पुस्तकालय किसी भी समाज के ज्ञान मंदिर
राष्ट्रीय पुस्तकालय सप्ताह पर विशेष
भारत में राष्ट्रीय पुस्तकालय सप्ताह 14-20 नवंबर को मनाया जाता है। भारतीय राष्ट्रीय पुस्तकालय आंदोलन के प्रणेता आई। वी. रमैय्या द्वारा 1912 में 14 नवंबर को मद्रास में पुस्तकालय गोष्ठी का आयोजन किया गया था। 1968 से 14-20 नवंबर के बीच राष्ट्रीय पुस्तकालय सप्ताह का आयोजन किया जाता है। पुस्तकालय किसी भी समाज के ज्ञान के मंदिर की तरह है। 15वीं शताब्दी में प्रेस मशीन के आविष्कार के साथ पुस्तकालयों की तस्वीर बदली और पुस्तकों, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के प्रकाशन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में इंपीरियल पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना की गई थी। कुछ वर्षों तक यह पुस्तकालय केवल विशिष्ट व्यक्तियों के उपयोग तक ही सीमित था। लेकिन 1930 में इसे सामान्य लोगों के उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई। कोनीमारा पब्लिक लाइब्रेरी चेन्नई में और एशियाटिक सोसाइटी लाइब्रेरी मुंबई में खुली। इन पुस्तकालयों के विकास में अंग्रेजों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन ये पुस्तकालय भारतीय नागरिकों के लिए बहुत उपयोगी नहीं थे, क्योंकि इनमें रखी अधिकांश पुस्तकें विदेशी भाषाओं में थीं। हालांकि पुस्तकालय का उपयोग केवल शिक्षित लोग ही करते थे, खासकर वे लोग जिन्हें विदेशी भाषाओं का ज्ञान था। फिर भी इन पुस्तकालयों का भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान था। उदाहरण के लिए अन्य देशों के शासन और स्वतंत्रता के बारे में पुस्तकों में पढ़कर स्वतंत्र होने की भावना जागृत हुई।
पिछले दिनों राजस्थान के दूरदराज के गांव और ढ़ाणियों में बच्चों के लिए जोधपुर जिले के 30 गांवों में रूम टू रीड और जिला प्रशासन की ओर से चलाए जा रहे अंतरराष्ट्रीय रीडिंग कैंपेन के तहत ऊंट गाड़ी पर पहली मोबाइल लाइब्रेरी शुरू हुई। इसमें करीब 1500 किताबें हैं, जिनमें सबसे ज्यादा स्टोरी और ड्राइंग की हैं। इस लाइब्रेरी में एक स्टोरी टेलर है, जो बच्चों को कहानियां सुनाएगा। लाइब्रेरी जहां जाती है, वहां यदि टीचर नहीं है तो पैरेंट्स को बच्चों को किताब पढ़कर विषय के बारे में समझाना होता है। यदि आसपास कोई टीचर होता है तो पैरेंट्स की जगह वह बच्चों को कहानियां पढ़कर सुनाता है और मतलब समझाता है। यह लाइब्रेरी जहां जाती है, वहां के स्कूल में किताबें रखकर आ जाती है। यदि किसी बच्चे को किताब पढ़ना हो तो स्कूल से इशू करा सकते हैं। विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में अधिक शोध कार्य किया जाता है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे विकसित देशों के पीछे रिसर्च की अहम भूमिका है। नए शोध के परिणामस्वरूप इन देश के निवासियों के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है, साथ ही इस तकनीक के अन्य देशों में स्थानांतरित हो जाने से अन्य देशों को भी लाभ मिल रहा है। इसलिए पुस्तकालय विभिन्न माध्यमों से अपने उपयोगकर्ताओं को नए शोधों के बारे में अद्यतन जानकारी प्रसारित करते रहते हैं।डिजिटल लाइब्रेरी के इस युग में शोधकर्ता न केवल अपने देश के पुस्तकालयों से बल्कि अन्य देशों के पुस्तकालयों से भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। पुस्तकालय अनुसंधान एवं विकास तथा उद्योग व व्यापार के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसी देश का विकास उसके उद्योगों और व्यापार पर निर्भर करता है। उद्योगों के विकास के लिए निरंतर अनुसंधान की आवश्यकता होती है, जैसे-कम लागत, उत्पादित माल का उचित वितरण, उत्पाद गुणवत्तापरक, पर्यावरणीय क्षति से बचाव आदि। इस तरह उद्योग व व्यापार की ज्ञानपरक सूचनाएं देने का कार्य विशिष्ट पुस्तकालय ही करते हैं। अत: विशिष्ट पुस्तकालय किसी विशिष्ट समूह के लिए उनके आवश्यकतानुसार पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाते हैं। जैसे-उद्योग एवं व्यापार, शोध एवं तकनीकी विकास आदि के पुस्तकालय। वैज्ञानिकों को अपने शोध कार्यों में लगे रहने के कारण उनके पास समयाभाव रहता है। अत: नवीन प्रकाशित सूचनाएंउनके आवश्यकतानुसार छांटकर पुस्तकालय ही प्रदान करता है। इस तरह ये पुस्तकालय विषयानुसार सूचनाओं को अलग करके उनको संबद्ध प्रयोगकर्ताओं तक पहुंचाते हैं।वर्तमान में पुस्तकालयों का तेजी से विकास हुआ है। चाहे वह शैक्षणिक संस्थानों में पुस्तकालयों को अनिवार्य बनाने की बात हो या विभिन्न स्तरों पर सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना, जैसे कि जिला स्तर पर, ब्लॉक स्तर पर और ग्राम स्तर पर। जिन राज्यों में पुस्तकालय अधिनियम पारित किया गया है, वहां पुस्तकालयों का तेजी से विकास हो रहा है। सरकार पुस्तकालय शिक्षा पर अधिक जोर दे रही है। विश्वविद्यालय स्तर पर पुस्तकालय एवं सूचना विभाग खोला गया है। दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में पुस्तकालय विज्ञान विभाग भी उपलब्ध है, जहां से पुस्तकालय में कार्यरत कर्मचारी अपनी उच्च शिक्षा जारी रख सकते हैं। आज पुस्तकालय नई सूचना संचार प्रौद्योगिकी को अपनाकर उपयोगकर्ताओं की विभिन्न प्रकृति की जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करते हैं। पुस्तकालय भी आपसी सहयोग के माध्यम से उपयोगकर्ताओं को संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं।भारत के पुस्तकालय विज्ञान को एक अलग विषय के रूप में मान्यता देने में डॉ. एस.आर. रंगनाथन का विशेष योगदान है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अकादमिक पुस्तकालयों के विकास के लिए डॉ. एस.आर. रंगनाथन की अध्यक्षता में एक पुस्तकालय समिति का भी गठन किया। इस समिति के सुझावों ने पुस्तकालयों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद 1964 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा कोठारी आयोग का गठन किया गया।
-देवेन्द्रराज सुथार
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
जिसका सबसे महत्वपूर्ण सुझाव यह था कि प्रत्येक विश्वविद्यालय में एक केंद्रीय पुस्तकालय के साथ-साथ प्रत्येक विभाग के लिए एक विभागीय पुस्तकालय भी होना चाहिए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 1991 में प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में सूचना और पुस्तकालय नेटवर्क की स्थापना की। जिसका उद्देश्य अकादमिक पुस्तकालयों का विकास करना है और पुस्तकालयों के बीच आपसी समन्वय हो ताकि पुस्तकालयों में संचालित होने वाले कार्यों की पुनरावृत्ति न हो, शैक्षणिक पुस्तकालयों के कार्यों में एकरूपता बनी रहे तथा सूचना संचार तकनीक का प्रयोग अधिकतम हो।
प्राचीन काल से लेकर अब तक पुस्तकालयों का उत्तरोत्तर विकास हुआ है। आज पुस्तकालय में संग्रहित पुस्तकें सजावट के लिए नहीं बल्कि समाज के सभी वर्गों के उपयोग के लिए उपलब्ध है। पुस्तकालयों के तीव्र विकास के लिए समाज के सभी वर्गों को आगे आना चाहिएए विशेषकर पुस्तकालय से संबंधित छात्रोंए अध्यापकों व अन्य कर्मचारियों तथा पुस्तकालय संगठन को। आधुनिक पुस्तकालय ज्ञान एवं सूचनाप्रद सामग्री का अधिग्रहण करके उनको इस तरह व्यवस्थित करें ताकि सूचनाओं का अधिकतम उपयोग हो सके। पुस्तकालय न केवल पठनीय सामग्री से भरपूर बल्कि पुस्तकालय भवन भी सुविधा संपन्न होना चाहिए ताकि पाठकों को आकर्षित कर सके। सूचना संचार एवं प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके पुस्तकालयों के सेवाओं को कंप्यूटरों तथा दूरसंचार नेटवर्क के माध्यम से अंतिम उपयोगकर्ता तक सूचना की पहुंच हो सकेए यही पुस्तकालयों की आधुनिक अवधारणा है। विकसित देशों की तुलना में भारत में पुस्तकालय का विकास धीमा रहा हैए इसके पीछे मुख्य कारण निरक्षरता है। निरक्षरता के कारण यहां के लोगों में पुस्तकालयों के प्रयोग और उपयोग की भावना विकसित नहीं हो सकी। दूसरा मुख्य कारण अनुदान की कमी है। आज भी अधिकांश रा’यों में पुस्तकालय अधिनियम पारित नहीं हुआ हैए इसलिए पुस्तकालयों के लिए अनुदान प्राप्त करने में कठिनाई आती है। जहां पुस्तकालय अधिनियम पारित किया गया हैए वहां पुस्तकालयों की स्थिति बेहतर हैं।
वर्तमान में पुस्तकालयों का तेजी से विकास हुआ है। चाहे वह शैक्षणिक संस्थानों में पुस्तकालयों को अनिवार्य बनाने की बात हो या विभिन्न स्तरों पर सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना, जैसे कि जिला स्तर पर, ब्लॉक स्तर पर और ग्राम स्तर पर। जिन राज्यों में पुस्तकालय अधिनियम पारित किया गया है, वहां पुस्तकालयों का तेजी से विकास हो रहा है।
Comment List