"शिक्षा में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए रिसर्च व कौशल विकास को आधार बनाएं हायर एजुकेशन इंस्टिट्यूट" –डॉ. तोमर 

निम्स यूनिवर्सिटी ने गुणवत्ता संवर्धन के लिए कौशल संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ अपनी तीन दिवसीय कार्यशाला का समापन किया

जयपुर। निम्स यूनिवर्सिटी के आई.क्यू.ए.सी सेल ने "उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए गुणवत्ता समर्थन और संवर्धन" विषय पर केंद्रित तीन दिवसीय कार्यशाला का समापन किया। कार्यशाला राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020के इर्द गिर्द होने वाले विकास कार्यों पर उद्देशित थी, जो उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में लगातार सुधार और उसे बनाए रखने के महत्व पर जोर देती है। इसमें देश के अकादमिक नेतृत्व, अकादमिक प्रबंधकों, अकादमिक संकायों और सरकारी नियामक निकायों के स्टाफ सदस्यों के साथ साथ प्रेस शिक्षा सदस्यों ने भी भाग लिया। कार्यशाला का उद्देश्य शिक्षण और सीखने की प्रक्रियाओं को बढ़ाना, पाठ्यक्रम विकसित करना, अनुसंधान एरिया  को बढ़ावा देना, प्रौद्योगिकी और गवर्नेंस को एकीकृत करना और उच्च शिक्षा संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण स्थिरता सुनिश्चित करना था।

कार्यशाला में विभिन्न विषयों को शामिल करते हुए आठ सत्र शामिल थे:
1. शासन की चुनौतियाँ
2. अनुसंधान और नवाचार गतिविधियाँ
3. वित्तीय और प्रबंधन मुद्दे
4. संचार और आईटी
5. शिक्षण और सीखने की रणनीतियाँ
6. गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ
7. छात्र मामले और चुनौतियाँ
8. स्वास्थ्य विज्ञान संस्थानों के लिए अवसर

वर्कशॉप का एजेंडा "एनईपी 2020", "लर्निंग टू अचीव मल्टी-डिसिप्लिनरी पर्सपेक्टिव्स (एलएएमपी)" और "टेक्नोलॉजी एंड सोसाइटी लर्निंग (टीएएसएलई)" जैसे उल्लेखनीय पहलों को लागू करने पर था, जो छात्रों को समस्या-समाधान क्षमताओं को विकसित करने औरक्षेत्रीय विकासात्मक चुनौतियाँ को प्रभावी ढंग सेसशक्त बनानेपर आधारित रहा। 

फाउंडर व चांसलर, निम्स यूनिवर्सिटी प्रो. (डॉ.) बलवीर सिंह तोमर ने आई.क्यू.ए.सी वर्कशॉप के महत्व को दर्शाते हुए कहा कीNAAC मान्यता विश्वविद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की एक पहचान है। यह छात्रों को उन संस्थानों के बारे में जानकारी प्रदान करता है जहां सर्वोत्तम पॉलिसीस लागू की जाती है।उन्होंने कहा की यह निम्स यूनिवर्सिटी के लिए एक नया अध्याय लिखने में मदद करेगी।उन्होंने NAACके  भविष्य" जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार साझा करते हुए गहरी चिंता भी व्यक्त की और कहा कि, हमारे देश में देश प्रतिभाशाली दिमागों की कोई कमी नहीं है, उन्होंने देश भर में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास में भारी कमी की ओर इशारा किया और वैश्विक स्तर पर शीर्ष 100 में किसी भी भारतीय संस्थान या विश्वविद्यालय की अनुपस्थिति पर दुख व्यक्त किया।लेकिन हमे यकीन है की इन पहलों के माध्यम से हम शिक्षा में निरंतर सुधार की दिशा में एक पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए शिक्षकों, प्रशासकों के सामूहिक ज्ञान और विशेषज्ञता का उपयोग कर सकते हैं और भारत को अन्तराष्ट्रीय रैंकिंग में खड़ा कर सकते हैं।

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कार्यशाला का उद्घाटन आई.क्यू.ए.सी कार्यशाला के अध्यक्ष और निम्स विश्वविद्यालय के वीसी प्रो. (डॉ.) संदीप मिश्रा ने किया, जिन्होंने भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली के लिए रोडमैप का अनावरण किया। उन्होंने वर्तमान स्थिति को रेखांकित किया, कमी वाले क्षेत्रों को चिन्हित किया और ध्यान देने की मांग करने वाले महत्वपूर्ण मंचों के बारे में भी बताया। प्रो. मिश्रा ने प्रौद्योगिकी और चिकित्सा में शीर्ष स्तरीय विश्वविद्यालयों की सराहनीय उपस्थिति पर प्रकाश डाला, फिर भी विभिन्न विषयों में क्यूएस रैंकिंग को ऊपर उठाने की अनिवार्यता पर जोर दिया। 

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उन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली के भीतर कौशल और अनुसंधान पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा की यह वो रास्ता है जिसके माध्यम से भारतीय इंस्टिट्यूट अपनी वैश्विक रैंकिंग को ऊपर उठा सकता है। वर्तमान में, वैश्विक अनुसंधान परिदृश्य में भारत का योगदान मात्र 4% है, जो अपर्याप्त है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने सवाल किया कि भारतीय संस्थानों को शिक्षा में वैश्विक उत्कृष्टता प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना क्यों करना पड़ रहा है। उन्होंने इस मामले पर अपना दृष्टिकोण भी साझा किया और कहा कि सभी शैक्षणिक संस्थानों को इस लक्ष्य की दिशा में प्रयास करना चाहिए।

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प्रो. मिश्रा द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान राज्य बैंगलोर के बाद भारत में दूसरे सबसे बड़े उच्च शिक्षा केंद्र के रूप में उभरा है। यह सहयोगात्मक प्रयासों के महत्व और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की बारीकियों को परिष्कृत करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। 
गुजरात में स्तिथ गोविंद गुरु विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर प्रताप सिंह चौहान ने शैक्षिक स्थिरता की अनिवार्यता पर सम्मानित अकादमिक वक्ताओं से कहा कि, नेतृत्व विकास, शीर्ष स्तरीय गुणवत्ता की संस्कृति को बढ़ावा देने, मजबूत निगरानी तंत्र स्थापित करने, एकाउंटेबिलिटीशिक्षा से रोजगार की ओर सहज परिवर्तन के लिए छात्रों को उनकी सीखने की यात्रा के माध्यम से प्रशिक्षण और मार्गदर्शन करना जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर एकजुटता से काम करने के लिए कहा।

उन्होंने NAAC के बदलते असेसमेंट सिस्टम के बारे में भी बताया और बाइनरी मान्यता दृष्टिकोण पर भी प्रकाश डाला, जो वैश्विक मानकों के अनुरूप है, जिसमें एक बाइनरी सिस्टम (मान्यता प्राप्त या गैर मान्यता प्राप्त) औरमैच्योरिटी बेस्ड ग्रेडेड एक्रेडिटेशन(एमsबीजीए) (स्तर 1 से स्तर 5) शामिल है। इस बदलाव का उद्देश्य पिछली सात-बिंदु प्रणाली कोखत्म करके संस्थानों के भीतर शिक्षा और अनुसंधान की गुणवत्ता और स्थिरता को बढ़ाना है। इसके अलावा, विभिन्न मानदंडों के साथ मार्गदर्शन और सहायता के माध्यम से ग्रामीण और दूरदराज/आदिवासी संस्थानों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

मैच्योरिटी बेस्ड ग्रेडेड एक्रेडिटेशन (स्तर 1 से 5) मान्यता प्राप्त संस्थानों को अपने मानकों को लगातार बढ़ाने और वैश्विक उत्कृष्टता की आकांक्षा के लिए प्रोत्साहित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस स्तरीय मान्यता प्रणाली से भारतीय शैक्षणिक प्रतिष्ठानों की गुणवत्ता में पर्याप्त वृद्धि होने की उम्मीद है। स्तर 1-3 जिसमें सुधार के लिए मार्ग की आवश्यकता है और स्तर 4 राष्ट्रीय उत्कृष्टता के लिए है और यदि आप स्तर 5 पर हैं तो इसका मतलब वैश्विक उत्कृष्टता (क्यूएस) है।इस दौरान ग्रीन ऑडिट, अकादमिक ऑडिट और ऊर्जा ऑडिट भी इस चर्चा के विषय रहे ।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 उच्च शिक्षा की गतिशील प्रकृति को रेखांकित करती है, समाज की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए संस्थानों को अपनी शिक्षण और अनुसंधान पद्धतियों में निरंतर विकसित होने की आवश्यकता पर बल देती है। 

सत्र के दौरान, एमिटी विश्वविद्यालय, जयपुर के प्रो वाइस चांसलर और प्रोफेसर ने सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) में उनके कार्यान्वयन पर अंतर्दृष्टि साझा की। उन्होंने कार्बन क्रेडिट के साथ-साथ एसडीजी पर ध्यान केंद्रित करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। शैक्षिक संस्थानों के भीतर सामाजिक जिम्मेदारी की भावना पैदा करने के लिए, विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे जैसे, कार्बन क्रेडिट। कार्बन क्रेडिट एक ऐसी प्रणाली शामिल है जिसमें शैक्षिक प्रतिष्ठान अपने कार्बन पदचिह्न को कम करने या परिसर में पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाने के लिए क्रेडिट अर्जित कर सकते हैं। 

तीन दिवसीय कार्यशाला में प्रमुख शिक्षा और मूल्यांकन के प्रमुख दिग्गज, जिसमें प्रोफेसर अमेरिका सिंह, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी, डॉ. एस. श्रीनिवास, प्रोफेसर, तुमकुर विश्वविद्यालय और पूर्व उप निदेशक, राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद बेंगलुरु, डॉ.रुक्मणि कंदासामी- वीसी, अन्ना विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) - पीटीवी, प्रो. प्रताप सिंह चौहान, कुलपति- गोधरा विश्वविद्यालय, गुजरात, प्रो.जी.के. आसेरी- प्रोवीसी- एमिटी यूनिवर्सिटी, जयपुर, डॉ. राजीव वशिष्ठ- सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा- उच्च शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, डॉ. सुनील शर्मा, प्रो वाईस चांसलर, डॉ. अरविंद अग्रवाल, डॉ. पूजा अग्रवाल- आर्य ग्रुप ऑफ कॉलेज, जयपुर और डॉ. अभय सुभाषराव निर्गुडे- डीन- चिकित्सा संकाय, येनोपाया मेडिकल कॉलेज, मैंगलोर उपस्थित रहे।धन्यवाद प्रस्ताव निम्स यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार, डॉ. संदीप त्रिपाठी द्वारादिया गया जिसमे उन्होंने सभी वक्ताओं का धन्यवाद किया और क्वालिटी सुस्टेनांस को निम्स का नया मंत्र बताया और साथ ही उन्होंने इस पुरे वर्कशॉप के आयोजन डॉ. हेमन्त बारेठ,सचिव, निम्स यूनिवर्सिटी को कार्यक्रम प्रबंधन में विशेष योगदान के लिए सराहना की।

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