनय और निर्देशन की बैसाखियां मिलती हैं तो द ट्रायल जैसी वेब सीरीज बनती है, जो रॉबर्ट और मिशेल किंग के मशहूर अमेरिकी शो द गुड वाइफ  से प्रेरित और हॉटस्टार पर स्ट्रीम है। कहानी है नोयोनिका सेनगुप्ता (काजोल) की जो लॉ में कॉलेज टॉपर है, लेकिन शादी बाद अपना वजूद भुलाकर, एक मां और बीवी बनकर अपने पति का घर और जिमेदारियां अच्छे से संभालती है। खुश और सुखी परिवार है पर तब तक, जब तक की एक वीडियो क्लिप वायरल नहीं होती, जिसमें पति जिशूद्ध सेनगुप्ता (राजीव) का नकाब उतरता है और घिनौना चेहरा सामने आता है। एक रेपुटेड जज, अपनी महत्वकांक्षाओं के चलते एक घूसखोर इंसान बनकर हर गलत काम को अंजाम देता है। यहां तक की घूस में वो यौन शौषण करने से भी बाज नहीं आता। जब उसका काला चिट्ठा दुनिया के सामने आता है तो वो जेल तो जाता ही है, लेकिन अपने पीछे बदनामी और हिकारत का बोझ नोयोनिका और दोनों बेटियां अनन्या और अनायरा पर छोड़ जाता है। लोगों की नजरे बदलती हैं। दुनिया और जिंदगी दोनों बद से बदतर होती हैं। प्रॉपर्टी पैसा सब जब्त हो जाता है। बदनामी और तंगहाली में आखिर नैनिका के पास और कोई चारा नहीं बचता। बेटियों को पालने और घर चलाने के लिए उसे लॉ फर्म ज्वाइन करना पड़ता है और काली जिंदगी से लड़ने के लिए काला कोट पहना पड़ता है। जिंदगी नया मोड़ लेती है। नए केस, नई मिस्ट्री और कोर्ट में हरबार एक नई लड़ाई।  उलझी हुई जिंदगी हर बार नए केस को सुलझाते हुए खुद को पाती है। मिस्ट्री से गूंथी एक बेबस लाचार मां, बीवी से एक काबिल वकील बनने का सफर है द ट्रायल। क्या वो अपने मकसद में कामयाब होगी। क्या वो अपना वजूद हासिल करेगी। बिखरी लाइफ  कभी सिमटेगी। यही सवाल है द ट्रायल। कहानी सरल, लेकिन परत दर परत और उलझती है। लचर पटकथा में दांवपेच की अपनी नई पहेली है, जो रोचकता के पैमाने पर खरी नहीं उतरती। कोर्ट रूम ड्रामा में कसावट नहीं है। राइटिंग कमजोर कड़ी है। संवाद ठीक है। जज और वकीलों की बातचीत मजेदार है। निर्देशन बेहतरीन है, जो कमजोर पटकथा को किरदारों और सीक्वेंस का तालमेल बैठाकर रोचक बनाता है। 

अभिनय काजोल का शानदार है। अपने सारे शेड्स बाखूबी जीते हुए वो केस के साथ दिल भी जीतती है। जीशू का काम लाजवाब है। कुबरा सैत, अली खान, आमिर अली और गौरव पांडे अपनी भूमिका अच्छे से निभाते है। एडिटिंग में ग्रिप की कमी, बैकग्राउंड अच्छा है। ओवर ऑल कंटेंट अच्छा, लेकिन स्क्रिप्ट में मात खाती द ट्रायल एक बार देखने लायक है। बाकी दर्शक तय करें उन्हें कानून और इमोशन का ये ट्रायल कैसा लगा।

- दानिश राही 

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