'राजकाज'

जानें राज-काज में क्या है खास

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कॉन्फिडेंस वर्सेज ओवर कॉन्फिडेंस
सूबे में पिछले ट्यूज डे से हर गली और चौराहों पर कॉन्फिडेंस और ओवर कॉन्फिडेंस को लेकर चर्चा जोरों पर है। इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने के साथ ही सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में स्थित भगवा वाला का दफ्तर भी इससे अछूता नहीं है। चर्चा हो भी क्यों ना, मामला ही कुछ ऐसा है। अब देखो ना अपर हाउस की चार सीटों के लिए होने वाली जंग में हाथ वाले भाई लोग तीन सीटों पर जीत के लिए कॉन्फिडेंस में है, लेकिन प्रमोशन के फेर में फंसे भगवा वाले भाई लोग इनसे भी एक कदम आगे बढ़कर दो सीटों के लिए ओवर कॉन्फिडेंस में हैं। वैसे खुद सलाह देते फिरते हैं कि कुत्ता-बिल्ली तक पाल लें लेकिन गलतफहमी कतई नहीं पालें।


नहीं आना भी बना अफसाना
किसी का नहीं आना भी चर्चा भी चर्चा बन जाती है। अब देखो ना, सूबे में मंगल को किसानों के कल्याण के लिए आयोजित कार्यक्रम में मोदी सरकार के रत्न को खास मेहमान के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज करानी थी। पहले यह जेएलएन मार्ग बने राज्य सरकार के भवन में होना था, लेकिन सोच समझ कर खास निर्देश के साथ इसका स्थान दुर्गापुरा कर दिया गया। उनके स्वागत-सत्कार के लिए जोरदार तैयारियां भी की गई, जो धरी रह गई। वे आए तो किसी और कारण से नहीं, लेकिन राज का काज करने वालों में चर्चा है कि रास्ते में जोधपुर वाले अशोक जी भाईसाहब के लगे होर्डिंग्स और बैनर्स की सूचना के बाद भाईसाहब का मूड खराब होना लाजमी था।  उनका नहीं आना भी भगवा वाले भाई लोगों में भी अफसाना बना हुआ है। अब उनको कौन समझाए कि भाईसाहब ऐसे मौकों पर अपनी जादूगरी दिखाए बिना नहीं रहते हैं, तभी तो हर सीट पर अपनी सरकार की खूबियों की बुकलेट्स रखवा दी।


नखरे फूफाजी के
अगर किसी ब्याह को सही सलामत करना है, तो फूफाजी के नखरों का पूरा ध्यान रखना पड़ता है, थोड़ी सी भी चूक हुई, तो वे अपना मुंह सुजाए बिना नहीं रहते। फूफाजी के चेहरे को हंसता खिलता रखना भी एक कला से कम नहीं है। कई फूफाजी कुछ ज्यादा ही नखराले होते हैं, उनसे बिना पूछे सब्जी में नमक भी डाल दे, तो उनका पारा ऊपर-नीचे हुए बिना नहीं रहता। कइयों को तो एक फूफा ही भारी पड़ जाता है, यहां तो राज में डिफरेंस नेचर के 26 फूफा जी हैं। इनमें छह तो बुआजी और 13 काका-बाबाओं के दामाद हैं, सात फूफाजियों का ताल्लुक धर्म के मामाओं से है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि नखराले फूफाजियों के चक्कर में खुद के जंवाइयों तक की पूछ नहीं हो रही, बेचारे मनमसोस कर खिलता हुआ चेहरा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।


बेचारे हरकारे
इस बार जो दशा हरकारों की बिगड़ी है, वह किसी सपने से भी कम नहीं है। उन्हें चारों तरफ से लताड़ के सिवाय कुछ भी नहीं मिल रहा। बेचारों के आंसू पौंछने वाले तक नहीं मिल रहे है। जिनके सहारे कॉलर ऊंची कर मार्केट में घूमते हैं, वो भी बगलें झांकने में ही अपनी भलाई समझते हैं। अब देखो ना, साढ़े तीन साल से रात दिन राज के गीत गाने के बाद भी बताशों की जगह दुत्कार ही पल्ले पड़ती है। राज का काज करने वाले भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर माजरा क्या है। पहले चौकड़ी की सलाह से राज के ऑफिस और घर के चारों तरफ लक्ष्मण रेखा खींची गई। और अब प्रेम से बुलावा देने के बाद दुत्कार दिया जाता है। बड़ी कुर्सी को कौन सलाह दे कि हरकारों और राज का संबंध तो जन्मो-जन्मो से है। अब राज को दोष भी तो नहीं दिया जा सकता, चूंकि उनके सलाहकारों को तो अपने कामों से ही फुर्सत नहीं है। सचिवालय में खुसर फुसर है कि राज के कानों तक सच पहुंचे, तो कई चापलूसों का पत्ता साफ हो। लेकिन खांटी कहने वाले भी तो कम नहीं हैं, वो चौकड़ी से भी दो कदम आगे हैं। जो कुछ हो रहा है, उसे देख वे मंद-मंद मुस्करा रहे हैं। उनकी छठी इन्द्री का संकेत है कि थोड़ा ठण्डी करके खाओ, वक्त एक सा नहीं होता।
एल.एल. शर्मा, पत्रकार

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