मैं लड़की हूं, मैं बदलाव का नेतृत्व करती हूं

कुरीतियों की शिकार 

मैं लड़की हूं, मैं बदलाव का नेतृत्व करती हूं

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित एक अंतर्राष्ट्रीय पालन दिवस है।

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित एक अंतर्राष्ट्रीय पालन दिवस है। 11 अक्टूबर 2012 को पहली बार बालिका दिवस मनाया गया था। तब से हर वर्ष 11 अक्टूबर को पूरी दुनियां में अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस दुनिया भर में लड़कियों द्वारा उनके लिंग के आधार पर सामना की जाने वाली लैंगिक असमानता के बारे में जागरूकता बढ़ाता है। इस असमानता में शिक्षा, पोषण, कानूनी अधिकार, चिकित्सा देखभाल और भेदभाव से सुरक्षा, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और जबरन बाल विवाह जैसे क्षेत्र शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस 2025 की थीम है मैं लड़की हूं, मैं बदलाव का नेतृत्व करती हूं। संकट की अग्रिम पंक्ति में लड़कियां। यह थीम संकट की परिस्थितियों में लड़कियों की दृढ़ता, नेतृत्व और सशक्त भूमिका पर केंद्रित है। यह थीम उन चुनौतियों पर प्रकाश डालती है, जिनका सामना बालिकाएं करती हैं। जैसे संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और असमानताएं। यह थीम बालिकाओं को केवल संकट के शिकार के रूप में नहीं, बल्कि परिवर्तन के वाहक के रूप में पहचानने पर जोर देती है। यह थीम शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा में निवेश का आह्वान करती है, ताकि वे बेहतर और समावेशी दुनिया का निर्माण कर सकें।

कुरीतियों की शिकार :

आज हर क्षेत्र में बालिकाओं के आगे बढ़ने के बावजूद भी वह अनेकों कुरीतियों की शिकार हैं। ये कुरीतियां उनके आगे बढने में बाधाएं उत्पन्न करती हैं। जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। देश में आज भी प्रतिवर्ष लाखों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही कोख में मार दिया जाता है। आज भी समाज के अनेक घरों में बेटा, बेटी में भेद किया जाता है। बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जाती है। समाज में आज भी बेटियों को बोझ समझा जाता है। भारत में हर साल तीन से सात लाख कन्या भ्रूण नष्ट कर दिये जाते हैं। इसलिए, यहां महिलाओं से पुरुषों की संख्या 5 करोड़ ज्यादा है। समाज में निरंतर परिवर्तन और कार्य बल में महिलाओं की बढ़ती भूमिका के बावजूद रूढ़िवादी विचारधारा के लोग मानते हैं कि बेटा बुढ़ापे का सहारा होगा और बेटी हुई तो वह अपने घर चली जायेगी। बेटा अगर मुखाग्नि नहीं देगा तो कर्मकांड पूरा नहीं होगा। पिछले कुछ वर्षों में देश में जन्म के समय लिंगानुपात में बढ़ोतरी होना शुभ संकेत हैं। संसद में एक सवाल का जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्री ने बताया था कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना ने बालिकाओं के अधिकारों को स्वीकार करने के लिए जनता की मानसिकता को बदलने की दिशा में सामूहिक चेतना जगाई है।

बड़ी विडंबना है :

Read More युवा पीढ़ी राष्ट्र की समृद्धि का आधार

हमारे देश में यह एक बड़ी विडंबना है, कि हम बालिका का पूजन तो करते हैं। लेकिन जब हमारे खुद के घर बालिका जन्म लेती है, तो हम दुखी हो जाते हैं। देश में सभी जगह ऐसा देखा जा सकता है। देश के कई प्रदेशों में तो बालिकाओं के जन्म को अभिशाप तक माना जाता है। लेकिन बालिकाओं को अभिशाप मानने वाले लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि वह उस देश के नागरिक हैं, जहां रानी लक्ष्मीबाई जैसी विरांगनाओं ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। हमारे यहां आज भी बेटी पैदा होते ही उसकी परवरिश से ज्यादा उसकी शादी की चिन्ता होने लगती है। आज महंगी होती शादियों के कारण बेटी का बाप हर समय इस बात को लेकर चिंतित नजर आता है कि उसकी बेटी की शादी की व्यवस्था कैसे होगी। समाज में व्याप्त इसी सोच के चलते कन्या भू्रण हत्या पर रोक नहीं लग पायी है। कोख में कन्याओं को मार देने के कारण समाज में आज लड़कियों की कमी होने से लिंगानुपात गड़बड़ा गया है। अगर समाज में बेटियों को उचित शिक्षा और सम्मान मिले, तो बेटियां किसी भी क्षेत्र में पीछे नही रहेगी। इसलिए यदि यह कहा जाय की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना नहीं हम सबकी एक जिम्मेदारी है, तो इसमें कुछ गलत नही है। यदि हम सभी एक अच्छे समाज का निर्माण करना चाहते हैं, तो हम सबका यही फर्ज बनता है हम बेटियों को भी भयमुक्त वातावरण में पढ़ाएं। उन्हें इतना सशक्त बनाएं की खुद गर्व से कह सके की देखो वह हमारी बेटी है, जो इतना बड़ा काम कर रही है।

Read More जानें राज काज में क्या है खास 

अधिक प्रतिभाशाली :

Read More समाज को राह दिखाता है मीडिया

आज लड़किया लड़कों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं। कठिन से कठिन कार्य लड़किया सफलतापूर्वक कर रही हैं। देश में हर क्षेत्र में महिला शक्ति को पूरी हिम्मत से काम करते देखा जा सकता है। लड़कियों ने अपने काम और समर्पण के दम पर कई क्षेत्रों और क्षेत्रों में खुद को साबित किया है। वे अधिक प्रतिभाशाली, आज्ञाकारी, मेहनती और परिवार और अपने जीवन के लिए जिम्मेदार हैं। लड़कियां अपने परिवार और माता-पिता के प्रति अधिक देखभाल करने वाली और प्यार करने वाली होती हैं और वे हर काम में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देती हैं। झुंझुनू जिले की मोहना सिंह जैसी बालिकाएं भी हैं, जो आज देश में फाईटर प्लेन उड़ा कर पूरे देश में जिले का मान बढ़ा रही हैं। समाज में सभी को मिलकर लड़का-लड़की में भेद नहीं करने व समाज के लोगों को लिंग समानता के बारे में जागरूक करने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए। देश में बालिकाओं के साथ हर दिन प्रताड़ना की घटनाएं अखबारों की सुर्खिया बनती हैं। बालिकाएं कहीं भी अपने को सुरक्षित नहीं समझती हैं। समाज के पढ़े लिखे लोगों को आगे आकर कन्या भू्रण हत्या जैसे घिनोने कार्य को रोकने का माहौल बनाना होगा। ऐसा करने वाले लोगों को समझा कर उनकी सोच में बदलाव लाना होगा। लोगों को इस बात का संकल्प लेना होगा कि ना तो गर्भ में कन्या की हत्या करेगें ना ही किसी को करने देगें। तभी देश में कन्या भू्रण हत्या पर रोक लग पाना संभव हो पाएगा। सरकार व समाज को मिलकर ऐसे वातावरण का निर्माण करने का प्रयास करना चाहिए ,जिसमें बालिकाएं खुद को महफूज समझ सकें। समाज और राष्ट्र के विकास के लिए बालिकाओं के महत्व को स्वीकार करना और बढ़ावा देना आवश्यक है।

-रमेश सर्राफ धमोरा
यह लेखक के अपने विचार हैं।

Post Comment

Comment List

Latest News

सोजत सिटी की मेंहदी फैक्ट्री में भड़की आग युवक जिंदा जला सोजत सिटी की मेंहदी फैक्ट्री में भड़की आग युवक जिंदा जला
कल थी मृतक के साले की शादी- मृतक संजय पत्नी मनीषा, बेटी सोनाली (11) और साढ़े तीन साल के बेटे...
सरकारी अध्यापक ने ट्रेन के आगे कूदकर की खुदकुशी
कांग्रेस सोशल मीडिया विभाग का संगठन सृजन अभियान : सक्रिय कार्यकर्ताओं के लिए इंटरव्यू, भगासरा ने कहा- 2 चरणों में पूरा हुआ अभियान
मणिपुर में सुरक्षाबलों ने नष्ट किए अफीम के खेत : झोपड़ियों को भी किया ध्वस्त, जबरन वसूली करने वाला एक व्यक्ति गिरफ्तार 
प्रवासी राजस्थानी दिवस 2025 : राजस्थान और वैश्विक प्रवासी समुदाय के रिश्तों को देगा नया आयाम, प्रवासी राजस्थानियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण
प्रवासी राजस्थानी दिवस : भजनलाल शर्मा 27 नवम्बर को पर्यटन विभाग की प्री-समिट में करेंगे शिरकत
राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी के नए मुखिया बने वी. श्रीनिवास, आज शाम संभाल सकते हैं कार्यभार