जानें राज काज में क्या है खास
शनि का फेर
करोड़ों का टेंडर हो और उसकी चर्चा नहीं हो, यह मुश्किल ही नहीं, असंभव भी है।
चर्चा में करोड़ों का टेंडर :
करोड़ों का टेंडर हो और उसकी चर्चा नहीं हो, यह मुश्किल ही नहीं, असंभव भी है। अब देखो न, लोगों की सेहत से जुड़े महकमें में पिछले दिनों 163 करोड़ का टेंडर तो हो गया, लेकिन चर्चा में आए बिना नहीं रहा। चर्चा करने वाले और कोई नहीं बल्कि नौकरशाही से जुड़े लोग ही हैं। चर्चा इसलिए है कि एक-दूसरे को निपटाने में लगी छोटी-बड़ी मेम साहबों के बीच बनी दूरियों की वजह से एक छोटे साहब को खमियाजा जो भुगतना पड़ गया। टेंडर को लेकर जांच तो बैठ गई, लेकिन टेंडर के पीछे के कारणों को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।
नन फाउंड स्यूटेबल :
पिछले दिनों सूबे में काले कोट वाले साहब लोगों के प्रमोशन को लेकर हुई एग्जाम तो ज्यादा चर्चा में नहीं आई, लेकिन उसका रिजल्ट लोगों की जुबान पर जरूर आ गया। राज का काज करने वाले भी इस रिजल्ट को लेकर लंच केबिनों में चर्चा किए बिना नहीं रहते। चर्चा है कि प्रमोशन की ईच्छा रखने वाले 99 साहब लोगों ने भाग्य आजमाया और एग्जाम दिया, लेकिन रिजल्ट से सबके मंसूबों पर पानी फिर गया। एग्जाम लेने वाली एजेंसी ने एक को भी प्रमोशन के लायक नहीं समझा, सो नन फाउंड स्यूटेबल का रिजल्ट जारी करने में ही अपनी भलाई समझी।
शनि का फेर :
सूबे में इन दिनों राज के कई रत्न पंडितों के चक्कर लगा रहे हंै। कईयों ने तो हवन भी करा दिए। पूरब में रहने वाले रत्न ने तो सवामणि तक कर दी। तीन-चार रत्नों ने तो पसीने बहाकर गोवर्धनजी की परिक्रमा तक लगा दी। कई रत्न दुबले हो गए और उनकी दिन का चैन और रातों की नींद उड़ गई। उनको लेकर ब्यूरोक्रेसी भी अपने हिसाब से गणित लगा रही है। सूंघासांघी की तो खुलासा हुआ कि यह सब किया धरा काले रंग के मोट पेट वाले पंडितजी का है, जिसका पगफेरा मंत्रालय भवन से लेकर सिविल लाइंस में ज्यादा ही है। पंडितजी ने कई रत्नों को यह कहकर चमका दिया कि जेठ के महीने में शनि अपना असर दिखाएगा, जो फायदा कम नुकसान ज्यादा देगा। कुर्सी के खतरे के चांस कुछ ज्यादा हैं। पंडित ने शनि से बचने के उपाय भी बताए, तो बेचारे राज के रत्न दिन-रात देवरे धोकते फिर रहे हैं।
एक जुमला यह भी :
सूबे की ब्यूरोक्रेसी में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि एक बंगले को लेकर है। बंगला भी पिंकसिटी में गांधी जी के नाम पर बसे नगर में बने ब्यूरोक्रेट्स के आवासीय ठिकानों पर है, जो सबसे न्यारा है। इसमें रहने वाले साहब और मेम साहब दो बड़े विभागों को संभालते हैं। बंगले की चमक-दमक को देखकर पड़ोस में रहने वाले दूसरे साहब लोगों का जी जले बिना नहीं रहता। जुमला है कि आसपास रहने वाले सुपर टाइम स्केल वाले साहब लोग लंच और डिनर के वक्त भी इस बंगले की चर्चा किए बिना नहीं रहते। अब उनकी यह समझ में नहीं आ रहा कि भवन बनाने वाले महकमे के कारिन्दों की इसी बंगले की तरफ नजरें इनायत के पीछे का राज क्या है, वरना कायदे कानूनों की आड़ में उनके बंगलों में तो रंग रोगन हुए भी जमाना हो गया।
-एल. एल. शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)।
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