बंजारों की छतरी, ऐसी पुरातात्विक पहेली जिसका किसी के पास नहीं है जवाब 

एक प्राचीन व्यापारिक मार्ग पर पड़ता है

बंजारों की छतरी, ऐसी पुरातात्विक पहेली जिसका किसी के पास नहीं है जवाब 

लालसोट के बारे में कम ही लोग जानते होंगे, लेकिन यहां शुंग कालीन बौद्ध स्तूप के प्रमाण मिले हैं, जो केवल दो प्राचीन नगरों, भरहुत और सांची से ही मिलते है, जिनका विश्व इतिहास में अनूठा स्थान है।

जयपुर। बंजारों की छतरी। एक ऐसी पहेली है, जिसका किसी के पास जवाब नहीं है। यह भारतीय पुरातत्त्वसर्वेक्षण जयपुर मण्डल के अधीन संरक्षित स्मारक, लालसोट दौसा जिले में स्थित है। प्रदेश का लालसोट एक प्राचीन व्यापारिक मार्ग पर पड़ता है। लालसोट के बारे में कम ही लोग जानते होंगे, लेकिन यहां शुंग कालीन बौद्ध स्तूप के प्रमाण मिले हैं, जो केवल दो प्राचीन नगरों, भरहुत और सांची से ही मिलते है, जिनका विश्व इतिहास में अनूठा स्थान है। यह स्मारक अब तक दयनीय स्थिति में था और पर्यटकों को यहां आने में असुविधा होती थी। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, जयपुर मण्डल अब यहां विकास कार्य कर रहा है, जिससे कि यहां आने वाले पर्यटकों को असुविधा ना हो।

जैसा की विदित है मथुरा प्राचीन काल से भारतीय कला का बहुत केंद्र रहा है। यद्यपि यहां भी शुंग कालीन बौद्ध स्तूप के प्रमाण नहीं मिले हैं, लेकिन मथुरा कला में बने स्तूप की वेदिका के 6 स्तम्भ बंजारों की छतरी (जो कि 300-400 वर्ष पूर्व किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति की स्मृति में बनाई गयी होगी) लालसोट में लगे हुए हैं। यह एक अनसुलझी पहेली है कि ये शुंग कालीन स्तम्भ यहां कैसे और कौन लाया। क्या यह समझा जा सकता है कि यहां भी भरहुत और सांची जैसा विशाल बौद्ध तीर्थ रहा होगा, अगर, हां तो केवल 6 स्तम्भ ही क्यों शेष है। बौद्ध स्तूप के प्रमाण क्यों नहीं मिले। इसका जवाब भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, जयपुर मण्डल के पास भी नहीं है, जो वर्तमान में यहां समतलीकरण एवं सौंदर्यीकरण का कार्य कर रहा है। यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि जिस स्थान पर वर्तमान में छतरी स्थापित है। वहां प्राचीन काल में बौद्ध स्तूप नहीं था। क्या वह लालसोट नगर में कहीं अन्यत्र था या फिर मथुरा या ब्रज क्षेत्र से ही 300-400 वर्ष पूर्व कोई अभिजात्य वर्ग का व्यक्ति इन्हें यहां ले आया। अगर कहीं से ऐसे स्तम्भ या सूचियों की जानकारी मिले, तो यह एक अहम खोज होगी।

 

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