सीएआर-टी सेल थैरेपी : ब्लड कैंसर के इलाज में नई क्रांति साइड इफेक्ट नहीं, कैंसर दोबारा होने की संभावना भी कम
मरीजों को सफल इलाज भी इन प्रणालियों के कॉम्बिनेशन से हो जाता है
ब्लड कैंसर के अधिकांश मरीजों के इलाज के तौर पर प्रथम लाइन ट्रीटमेंट में कीमोथैरेपी और इम्यूनोथैरेपी का प्रयोग किया जाता है।
जयपुर। ब्लड कैंसर के अधिकांश मरीजों के इलाज के तौर पर प्रथम लाइन ट्रीटमेंट में कीमोथैरेपी और इम्यूनोथैरेपी का प्रयोग किया जाता है। मरीजों को सफल इलाज भी इन प्रणालियों के कॉम्बिनेशन से हो जाता है, लेकिन जब कभी प्रथम लाइन ट्रीटमेंट विफल हो जाते हैं या फिर मरीज में कैंसर दोबारा पनपने लगता है, तो इलाज के तौर पर दो ही विकल्प बचते हैं। पहला बोन मेरो ट्रांसप्लांट और दूसरा अत्याधुनिक सीएआर-टी सेल यानी चिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी-सेल थैरेपी। लिम्फोमा और एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक लिम्फोमा जैसे ब्लड कैंसर के मरीजों को अक्सर बोन मेरो ट्रांसप्लांट का सुझाव दिया जाता है, लेकिन मेडिकल क्षेत्र में आई उन्नत तकनीक सीएआर-टी सेल थैरेपी से अब एडवांस्ड स्टेज ब्लड कैंसर का सफल इलाज और भी कारगर तथा सुरक्षित हो गया है।
इस थैरेपी में आधुनिक जीन एडिटिंग पद्धति से शरीर में कुछ कोशिकाओं को कैंसर से लड़ने के लिए मॉडिफाई किया जाता है और फिर से शरीर में डाला जाता है, जिससे वे शरीर में पनप रही कैंसर कोशिकाओं को खत्म करती हैं। एचसीजी कैंसर हॉस्पिटल जयपुर के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेश सोमानी और डॉ. अभिषेक चारण ने सीएआर-टी सेल थैरेपी के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी।
सवाल: सीएआर-टी सेल थैरेपी क्या है ?
जवाब: यह एक उन्नत इम्यूनोथैरेपी तकनीक है, जिसमें मरीज के शरीर से टी-कोशिकाओं (जो श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार जो प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा होते हैं और संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं) को फेरेसिस तकनीक के जरिए खून में से निकाला जाता हैं और जेनेटिक रूप से मॉडिफाई करके कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए तैयार किया जाता हैं।
सवाल: इसका आविष्कार कब और किसने किया ?
जवाब: इस थैरेपी का विकास 1980 और 1990 के दशक में वैज्ञानिकों द्वारा शुरू किया गया था। वर्ष 2010 में डॉ. कार्ल जून और उनकी टीम ने इसे व्यावहारिक रूप से मरीजों पर उपयोग करना शुरू किया। वर्ष 2017 में अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने पहली सीएआर-टी सेल थैरेपी को मंजूरी दी, जिससे यह कैंसर के इलाज के लिए उपलब्ध हुई।
सवाल: यह थैरेपी कैसे काम करती है ?
जवाब: फेरेसिस प्रक्रिया के जरिए टी-सेल्स को रक्त में से निकाला जाता है। ये कोशिकाएं शरीर में कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए जिम्मेदार होती हैं, पर बीमारी के बढ़ने के कारण कमजोर पड़ जाती हैं। जीन एडिटिंग से इन सेल्स को कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए तैयार किया जाता हैं और फिर शरीर में डाला जाता है।
सवाल: कौनसे कैंसर के इलाज में इसका उपयोग किया जा सकता है ?
जवाब: मुख्य रूप से ब्लड कैंसर, जिनमें एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया यानी एएलएल, डिफ्यूज लार्ज बी-सेल लिंफोमा, फॉलिक्यूलर लिंफोमा, मल्टीपल मायलोमा और मैंटल सेल लिंफोमा जैसे कैंसर के इलाज के लिए उपयोग की जाती हैं।
सवाल: क्या यह थैरेपी बच्चों के लिए भी उपयोगी है ?
जवाब: हां, यह थैरेपी विशेष रूप से उन बच्चों के लिए प्रभावी है, जिन्हें एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया हुआ हो। ल्यूकेमिया बच्चों में सबसे आम रक्त कैंसर हैं। यह थैरेपी उन बच्चों के लिए जीवन रक्षक साबित हो सकती हैं, जिनके लिए कीमोथैरेपी या अन्य इलाज काम नहीं कर रहे हैं। यह प्रणाली 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों में ही उपयोग की जाती हैं। हालांकि 12 से कम उम्र के बच्चों में इस पद्धति को प्रयोग के बारे में रिसर्च चल रही हैं।
सवाल: यह थैरेपी अन्य कैंसर उपचारों से कैसे बेहतर है ?
जवाब: यह एक टार्गेटेड थैरेपी है, जो केवल कैंसर कोशिकाओं को निशाना बनाती हैं, जबकि कीमोथैरेपी और रेडिएशन थैरेपी स्वस्थ कोशिकाओं को भी प्रभावित कर सकते हैं। यह शरीर की अपनी इम्यून प्रणाली को मजबूत बनाती है, जिससे कैंसर के दोबारा होने की संभावना कम हो जाती है।
सवाल: किन मरीजों के लिए यह थैरेपी उपयोगी हो सकती है ?
जवाब: यह थैरेपी उन मरीजों के लिए उपयोगी हो सकती है, जिनका कैंसर बार-बार लौट आता है या जिन पर कीमोथैरेपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट जैसे अन्य उपचार असर नहीं कर रहे।
सवाल: थैरेपी की लागत कितनी होती है ?
जवाब: विदेश में इस इलाज के लिए तकरीबन 4 से 5 करोड़ का खर्चा आता है, लेकिन भारत में और राजस्थान में एचसीजी अस्पताल में यह इलाज लगभग 40 लाख तक में हो जाता है। हाल ही में एक 62 वर्षीय मरीज का सफल उपचार किया गया है।
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