प्राचीन सिक्कों में भी अंकित हैं ‘लक्ष्मी’
11वीं शताब्दी से मिलने लगे थे सोने के सिक्के
पुरातत्व विभाग के पास संग्रहित सिक्कों में परशुधारी के कुछ सिक्कों पर देवी के बाएं हाथ में कमल की कली और दाहिने हाथ में पाश एवं कमलासन पर पैर प्रदर्शित हैं।
जयपुर। समुद्रगुप्त के दंडधारी व परशुधारी और चन्द्रगुप्त द्वितीय के दंडधारी तरह के सिक्कों पर लक्ष्मीजी को सिंह पर आसीन, साड़ी, चोली, चादर, हार, भुजदंड और मोती की लड़ी की माला पहने अंकित किया है। दंडधारी तरह के समुद्रगुप्त के सिक्कों पर बाएं हाथ में कार्नूकोपिया और दाएं में पाश है और गोलाकार चटाई पर पैर रखे बताया गया। पुरातत्व विभाग के पास संग्रहित सिक्कों में परशुधारी के कुछ सिक्कों पर देवी के बाएं हाथ में कमल की कली और दाहिने हाथ में पाश एवं कमलासन पर पैर प्रदर्शित हैं। बयाना निधि से प्राप्त एक सिक्के के पृष्ठभाग पर देवी के पैर रखें तले कमल सिंहासन को छिपा दिखाया गया। वहीं चन्द्रगुप्त द्वितीय और कुमार गुप्त प्रथम के कुछ सिक्कों पर वह कमल पर आसीन दिखाई देती हैं। पुरातत्व विभाग के मुद्रा विशेषज्ञ प्रिंसकुमार उप्पल ने बताया कि संग्रहित सिक्कों पर अंकित देवी के हाथों के अंकन में भिन्नताएं मिलती है। कभी-कभी कटि पर अवलम्बित बाएं हाथ में कमल धारण किए हैं। समुद्रगुप्त के वीणावादक तरह के सिक्कों के पृष्ठभाग पर लक्ष्मी, प्रभामंडलयुक्त, मोढ़े पर बैठी, साड़ी सहित अन्य मुद्राओं में सिक्के देखने को मिलते हैं। कुमार गुप्त (प्रथम) के अश्वारोही के सिक्कों के पृष्ठभाग पर मोढ़े पर आसीन देवी लक्ष्मी के बड़े कलात्मक अंकन मिलते हैं।
चंदेल राजाओं ने भी चलाए थे सोने के सिक्के
11वीं शताब्दी के शुरू से पुन: सोने के सिक्के मिलने शुरू हुए थे। उनकी शुरुआत त्रिपुरी के कलचुरि नरेश गांगेयदेव के सिक्कों से होता है। नरवर्मन जेजाकुभक्ति के चंदेल राजाओं ने भी 11वीं शताब्दी के अंतिम चरण से लेकर 13वीं शताब्दी के तृतीय चरण तक ऐसे ही सिक्के चलाए। ऐसे सिक्के इस वंश के कीर्मिवर्मन, सल्लक्षणवर्मन, मदनवर्मन, परमर्दि, त्रैलोक्यवर्मन और वीरवर्मन के भी मिले हैं। गागेयदेव के इस सिक्के के अनुकरण पर ही परवर्ती अनेक शासकों ने भी लक्ष्मी प्रतीक अंकित घटिया सोने और चांदी के सिक्के बनाए थे।

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