क्यों घट रही है रोग प्रतिरोधक क्षमता
महामारी ने समाज के सभी क्षेत्रों में कमजोरियों को उजागर किया
शास्त्रोक्त सत्य है-पहला सुख निरोगी काया और दूसरा हो घर में माया।
शास्त्रोक्त सत्य है-पहला सुख निरोगी काया और दूसरा हो घर में माया। यह बात अलग है कि कलियुग में भौतिकवाद से ग्रस्त मानव धन संग्रह के मायाजाल उर्फ मकड़जाल में इस कदर उलझ गया है कि शास्त्रों में उल्लेखित उसका प्रथम सुख यानि निरोगी काया बहुत पीछे छूट गया है। घर में माया होने के दूसरे सुख को पहले सुख की तुलना में बहुत अधिक तबज्जो देने का ही दुष्परिणाम है कि पृथ्वी ग्रह पर विचरण करने वाले प्राणियों में सबसे कम रोग प्रतिरोधक क्षमता उन मनुष्यों में ही पायी जाती है, जिन्हें विवेकशील और बुद्धिमान माना जाता रहा है। जब हम अन्य प्राणियों से अपने स्वास्थ्य की तुलना करते हैं, तो हमें हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता के सतत् क्षरण को लेकर हीनभावना महसूस होने लगती है। यह बात है कि हमारा दम्भ हमें सच को स्वीकारने की अनुमति नहीं देता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जबसे हमने प्रकृति के साथ जीना बंद किया है, तभी से हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता में ह्रास देख रहे हैं। यदि योगी और तपस्वियों को अलग रखकर स्वास्थ्य के बारे में चिंतन करें, तो पता चलेगा कि माया के जंजाल में बुरी तरह उलझे हम मानव पृथ्वी ग्रह के अन्य प्राणियों की तुलना में किस कदर पिछड़ चुके हैं। आज के परिप्रेक्ष्य में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि पशु-पक्षी हमसे यानि मनुष्यों से बहुत बेहतर जीवन जी रहे हैं। पिछले कुछ सालों में हम सभी का झुकाव स्वस्थ जीवन की तरफ हुआ है। खासतौर पर कोरोना वायरस महामारी ने हमारा फोकस स्वास्थ्य की तरफ कर दिया है।
अब हम सभी इस बात पर ध्यान देते हैं कि क्या खा रहे हैं, ताकि बीमारियों से बचे रहें। हालांकि, इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी तरफ से स्वस्थ जीवन और इससे जुड़ी दिक्कतों से कैसे निपटना है, इसके बारे में जागरुकता फैलाता रहा है। संगठन ने हर साल 7 अप्रैल के दिन को विश्व स्वास्थ्य दिवस के तौर पर मनाना शुरू कर दिया। विश्व स्वास्थ्य दिवस की संकल्पना पहली बार 1948 में पहली स्वास्थ्य सभा में की गई थी और इसे वर्ष 1950 से मनाना शुरू किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 1950 से हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। विश्व स्वास्थ्य दिवस डब्ल्यूएचओ की स्थापना को चिह्नित करने के लिए आयोजित किया जाता है। साथ ही इसे संगठन द्वारा हर साल वैश्विक स्वास्थ्य के लिए प्रमुख महत्व के विषय पर दुनिया भर में ध्यान आकर्षित करने के अवसर के रूप में देखा जाता है। सभी के लिए एक बेहतर, स्वस्थ दुनिया का निर्माण, जो जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों के लिए उनकी उम्र, जाति, धर्म और सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना अच्छे स्वास्थ्य को हासिल करने पर केंद्रित है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया भर में हर साल 1.3 करोड़ से अधिक मौतें पर्यावरणीय कारणों से होती हैं। इसमें जलवायु संकट शामिल है जो मानवता के सामने सबसे बड़ा स्वास्थ्य खतरा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जलवायु संकट भी एक स्वास्थ्य संकट माना है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि हमारे राजनीतिक, सामाजिक और व्यावसायिक निर्णय जलवायु और स्वास्थ्य संकट को बढ़ा रहे हैं। 90 फीसदी से अधिक लोग जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाली अस्वास्थ्यकर हवा में सांस लेते हैं। एक गर्म होती दुनिया देख रही है कि मच्छर पहले से कहीं ज्यादा तेजी से बीमारियां फैला रहे हैं। चरम मौसम की घटनाएं, भूमि क्षरण और पानी की कमी लोगों को विस्थापित कर रही है और उनके स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। प्रदूषण और प्लास्टिक हमारे सबसे गहरे महासागरों, सबसे ऊंचे पहाड़ों के तल पर पाए जा रहे हैं। यहां तक कि प्लास्टिक ने हमारी खाद्य श्रृंखला में अपना रास्ता बना लिया है। अत्यधिक प्रसंस्कृत, अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थों का उत्पादन करने वाली प्रणालियां मोटापे के खतरों को बढ़ा रही हैं तो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक तिहाई पैदा करते हुए कैंसर और हृदय रोग को बढ़ा रहे हैं। जबकि कोविड-19 महामारी ने हमें विज्ञान के माध्यम से उपचार करने की शक्ति दिखाई, इसने हमारी दुनिया में असमानताओं को भी उजागर किया।
महामारी ने समाज के सभी क्षेत्रों में कमजोरियों को उजागर किया है और पारिस्थितिकी सीमाओं को तोड़े बिना अभी और आने वाली पीढ़ियों के लिए समान स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध स्थायी कल्याणकारी समाज बनाने की जरूरत को उजागर किया है। इस वर्ष 2025, विश्व स्वास्थ्य दिवस का विषय और थीम है-स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य। यह विषय माताओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य और जीवन को बढ़ाने पर केंद्रित है, जिसका लक्ष्य टाले जा सकने वाली मातृ और शिशु मृत्यु के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। अभियान महिलाओं और शिशुओं दोनों के लिए गर्भावस्था और प्रसवोत्तर देखभाल के दौरान उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल के महत्व पर जोर देगा। भारत की संस्कृति में सबको सौ वर्ष के जीवन की शुभकामनाएं दी जाती हैं। स्वस्थ रहने के लिए दुनिया में भी योग और आयुर्वेद के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है। इसके साथ ही आयुष इंडस्ट्री का भी लगातार विस्तार हो रहा है। हेल्थ सेक्टर में भारत में लगातार नए स्टार्टअप भी जन्म ले रहे हैं। हेल्थ बिल्कुल वेल्थ के जैसे है, जब तक हम उसे खो नहीं देते, हमें उसकी सही कीमत समझ नहीं आती।
-प्रकाश चन्द्र शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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