7 दिन में 4000 बाल वाहनियों की जांच की, 1365 बाल वाहिनी अनफिट मिली
बच्चों की सुरक्षा के लिए की एमवी एक्ट में कार्रवाई
टीमों ने सात दिनों में 4000 बाल बाहनियों की जांच की, जिसमें 1365 बाल वाहिनियों के खिलाफ एमवी एक्ट के खिलाफ कार्रवाई की गई।
जयपुर। स्कूली बच्चों की सुरक्षा को तय करने के लिए यातायात पुलिस को टीमें बनाकर जयपुर कमिश्नरेट क्षेत्र में अनफिट और यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाली बाल वाहिनियों के खिलाफ सख्त अभियान चलाकर कार्रवाई की गई। टीमों ने सात दिनों में 4000 बाल बाहनियों की जांच की, जिसमें 1365 बाल वाहिनियों के खिलाफ एमवी एक्ट के खिलाफ कार्रवाई की गई। पुलिस कमिश्नर बीज जॉर्ज जोसफ ने बताया कि चौमूं क्षेत्र में पिछले दिनों हुए सड़क हादसे के बाद सभी बाल वाहिनियों की जांच को लेकर पांच फरवरी से सात दिवसीय जांच अभियान चलाया गया। एडिशनल कमिश्नर यातायात योगेश दाधीच ने बताया कि सात दिवसीय सघन जांच में चार हजार बाल वाहनियों की जांच की गई, इनमें से कई बाल वाहनियां अनफिट पाई गई। कुछ बाल वाहिनियों के परमिट एक्सपायर हो चुके थे। कई चालकों के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं थे तो कुछ के ड्राइविंग लाइसेंस की अवधि समाप्त हो चुकी थी। कुछ बाल वाहिनियों के ड्राइवर नशे में भी मिले तथा कुछ ने ड्राइवर की तय वर्दी नहीं पहन रखी थी। विभिन्न प्रकार की अनियमितता पाई जाने वाली 1356 बाल वाहिनियों के खिलाफ चालान की कार्रवाई की गई। गंभीर अनियमितता वाली 9 बाल वाहिनियों को जप्त किया गया।
कम से कम 5 साल पुराना वैध ड्राइविंग लाइसेंस जरूरी :
यातायात उपायुक्त शहीन सी ने बताया कि स्कूल बस का रंग सुनहरी पीला होने के साथ बस पर आगे और पीछे ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा होना चाहिए। बस, कैब, ऑटो के पीछे विद्यालय का नाम और फोन नंबर अनिवार्य रूप से अंकित होना चाहिए, ताकि आपात स्थिति में तथा चालक द्वारा लापरवाही करने की दशा में सूचित किया जा सकें। बस के अंदर ड्राइवर का नाम, पता, लाइसेंस नंबर, वाहन स्वामी नाम व मोबाइल नंबर, यातायात पुलिस और परिवहन विभाग हेल्पलाइन नंबर तथा वाहन का पंजीयन क्रमांक कॉन्ट्रास्ट रंग में लिखा हुआ स्पष्ट रुप से प्रदर्शित करना होगा। ड्राइवर के बदलने पर उसका विवरण बदल दिया जाएगा। बस चलाने वाले ड्राइवर के पास कम से कम 5 साल का अनुभव हो और उसके पास कम से कम 5 साल पुराना वैध ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए। बाल वाहिनी में बैठने की क्षमता सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार डेढ़ गुना से अधिक नहीं होनी चाहिए।
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