सुर, संघर्ष और संवेदना का संगम, नेशनल लिटरेचर ड्रामा फेस्टिवल के दूसरे दिन साहित्य, समाज और प्रकृति पर मंथन
वरिष्ठ साहित्य प्रेमियों ने सहभागिता की
राजनीति के आपसी संबंधों के साथ-साथ शिक्षा और संस्कृति पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रभाव पर गंभीर विमर्श हुआ, जिसमें सैकड़ों युवा एवं वरिष्ठ साहित्य प्रेमियों ने सहभागिता की।
जयपुर। पिंकसिटी प्रेस क्लब में आयोजित नेशनल लिटरेचर ड्रामा फेस्टिवल के दूसरे दिन शनिवार को साहित्य, संगीत, संघर्ष और सामाजिक सरोकारों का सजीव संगम देखने को मिला। एक ओर युवाओं और महिला लेखिकाओं की सशक्त काव्य प्रस्तुतियां गूंजती रहीं, तो दूसरी ओर फिल्म संगीत पर झूमते श्रोता और जीवन संघर्षों से जूझकर आगे बढ़ने की प्रेरक कहानियां मंच से साझा होती रहीं। मुख्य सभागार में पृथ्वी, पर्यावरण, संस्कृति, साहित्य और राजनीति के आपसी संबंधों के साथ-साथ शिक्षा और संस्कृति पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रभाव पर गंभीर विमर्श हुआ, जिसमें सैकड़ों युवा एवं वरिष्ठ साहित्य प्रेमियों ने सहभागिता की।
कार्यक्रम की शुरुआत अंतरराष्ट्रीय कवयित्री रति सक्सेना की अध्यक्षता में आयोजित काव्यगोष्ठी से हुई, जिसका संचालन शिवानी शर्मा ने किया। इस सत्र में डॉ. कविता, ज्योत्सना, जयश्री शर्मा, डॉ. रेखा गुप्ता सहित 15 कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज और संवेदनाओं को स्वर दिया। दिन का प्रमुख वैचारिक सत्र जीवन संघर्ष और हम रहा, जिसमें महामंडलेश्वर पुष्पा माई ने ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए अपने संघर्ष की प्रेरक गाथा साझा की। उन्होंने बताया कि ट्रांसजेंडर समुदाय को वोट का अधिकार दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष करना पड़ा। विनीता नायर ने थिएटर को मानसिक सशक्तीकरण का माध्यम बताते हुए अपने संघर्षपूर्ण सफर को साझा किया। कैंसर से जंग जीत चुकीं रुचि गोयल ने सकारात्मक सोच और परिवार के सहयोग से जीवन को फिर से संवारने की भावुक कहानी सुनाई।
प्रो. कृष्ण कुमार शर्मा, डॉ. लाइक हुसैन, अमरचंद बिश्नोई और विनोद जोशी ने पृथ्वी संरक्षण और सांस्कृतिक चेतना पर अपने विचार रखे। वक्ताओं ने कहा कि साहित्य और रंगमंच समाज को जागरूक करने का सशक्त माध्यम हैं। शाम को दरीचा-ए-सुखन कार्यक्रम में गजलों की मधुर प्रस्तुतियां हुईं, जबकि ओपन माइक में विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।

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