बारिश से त्राहि
ज्यादातर जगहों पर बाढ़ आ गई है
हालातों को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है। मानसून के दौरान बाढ़ के कहर को झेलना अब लोगों की नियमित बन गया है।
मानसून की शुरूआत से ही इस साल देश के कई प्रदेश भारी बारिश और बाढ़ के कहर से त्राहि-त्राहि कर रहे है। हालातों को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है। मानसून के दौरान बाढ़ के कहर को झेलना अब लोगों की नियमित बन गया है। पिछले कुछ दिनों में हुई भारी वर्षा से अब तो कई राज्यों के हालात बिगड़ गए हैं। ज्यादातर जगहों पर बाढ़ आ गई है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात से लेकर आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र तक में स्थिति भयावह है। लाखों लोग बेघर हो गए हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में तो मूसलाधार वर्षा और बादल फटने के हादसों ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। चट्टाने गिरने, पहाड़ धंसने, पुल ढ़हने और मलबों से रास्ते बंद होने से संकट और गहरा गया है। हिमाचल प्रदेश में इस साल जून से लेकर अब तक करीब 5 सौ लोग वर्षाजनित हादसों में मारे जा चुके हैं। उत्तराखंड में भी हालात ऐसे ही बने हुए हैं। नदियां पूरे उफान पर हैं। ग्रामीण इलाकों के हालात ज्यादा खराब बने हुए हैं, जहां आपदाओं से निपटने के पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती।
ग्रामीण इलाकों में नुकसान भी ज्यादा होता है। खेत डूब जाते हैं और फसलें चौपट हो जाती है। बड़ी संख्या में मवेशी तेज बहाव में बह जाते हैं और बिजली गिरने व बादल फटने से काफी लोग भी मर जाते हैं। मौसम विभाग का कहना है कि करीब एक सौ साल बाद इस बार वर्षाचक्र में अप्रत्याशित बदलाव आया है। कहीं तो काफी ज्यादा पानी बरस गया, तो कहीं बिल्कुल भी नहीं। इसका नतीजा यह निकला कि कई राज्यों में पानी का संकट बढ़ गया है और सूखे के हालात से बन गए हैं। आंध्र प्रदेश व मध्यप्रदेश के बड़े हिस्से में खूब बारिश हो रही है। ओडीशा के भी कई हिस्सों में भी लोग बारिश की मार झेल रहे हैं। इसमें संदेह नहीं कि मौसम संबंधी गतिविधियों में आ रहे बदलाव का बड़ा कारण जलवायु संकट है। यह अकेले भारत की ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की है। इस पर विचार करना और उपाय करना जरूरी हो गया है अन्यथा यह संकट हर साल ऐसे ही हालात उत्पन्न करता रहेगा।
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