जानें राज काज में क्या है खास
चर्चा में धरती के भगवान
सूबे में होली पर लोगों ने तरह-तरह के रंगों का प्रयोग किया।
रंगों की राजनीति के बहाने :
सूबे में होली पर लोगों ने तरह-तरह के रंगों का प्रयोग किया। किसी ने गुलाल-अबीर लगाई, तो किसी ने पक्का रंग, लेकिन एक-दूसरे को रंगने में कोई कमी नहीं छोड़ी। सियासत का चेहरा और मोहरा बने इन रंगों से कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा। राजनीति के रंगरेजों ने भगवा, नीला, हरा, पीला, गुलाबी और लाल रंगों के बहाने एक-दूसरे पर भड़ास निकालने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। सबसे ज्यादा भड़ास हाथ वाले भाई लोगों ने निकाली। उन्होंने न तो रात देखी और नहीं दिन। एक दशक से रंग और रंगों की राजनीति में माहिर भगवा वाले भाई लोगों ने भी रंगों की आड़ में जो कुछ मैसेज देना था, दिल खोलकर दिया। अटारी वाले भाई साहब ने तो रंगों की आड़ में जो मैसेज दिया, उसको समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।
गले पड़े नेताजी :
बड़ी चौपड़ पर पान की दुकान करने वाले भाई साहब के ग्रह नक्षत्र इन दिनों ठीक नहीं हैं। सो आफत भी बिन बुलाए गले पड़ रही है। अब देखो न शुक्रवार की सुबह कुछ लोगों के साथ नेताजी के घर जा धमके। भाई साहब को आस थी कि चुनावों में वोट के बदले वोटर्स को बोतल का स्वाद चखाने वाले नेताजी अपने वोटर्स को होली का प्रसाद बांटेंगे। लेकिन नेताजी के तेवर देखकर उनके पैरों तले की जमीन खिसक गई। भाई साहब की हालत तो उस समय पतली हो गई, जब चुनावों में धर्म भाई बनाने वाले नेताजी ने पहचानने तक से ना में गर्दन हिला दी।
चर्चा में धरती के भगवान :
आज हम बात करेंगे, धरती के भगवानों की। वो भगवान, जिनके गिरेबान पर हर कोई हाथ डालते समय न आगा देखता है और नहीं पीछा। उनके सफेद कोट पर काला दाग लगाने में खादी वाले भी कोई कसर नहीं छोड़ते। छुटभैया नेता भी इमरजेंसी में पहुंचते ही अपने आका को फोन मिलाकर जबरदस्ती डॉक्टर साहब के कान के लगा देते हैं। कभी-कभी न्याय के तराजू वाले भी तोलने में चूक कर बैठते हैं, लेकिन कोरोना के खौफ के बाद राज और उसका काज करने वालों को पता लग गया कि वास्तव में डॉक्टर भगवान का रूप होता है। तभी तो खादी वाले भाई लोग भी सात सौ दिन से भगवान से भी ज्यादा गुणगान कर रहे हैं।
एक जुमला यह भी :
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि काले रंग की थार कारों को लेकर है। जुमले की चर्चा भी कमिश्नरेट से लेकर पीएचक्यू तक है। जुमला है कि लहराती काले रंग की थार को देख खाकी वाले भाई लोग भी पीछे हटने में ही अपनी भलाई समझते हैं। पता नहीं थार में किस साहबजादे से सामना हो जाए, जो फीता उतरवाने से कम धमकी नहीं देते हैं।
एल. एल. शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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