महाकुंभ का संयोग और पुष्य नक्षत्र का योग
मकर संक्रांति का त्योहार आज देश में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है
मकर संक्रान्ति के अवसर पर आन्ध्र प्रदेश और तेलंगण में विशेष भोजनम् का आयोजन किया जाता है।
पतंगबाजी का एक खास मामला ये जरूर है इसने कौमी त्योहार बना दिया है। जी हां पतंगबाजी मकर संक्रांति के दिन हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई सभी सम्प्रदायों में की जाती है। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। मकर संक्रांति का त्योहार आज देश में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। इस बार मकर संक्रांति पर पुष्य नक्षत्र का भी शानदार संयोग आ रहा है। ऐसे में धर्म, दान और पूजा पाठ का विशेष फल मिलने वाला है। मकर संक्रांति भारत में धर्म आस्था का त्योहार है। इस दिन तीर्थ स्थलों पर स्रान करने का भी प्रावधान है और दान पुण्य का भी महत्व है। पतंग का मकर संक्रांति पर कोई उल्लेख नहीं है ये तो कालान्तर में आमोद प्रमोद के हिसाब से इसमें जुड़ गई है। दरअसल मकर संक्रांति पुण्य कमाने का त्योहार है न की पतंगबाजी का है। हालांकि पिछले कई दशकों से युवा पीढ़ी इसे पतंगबाजी का ही त्योहार ही मानती है। पतंगबाजी का एक खास मामला ये जरूर है इसने कौमी त्योहार बना दिया है। जी हां पतंगबाजी मकर संक्रांति के दिन हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई सभी सम्प्रदायों में की जाती है। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। पुष्य के साथ आने वाली मकर संक्रांति पर तीन विशेष उपाय करने चाहिए। थोड़ी सी केसर युक्त चावलों की खीर बनाइए और भगवान लक्ष्मीनारायण जी के मंदिर में उसका भोग लगाकर स्वयं भी उस प्रसादी को ग्रहण करें और उसे वितरित भी करें। इसी दिन थोड़ा तिल और गुड़ एक डिस्पोजल कटोरी में रखकर भगवान शिव के मंदिर में उनके चरणों में अर्पित कर आएं और उनसे अपने सभी कष्टों के निवारण की प्रार्थना कर आएं। तीसरा और महत्वपूर्ण उपाय ये है कि इस दिन एक चांदी का सिक्का खरीदें और थोड़ से चावल खरीदें तथा ये दोनों चीजें एक सफेद कपड़े में बांधकर इशान कोण या अपनी तिजोरी में रख दें और फिर इसका फायदा देखें। भारत के साथ ही नेपाल में भी अलग-अलग नाम व भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ मकर संक्रांति का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाए रखने का आशीर्वाद मांगते हैं। इसलिए मकर संक्रांति के त्योहार को फसलों एवं किसानों के त्योहार के नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर आन्ध्र प्रदेश और तेलंगण में विशेष भोजनम् का आयोजन किया जाता है।
जम्मू में यह पर्व उत्तरैन और माघी संगरांद के नाम से विख्यात है। उधमपुर की देविका नदी के तट पर हीरानगर के धगवाल में और जम्मू के अन्य पवित्र स्थलों पर जैसे कि पुरमण्डल और उत्तरबैह्नी पर इस दिन मेले लगते हैं। प्रयागराज में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी से ही प्रयागराज में हर साल माघ मेले की शुरूआत होती है। 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरूआत होती है। माघ मेले का पहला स्रान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आखिरी स्रान तक चलता है। बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। इस दिन गंगा स्रान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है। इसी प्रकार बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्व है। महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है। इस दिन पूरे बिहारवासी दिन में दही चुरा खाकर और रात के समय उरद दाल और चावल की खिचड़ी बनाकर यह पर्व को मनाते हैं। बंगाल में इस पर्व पर स्रान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।
-रोशनलाल शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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