जलवायु परिवर्तन और हीटवेव का खतरा

प्रभाव हमारे देश में तीव्र रूप में दिख रहा 

जलवायु परिवर्तन और हीटवेव का खतरा

ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिसका प्रभाव हमारे देश में तीव्र रूप में दिख रहा है। कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन वायुमंडल में गर्मी को बढ़ा रहा है, जिससे न केवल तापमान बढ़ रहा है, बल्कि हीट वेव की अवधि में भी वृद्धि हो रही है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने पुष्टि की है वर्ष 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष माना गया और विशेषज्ञों की मानें तो 2025 भी इसी तापमान वृद्धि के ट्रेंड को आगे बढ़ा रहा है।

जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी और घातक हीटवेव की गंभीरता को देखते हुए माननीय राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि हीट एक्शन प्लान और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को मजबूत करने के लिए सभी विभागों के साथ मिलकर एक समन्वय समिति का गठन कर योजनाओं की प्रभावी क्रियान्विति सुनिश्चित की जाए। जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ते तापमान और तीव्र होती हीटवेव न केवल मानव स्वास्थ्य बल्कि कृषि, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी तंत्र पर भी गहरा प्रभाव डाल रही हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक अध्ययन के अनुसार यदि तापमान वृद्धि की यही गति बनी रही, तो वर्ष 2050 तक गेहूं उत्पादन में 6 से 23 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।

वर्ष 2022 में हीटवेव के चलते उत्तर भारत में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया, जिससे गेहूं उत्पादन में 10.12 फीसदी की कमी आई। हीटवेव का असर केवल खेतों तक सीमित नहीं है। यह भारत जैसे श्रम-प्रधान देश में श्रमिकों की उत्पादकता घटाती है, बिजली की मांग बढ़ाती है और औद्योगिक उत्पादन को बाधित करती है, जिससे व्यक्तिगत आय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था दोनों प्रभावित होती हैं। साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र भी इस बदलते मौसम से असंतुलित हो रहा है, जिससे जैव विविधता पर खतरा मंडरा रहा है। वायु प्रदूषण, अंधाधुंध पेड़ों की कटाई और हरित क्षेत्रों की कमी भी इस संकट को और गहरा कर रही है। शहरी क्षेत्रों में हीट आइलैंड प्रभाव के कारण गर्मी का प्रभाव और अधिक तीव्र हो जाता है, जिससे वायु की गुणवत्ता गिरती है और गर्मी से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ता है। इन तमाम संकेतों से स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की नहीं बल्कि वर्तमान की आपातकालीन चुनौती है, जिसका समाधान तत्काल नीति से ही संभव है। 20वीं सदी के उत्तरार्ध से लेकर आज तक औसत वैश्विक तापमान में लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है और यह आंकड़ा हर साल नई ऊंचाइयों को छू रहा है।

हीटवेव अब केवल गर्मियों की सामान्य घटनाएं नहीं रहीं, बल्कि ये अब घातक आपदाओं का रूप ले चुकी हैं जिनसे लाखों लोग स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं और हजारों की जान भी जा रही है। एक आंकड़े के अनुसार 1 मार्च 2023 से 25 जुलाई 2024 तक देशभर के 36 राज्यों में 67,637 लोग लू की चपेट में आकर अस्पताल पहुंचे, जिनमें से 374 की मृत्यु हो गई। राजस्थान में भी इस अवधि में 7,587 हीटस्ट्रोक के मामले सामने आए और 17 लोगों की जान गई। इन आंकड़ों से यह साफ  है कि बढ़ती गर्मी केवल एक मौसमी बदलाव नहीं, बल्कि एक गंभीर जलवायु संकट का परिणाम है। राजस्थान आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005 के तहत जो राज्य में 1अगस्त 2007 से लागू है उसमें हीटवेव को आपदा प्रबंधन के रूप में शामिल नहीं किया गया है। जब जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक गर्मी और हीटवेव जैसे खतरे आम हो रहे हैं, तो अब इसे आपदा के रूप में स्वीकारना और उससे निपटने के लिए प्रभावी योजनाएं बनाना आवश्यक हो गया है। इससे न केवल जनजीवन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है, बल्कि कृषि, जल, स्वास्थ्य और सामाजिक ताने-बाने पर भी दीर्घकालिक संकट उत्पन्न हो रहा है। यह समय की मांग है कि राज्य सरकारों को इन जलवायु संकटों को गंभीरता से लेते हुएआपदा के रूप में इसे मान्यता देने और त्वरित राहत योजनाओं को लागू करने की आवश्यकता है। 

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2024 की रिकॉर्ड तोड़ गर्मी और लगातार बढ़ती हीटवेव के बीच राज्य सरकार ने अरावली पर्वतमाला में एक ग्रीन वॉल परियोजना प्रस्तावित की गई, जो अफ्रीका की ग्रेट ग्रीन सहारा वॉल की तर्ज पर है, जिसका उद्देश्य पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखना है। अरावली की 1600 किलोमीटर लंबी श्रृंखला में देशी प्रजातियों के पौधों का रोपण कर एक हरित अवरोध बनाया जाएगा, जो तापमान नियंत्रण, कार्बन अवशोषण और जैव विविधता संरक्षण में मदद करेगा। प्रारंभिक तौर पर इस बाबत 250 करोड़ रुपए का प्रावधान वर्ष 2025-26 के बजट में किया गया है। खनन, शहरीकरण और प्रदूषण से जूझ रही अरावली के लिए यह परियोजना जीवनदायिनी साबित हो सकती है। यदि सही तरीके से इसे क्रियान्वित किया गया, तो अरावली की यह हरित दीवार आने वाले वर्षों में शहरी गर्मी को कम करने और कार्बन न्यूट्रैलिटी की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। मेरा मानना है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए राज्य सरकारों को स्थानीय स्तर पर लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जलवायु अनुकूल उपायों को लागू करने में समुदाय की सक्रिय भागीदारी से ही दीर्घकालिक प्रभाव उत्पन्न होंगे। इसके लिए ग्राम पंचायतों और नगर निगमों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए। 

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-राजेन्द्र राठौड़
पूर्व नेता प्रतिपक्ष
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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