भारत-फ्रांस: रक्षा और अंतरिक्ष में सहयोग करेंगे

भारत-फ्रांस: रक्षा और अंतरिक्ष में सहयोग करेंगे

फ्रांस, रूस के बाद भारत का दूसरा बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता देश है। रफाल लड़ाकू विमान और स्कॉर्पियन पनडुब्बी के अलावा वह भारत के एक बड़े रणनीतिक साझेदार के रूप में उभरा है।

हाल ही फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों का दो दिवसीय भारत दौरा हुआ। वे देश के 75वें गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे। ऐसे में उनका यह दौरा कई मायनों में उम्मीदों भरा रहा। जो आने वाले समय में दोनों देशों के पुराने संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में मददगार साबित होगा। भारत प्रवास दौरान उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत हुई। इसमें दोनों देशों के बीच अहम मुद्दों पर सहमति बनी।   खासकर रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में भावी सहयोग को लेकर। रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में तो बाकायदा एक रोड मैड तैयार किया जाएगा। इसकी जानकारी विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने दी। रोडमैप के अंतर्गत ऑर्टिफिशल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म और साइबर डिफेंस के क्षेत्र में तकनीकी सहयोग का दोनों देशों के बीच आदान-प्रदान होगा। इसमें समुद्र, जमीन, अंतरिक्ष और हवाई क्षेत्र शामिल हैं। कई दशकों पुरानी करीबी को दोनों पक्षों ने आगे बढ़ाने के क्रम में न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड और फ्रांस के एरियनस्पेस और सेटेलाइट लांच को लेकर एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए। अंतरिक्ष में धरती की मॉनिटरिंग और कम्यूनिकेशन्स पर सहयोग को लेकर भी सहमति बनी। इसके अलावा दक्षिणी फ्रांस के मर्सेल में भारतीय कांसुलेट और हैदराबाद में फ्रेंच ब्यूरो अब काम करने के लिए तैयार हैं। दोनों देशों में स्टार सी के प्रोग्राम के तहत एक सोलर अकेडमी स्थापित करने का फैसला किया है।  साल 2026 को इंडिया फ्रांस ईयर ऑफ इनोवेशन की तरह मनाए जाने का दोनों देशों ने फैसला लिया है। दोनों देशों के बीच यंग प्रोफेशनल स्कीम की भी शुरुआत की गई है। जिसके तहत 18-35 साल के युवाओं के बीच एक्सचेंज प्रोग्राम शुरू किए जाएंगे।  दोनों नेताओं के बीच कई वैश्विक मुद्दों-गाजा में जारी संघर्ष, आतंकवाद और मानवता से जुड़े पहलुओं पर गंभीर चर्चा भी हुई। इसके अलावा आर्थिक साझेदारी से जुड़े कई मुद्दों पर बातचीत हुई। बाद में मैक्रों ने अपने ट्वीट के जरिए बताया कि वे साल 2030 तक करीब तीस हजार भारतीय छात्रों को फ्रांस में पढ़ते देखने के लक्ष्य की ओर देख रहे हैं। जो यंग प्रोफेशनल योजना का हिस्सा हैं।  यहां बता दें कि पिछले वर्ष दोनों देशों में परस्पर सहयोग के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर एक समारोह भी मनाया गया था। इसमें कोई दोराय नहीं कि फ्रांस के साथ भारत के संबंध हमेशा बेहतर रहे हैं। लेकिन विश्व में आज जिस तरह के हालात बन रहे हैं, इस क्रम में बड़ी तेजी के साथ देशों में राजनीतिक और सामरिक समीकरण भी बदल रहे हैं। ऐसे में मजबूत होते भारत-फ्रांस के रिश्ते कई चुनौतियों का सामने करने में मददगार साबित होंगे। 
गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मैक्रों का जयपुर में स्वागत किया था। दोनों ने एक साथ रैली में भाग लेकर जनसमूह का अभिवादन स्वीकार किया। यहीं चाय पर दोनों के बीच लंबी बातचीत भी हुई थी। इससे राजस्थान में पर्यटन, हैंडीक्रॉफ्ट और जेम्स-जूलरी क्षेत्र में पिछले कुछ अर्से से छाई मंदी के बादलों के छंटने की आशा अब बलवती हो गई है। यहां बता दें कि राजस्थान में हर साल आने वाले पर्यटकों में फ्रांस के पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है। 

फ्रांस, रूस के बाद भारत का दूसरा बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता देश है। रफाल लड़ाकू विमान और स्कॉर्पियन पनडुब्बी के अलावा वह भारत के एक बड़े रणनीतिक साझेदार के रूप में उभरा है। खासकर हिंदमहासागर में दोनों देशों के बीच संयुक्त सामरिक समझौते हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी फ्रांस हमेशा भारत का समर्थन करता रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में उसके प्रवेश का वह समर्थक रहा है।

पोकरण परमाणु परीक्षण के बाद जब भारत विश्व में अलग-थलग पड़ गया था, तब फ्रांस ने ही उसका साथ दिया था। भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वाले देशों की श्रेणी में फ्रांस तेजी से आगे बढ़ता देखा गया है। उसने कई महत्वपूर्ण उपक्रम यहां लगाए। दोनों के बीच करीब बारह अरब डॉलर से अधिक का वार्षिक कारोबार होता है। फ्रांस पहला देश है जिसके साथ मिलकर भारत ने अंतरराष्टÑीय सौर गठबंधन की शुरुआत की थी। दोनों देशों का जोर नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में साथ काम करने का भी है। सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में रिश्ते लगातार मजबूत हुए हैं। ऐसे समय में जब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का प्रभुत्व बढ़ रहा है और यह दोनों देशों के लिए चिंता का विषय है। भारत और फ्रांस ने दो वर्ष पहले हिंद-प्रशांत त्रिपक्षीय विकास सहयोग कोष की स्थापना की। इसका उद्देष्य संयुक्त अरब अमीरात के साथ मिलकर अफ्रीका के पूर्वी तट से सुदूर प्रशांत तक समुद्री क्षेत्र में जागरूकता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इससे क्षेत्रीय संतुलन कायम करने में काफी मदद मिलेगी। ऐसे दौर में जब रूस-यूक्रेन, इजराइल-हमास संघर्ष चल रहा है और इसके चलते विश्व की आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हुई है। दुनिया के तमाम देश मंदी की मार झेल रहे हैं। तब नए वैश्विक समीकरण के लिए शांति और सहयोग की दिशा में इन दोनों देशों की दोस्ती से काफी उम्मीद बनी हुई है।        

-महेश चन्द्र शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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