नियम ताक पर : आबादी में संचालित हो रहा ईंट भट्टा, श्वांस संबंधी गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे लोग
धुएं के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा विपरीत प्रभाव
कस्बे के बीचों-बीच चल रहे ईंट भट्टे से लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
छीपाबड़ौद। कस्बे के बीचों-बीच चल रहे ईंट भट्टे से लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। सरकारी पुलिया के पास स्थित इस भट्टे के कारण लोगों को श्वांस संबंधी गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। नगर वासियों ने बताया कि रात के समय भट्टे से उठते धुएं के कारण लोगों की नींद व स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा हे। भट्टे के आसपास की कॉलोनियों में बच्चों और बुजुर्गों को इसका अधिक खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। लोगों ने इसको यहां से हटाने के लिए प्रशासन से कई बार गुहार लगाई। कई बार प्रशासन को लिखित में शिकायतें दीं। लेकिन प्रशासन ने न तो इसकी जांच की और ना ही इसको यहां से हटाने के लिए कोई कार्यवाही की है। रात के समय धुएं के कारण सड़कों पर धुंध सी छाई रहती है। जिससे लोगों को कुछ भी नजर नहीं आता।
ये है समाधान की राह
नगर वासियों के अनुसार छीपाबड़ौद जैसे कस्बों में आबादी के बीच ईंट भट्टों का संचालन न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ भी है। उन्होंने मांग की है कि प्रशासन स्थाई समाधान के लिए इस दिशा में ठोस कदम उठाए। साथ ही कस्बे की सीमा से कम से कम 2 किलोमीटर दूर एक औद्योगिक जोन निर्धारित किया जाए। इस क्षेत्र में ही ईंट भट्टों का संचालन वैध माना जाए। सभी भट्टों को जिगजैग तकनीक के अनुसार अनिवार्य रूप से संचालित किया जाए। जिससे प्रदूषण कम हो। नए क्षेत्र में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी में ही संचालन हो। ताकि आबादी क्षेत्र को धुएं से राहत मिले। इससे बच्चों, बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों की सेहत पर मंडराता खतरा कम होगा। कानून का पालन सुनिश्चित होगा।
यह कहते हैं नियम
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत किसी भी औद्योगिक इकाई को संचालन से पहले पर्यावरण स्वीकृति लेनी होती है। ईंट भट्टों को प्रदूषण नियंत्रण मानकों का पालन करना आवश्यक होता है। वायु प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1981 भट्टे से निकलने वाला धुआं अगर वायु गुणवत्ता को प्रभावित करता है, तो यह इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है। संचालक को स्थानीय राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति लेना अनिवार्य है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश कई आदेशों में साफ किया है कि आबादी क्षेत्र में चल रहे ईंट भट्टों को या तो स्थानांतरित किया जाए या बंद किया जाए। हर राज्य की अपनी ईंट भट्टा नीति होती है। राजस्थान सरकार की नीति के अनुसार आबादी क्षेत्र से 300 मीटर की दूरी पर ही भट्टा चलाया जा सकता है। बिना प्रदूषण नियंत्रण उपायों के भट्टा चलाना पूरी तरह अवैध है।
यह सिर्फ प्रदूषण का मामला नहीं है, यह इंसानी जिंदगी के साथ हो रहा खुला खिलवाड़ है। प्रशासन को चाहिए कि सिर्फ जांच तक सीमित न रहे, बल्कि स्थायी समाधान निकाले। जैसे भट्टों को कस्बे से बाहर शिफ्ट करना। हम इस मुद्दे को लेकर उच्च स्तर तक जाएंगे।
- विकास व्यास, सामाजिक कार्यकर्ता
हम हर रात दम घुटने जैसी हालत में जीते हैं। घर में खिड़कियां बंद रखने के बावजूद धुआं घुस आता है। पढ़ाई पर असर पड़ता है और लगातार सिरदर्द व आंखों में जलन रहती है।
- पूजा व्यास, स्थानीय युवती
हमने कई बार शिकायतें दी हैं। पर कोई सुनवाई नहीं हुई।
- अभिषेक गौतम, स्थानीय निवासी
हम पढ़े-लिखे युवा हैं और चाहते हैं कि हमारा कस्बा भी सुरक्षित और स्वच्छ हो। लेकिन हर रोज जो जहरीला धुआं हम अपने फेफड़ों में भर रहे हैं, वो न सिर्फ हमारी सेहत बल्कि हमारे भविष्य के लिए भी खतरा है। प्रशासन को अब सिर्फ देखने की नहीं, कुछ करने की जरूरत है। अगर यही हाल रहा तो हमें विरोध का रास्ता अपनाना पड़ेगा।
- चिन्मय दाधीच, कॉलेज छात्र
हमें इस विषय में शिकायतें प्राप्त हुई हैं। जल्द ही ईंट भट्टे की स्थिति की जांच करवाई जाएगी। यदि यह पाया गया कि भट्टा आबादी क्षेत्र के मानकों का उल्लंघन कर रहा है, तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। जनता की सेहत से कोई समझौता नहीं होगा।
- अभिमन्यु सिंह कुंतल, उप जिला कलक्टर, छीपाबड़ौद
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