आओ पर्यावरण हितैषी और सुरक्षित दीपावली मनाएं

आओ पर्यावरण हितैषी और सुरक्षित दीपावली मनाएं

हर साल दीपावली पर करोड़ों रुपयों के पटाखों का उपयोग होता है। यह सिलसिला दशहरे से शुरू होकर दीपावली के बाद भी कई दिन तक चलता रहता है। कुछ लोग इसे फिजूलखर्ची मानते हैं तो कुछ उसे परम्परा से जोड़कर देखते हैं।

दिपावली का यह त्योहार कार्तिक माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। अमावस्या की अंधेरी रात जगमग असंख्य दीपों से जगमगाने लगती है। भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, इस खुशी में अयोध्यावासियों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। त्योहारों की ये खुशियां और उमंग तभी बरकरार रह सकती हैं, जब हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, पटाखों और अन्य ज्वलनशील चीजों का इस्तेमाल करने से प्रदूषण से जूझ रहा पर्यावरण और ज्यादा प्रदूषित हो जाता है। हमें पर्यावरण फ्रैंडली दिवाली मनाने की कोशिश करनी चाहिए। दिवाली मनाना हमारी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है, लेकिन इसके नाम पर पर्यावरण को नुकसान नहीं होना चाहिए। आपसी प्रेम और सौहार्द कायम रखकर ये दीप पर्व मनाया जाना चाहिए। प्रदूषण रहित, शांति और खुशी से त्योहार मनाने के साथ ही पर्यावरण फ्रैंडली होकर दिवाली मनाने में ही सबका हित है।कुछ लोग दीवाली पर जलाए जाने वाले दियों की भूमिका को दूसरे नजरिए से देखते हैं। कई मान्यताएं हैं। घरों में तीन से चार दिन तक, अधिक से अधिक दीये जलाए जाते हैं। मान्यताएं तथा लोक गाथाएं अनेक हो सकती हैं पर यह सच है कि हर साल दीपों का त्योहार पूरी श्रद्धा तथा धूमधाम से मनाया जाता है।

मानवीय प्रवृत्ति हर दिन कुछ नया और बेहतर करने की होती है, इसी नजर से देखकर दीपावली उत्सव को भव्यता से जोड़ा गया। इस क्रम में सबसे पहले दीपों की संख्या बढ़ी होगी।  जब बारूद की खोज हुई तो मानव ने दीपोत्सव में आतिशबाजी औरÞ पटाखों को जोड़ा। रसायन शास्त्र ने आतिशबाजी औरÞ पटाखों में मनभावन रंग भरे और उन्हें अलग-अलग आवाजें दीं। इसी तरह पटाखे बनना शुरू  हुए और उनमें विविधता आई। इसी विविधता से आकर्षण पैदा हुआ और पटाखों का उपयोग, समृद्धि दर्शाने का जरिया बन गया। सामाजिक ट्रेंड्स ने पटाखों को विवाह समारोहों और ख़ुशियों के इजहार का प्रभावशाली जरिया बना दिया है। अब चर्चा कर लेते हैं फायदे और नुकसान की।

हर साल दीपावली पर करोड़ों रुपयों के पटाखों का उपयोग होता है। यह सिलसिला दशहरे से शुरू होकर दीपावली के बाद भी कई दिन तक चलता रहता है। कुछ लोग इसे फिजूलखर्ची मानते हैं तो कुछ उसे परम्परा से जोड़कर देखते हैं। पटाखे शहरी, औद्योगिक और ग्रामीण इलाकों की हवा में तांबा, कैलशियम, गंधक, एल्युमीनियम और बेरियम प्रदूषण फैलाते हैं। इन धातुओं के अंश कोहरे के साथ मिलकर अनेक दिनों तक हवा में बने रहते हैं। उनके हवा में मौजूद रहने के कारण प्रदूषण का स्तर कुछ समय के लिए काफी बढ़ जाता है। देश के अनेक भागों में वायु प्रदूषण सुरक्षित सीमा से अधिक है। ऐसे में पटाखों से होने वाला प्रदूषण जो भले ही अस्थायी प्रकृति का होता है, फिर भी पर्यावरण को और ज्यादा प्रदूषित कर देता है। पटाखों के चलाने से स्थानीय मौसम प्रभावित होता है तथा कई बीमारियों की सम्भावना बढ़ती है। वातावरण में चारों ओर इतना धुंआ जाता है कि सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। अस्थमा के रोगियों, बच्चों और बुजुर्गों को, बीमार रोगियों को इससे बहुत तकलीफ होती है लेकिन अपनी ही मस्ती में मस्त आज का आदमी इतना संवेदनहीन हो गया है कि उसे अपनी खुशी के सिवाय कुछ और महसूस ही नहीं होता। श्वसुधैव कुटुम्बकम की हमारी भावना दिन- प्रतिदिन कम होती जा रही है। हवा के प्रदूषण के अलावा, पटाखों से ध्वनि प्रदूषण होता है। कई बार शोर का स्तर सुरक्षित सीमा को पार कर जाता है। यह शोर कई लोगों तथा नवजात बच्चों की नींद उड़ा देता है। ध्वनि प्रदूषण पशु-पक्षियों तथा जानवरों के लिए भी अच्छा नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने सुरक्षित सीमा 125 डेसीबल से अधिक शोर करने वाले पटाखों के जलाने पर रोक लगाई है। हम सब जानते हैं कि मनुष्य ही इस संसार का सबसे विवेकवान प्राणी है इस नजर से संसार में पाए जाने वाले समस्त जीवों की रक्षा का दायित्व भी उसी का है। मगर अफसोस इस बात का है कि ज्यों-ज्यों मानव वैज्ञानिक प्रगति कर रहा है और विकास के सीढ़ियां चढ़ रहा है, त्यों-त्यों उसकी पर्यावरण चेतना भी कम होती जा रही है।

दिवाली पर जलाए जाने वाले पटाखों के प्रतिकूल प्रभावों के साथ-साथ दीपों के त्योहार के महत्व को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने हरित दिवाली-स्वस्थ दिवाली कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2017-18 में की थी। उस दौरान बड़ी संख्या में स्कूली बच्चों, इको-क्लब से जुड़े बच्चों ने इस अभियान में भाग लिया था और कम से कम पटाखे फोड़ने की शपथ ली थी। आइए इस बार हम एक संकल्प लें कि हम सब सादगीपूर्ण और प्रदूषण मुक्त दिवाली मनाएंगे और एक दीया प्रकृति के नाम पर जलाएंगे। प्रकृति और हमारे आस-पास का वातावरण  स्वच्छ रहेगा, तभी हम और आप तथा सम्पूर्ण मानव जाति सुरक्षित रहेगी। भारत का संविधान बताता है कि स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराना केवल राज्यों की ही जिम्मेदारी नहीं है अपितु वह प्रत्येक नागरिक का दायित्व भी है। आर्टिकल 48 अ और आर्टिकल 51 अ (जी) तथा आर्टिकल 21 की व्याख्या से उपर्युक्त तथ्य उजागर होते हैं।

-प्रत्यूष शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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