डिजिटल स्वतंत्रता बन रही है सांस्कृतिक खतरा

व्यवहार में विकृति 

डिजिटल स्वतंत्रता बन रही है सांस्कृतिक खतरा

ओवर-द-टॉप मंचों ने हाल के वर्षों में भारतीय दर्शकों के बीच व्यापक लोकप्रियता प्राप्त की है।

ओवर-द-टॉप मंचों ने हाल के वर्षों में भारतीय दर्शकों के बीच व्यापक लोकप्रियता प्राप्त की है। इंटरनेट क्रांति, मोबाइल डेटा की सुलभता और स्मार्टफोन की पहुंच ने इन्हें मनोरंजन के एक नए विकल्प के रूप में स्थापित किया है। इन मंचों ने पारंपरिक टेलीविजन और सिनेमा की सीमाओं को पार कर दर्शकों को विविध, ताजगीपूर्ण और प्रयोगधर्मी सामग्री प्रदान की है। परंतु इस स्वतंत्रता ने सामग्री निर्माण के उस मोड़ को भी जन्म दिया है, जहां मनोरंजन और अश्लीलता के बीच की विभाजक रेखा निरंतर धुंधली होती जा रही है।

ओटीटी पर प्रतिबंध :

हाल ही में भारत सरकार द्वारा 25 ओटीटी ऐप्स पर लगाए गए प्रतिबंध को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। यह निर्णय केवल तकनीकी या कानूनी दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन मंचों पर दिखाई जाने वाली सामग्री को लेकर सरकार को लंबे समय से अनेक शिकायतें प्राप्त हो रही थीं, जिनमें कहा गया था कि इन पर वयस्क वेब श्रृंखलाओं के नाम पर खुलेआम अश्लील और आपत्तिजनक दृश्य, संवाद और कथानक प्रस्तुत किए जा रहे हैं। इन शिकायतों के आधार पर की गई जांच में यह स्पष्ट हुआ कि कई मंच आईटी नियम 2021 तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 292 और 293 का उल्लंघन कर रहे हैं।

मनोरंजन के नाम पर :

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यह कार्यवाही डिजिटल जगत में मनोरंजन के नाम पर फैल रही अराजकता पर एक कठोर चेतावनी के रूप में सामने आई है। ओटीटी मंचों की लोकप्रियता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इनमें से कुछ ऐप्स को पचास लाख से लेकर एक करोड़ से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुका था। इसका अर्थ है कि समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसी सामग्री की खपत कर रहा था, जो शालीनता और सामाजिक मर्यादाओं की सीमाओं को लांघ रही थी।

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शालीनता और नैतिकता :

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त एक मौलिक अधिकार है, परंतु यह स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है। सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता जैसे विषयों के आधार पर इस पर यथोचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। सरकार द्वारा 2021 में बनाए गए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के अंतर्गत ओटीटी मंचों के लिए त्रिस्तरीय नियंत्रण व्यवस्था लागू की गई थी, जिसमें प्रथम स्तर पर स्व-नियंत्रण, द्वितीय स्तर पर स्व-नियामक संस्था और तृतीय स्तर पर सरकारी निरीक्षण की व्यवस्था की गई थी। परंतु जब इन तीनों स्तरों पर नियंत्रण की प्रक्रिया विफल हो जाती है, तब सरकार को बाध्य होकर अधिक कठोर कार्यवाही करनी पड़ती है।

संवेदनशील स्थिति :

इस प्रकार की सामग्री न केवल लैंगिक असमानता को बढ़ावा देती है, बल्कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को सामाजिक स्वीकृति की ओर भी ले जाती है। यह तथ्य विशेष चिंता का विषय है कि भारत पहले से ही महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मामले में अत्यंत संवेदनशील स्थिति में है। इस पृष्ठभूमि में मीडिया की यह प्रवृत्ति स्थिति को और अधिक जटिल और भयावह बना सकती है। मीडिया की भूमिका केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं होती। यह सामाजिक चेतना का निर्माण करता है, मूल्यबोध को प्रभावित करता है और व्यवहार के प्रतिमानों को गढ़ता है।

व्यवहार में विकृति :

किशोर और युवाओं के लिए यह माध्यम अधिक प्रभावशाली होता है, क्योंकि उनकी दृष्टि और सोच अभी निर्माणाधीन होती है। जब वे बार-बार ऐसे दृश्य और संवाद देखते हैं, जो उनकी आयु और समझ के अनुरूप नहीं होते, तो यह उनके मानसिक स्वास्थ्य, नैतिक विकास और व्यवहार में विकृति उत्पन्न कर सकता है। शिक्षकों और अभिभावकों के लिए यह एक नई चुनौती बन रही है, क्योंकि डिजिटल माध्यमों की निगरानी करना अब पहले जितना सरल नहीं रहा। वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क और प्रॉक्सी तकनीकों की मदद से युवा इन प्रतिबंधों को आसानी से पार कर सकते हैं, जिससे नियंत्रण व्यवस्था और अधिक जटिल बन जाती है।

गंभीरता से समझें :

इस प्रकार की चुनौती का समाधान केवल दंडात्मक कार्यवाही में नहीं है, बल्कि एक व्यापक और समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। विद्यालयों में मीडिया साक्षरता को पाठ्यक्रम का अंग बनाना समय की मांग है। बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए कि वे किस प्रकार से डिजिटल सामग्री का चयन करें, कौन-सी जानकारी विश्वसनीय है और किस प्रकार के दृश्य मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। जब तक डिजिटल दुनिया के प्रति एक जागरूक और विवेकशील दृष्टिकोण विकसित नहीं होता, तब तक कोई भी प्रतिबंध अस्थायी उपाय ही रहेगा। ओटीटी मंचों की पहुंच देश की सीमाओं से परे है, इसलिए उनकी निगरानी और नियमन भी एक वैश्विक नैतिक मानक की दिशा में होना चाहिए। आर्थिक दृष्टि से ओटीटी उद्योग एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसकी अनुमानित वृद्धि दर अत्यंत तेज है। ऐसे में केवल आर्थिक लाभ की ओर देखना पर्याप्त नहीं है, बल्कि इस माध्यम की सामाजिक भूमिका को भी गंभीरता से समझना आवश्यक है।

-देवेन्द्रराज सुथार
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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